कुत्ते की दुम
कुत्ते की दुम
कोई न कोई काम के बहाने कर्मचारियों को भिड़ा के रखना उनका आदत में शामिल था। खुद घर में नाश्ता कर रहे होते ,जिसकी आवाज फोन पर स्पष्ट सुनाई दे रहा होता, मगर अधीनस्थ कर्मचारियों को पानी भी पीने की फुर्सत देना मंजूर नहीं है उन्हें। एक बार कुछ कर्मचारी उन्हीं से मिलकर अपनी तकलीफ बताई । साहब ने इतने आत्मीयता से बात सुने की सब गदगद हो गये। दुख भरे दिन गये , अब तो समय पे छुट्टी मिल जाएगी। मगर मेहरबानी तो कभी कभार की जाती, सो कैसे हर दिन वक्त पे छुट्टी मिल सकती।
दो दिन के बाद फिर वही ज़बरन बैठाकर क्लास लेना शुरू हो गया। आठ बजे तक डियूटी ,साढ़े दस बजे तक साहेब का क्लास उसके बाद कहीं छुट्टी। कभी कभी छूटते छूटते भी पकड़ लेते तो आपकी शामत ! जितना सोचो दिमाग उतना खराब।छोड़ो..सोचने में फायदा क्या.....
अपनी स्कूटर स्टार्ट करते करते सोच रहे थे गोपाल बाबू। गाड़ी आगे बढ़ी की नहीं एक कुत्ते ने सामने से गुजरा। उन्हें केवल उसकी दुम ही दिख रही थी ।।
