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Dr Baman Chandra Dixit

Inspirational

4.5  

Dr Baman Chandra Dixit

Inspirational

साठ का हो गया मैं

साठ का हो गया मैं

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ऐसा लग रहा था अचानक सब कुछ बदल गया ।सुबह आठ बजे कर आठ मिनिट पर मोबाइल पर एक मैसेज आया कि मैं आज जा कर को भीड़ का बूस्टर डोज़ लगा सकता हूँ। खुद को आईने में देखा,सब पहले जैसे ।कुछ बदला नहीं था मगर मैं सीनियर सिटीजेन हो चुका था यानी मैं बूढा हो चुका था।ये सच को झुठलाने के लिए आठ बज कर आठ मिनिट के बाद मैं कुछ ज्यादा एक्टिव हो रहा था शायद।छत के ऊपर गया।फूल और सब्जी के पौधों को बताया,देखो आज से मैं ज्यादा देर तक तुम लोगों के साथ रहूंगा।काम घट जाएंगे तो बेकाम का हो जाऊंगा और फिजूल की कामों में वक्त जाया करूँगा।एक बासी गुलाब मुस्कुराना चाहा मगर हल्की सी हवा में एक पंखुड़ी उसकी बिखर गयी। एक ताजा आज ही कि खिली हुई कली तपाक से बोली तनिक संभाल कर चहको,अपनी उमर का खयाल करो।ये जो मौसम है मुहँ फाड़ोगी तो होंठ फटेंगे ही। वो घूरने लगी कभी उस सयानी गुलाब को कभी मुझे।मैं समझ गया उसकी इशारा और खुद में थोड़ीसी फुर्त्ति भरने की कोशिश करने लगा।पाइप को छोड़ बाल्टी में पानी ले ले कर पौधों को सींचने लगा।इतने में कहीं से आवाज आया, हापी बर्थ डे पापा।देखा मेरी बेटी एक गुलाब की ओर इशारा करते हुए मुझे उइश कर रही थी।वो जानती थी पौधों से फूल तोड़ने देता नहीं मैं।और वो उसी गुलाब को ही इशारा की थी जो कि मुझे देख तंज कस रही थी ।सोचा तोड़ ही लाऊं उसे और कह दूँ की मैं अभी बूढा नहीं हुआ हूँ, तुझे मजा चखा सकता हूँ,तोड़ कर हाथों में ले कर घूम सकता भी । मगर मैं बूढा नहीं सीनियर सिटीजेन जो हो गया था।बुजुर्गियत दिखाते हुए थोड़ा सा प्यार किया उस गुलाब को और मेरी बेटी को,फिर काम मे भीड़ गया।मोबाइल में मेसेज पे मेसेज आ रहे थे ,मानो सभी ने ठान रखा था आज मुझे ये जता कर के ही रहेंगे की मैं बूढा हो चुका हूँ। मगर मैं मानने वाला तो हूँ नहीँ।


         खुद का बुढापा को टटोलने के लिए अपना ऑफिस तरफ गया।सेबा निबृत्ति का महीना है।सभी से कुछ औपचारिक बातें हुईं मगर किसीने ऐसे कुछ कहा ही नहीं जिसे मेरा बुजुर्गियत जाग जाये।तब तसल्ली सी महसूस हुई कि मैं अभी बूढा नहीं हुआ हूँ।बुधवारी बाज़ार तरफ आया,जहां पर ऑफिस जाने से पहले मैं श्रीमती जी को छोड़ गया था सब्ज़ी ख़रीने के लिये।सब्जी भाजी खरीद कर श्रीमती इंतज़ार में थी।फटाफट स्कूटर स्टार्ट किया ,तभी श्रीमती ने याद दिलाई।जाते जाते चलो हस्पताल हो चलते हैं,देख लेना कहीं भीड़ नहीं होगा तो टिका लगाते हुए चलेंगे।सच मानो दोस्तों तभी मुझे महसूस हुआ कि इतने दिन , लगभग छत्तीस साल नौकरी करने के बाद मैं सीनियर हो नहीं पाया था।आज की तारीख ने और एक मैसेज ने मुझे सीनियर सिटीजेन करदिया,शायद मैं बूढा हो गया।मगर मैं मानने वाला नहीँ हूँ।

बूढा होने के बाद(जब कभी हूंगा )और बूढ़ा होने के बाबजूद(उस समय की बात) भी बूढ़ा नहीँ होना को साबित करता रहूंगा।लेकिन ये सच है आज मैं साठ का हो गया।

   


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