साइलेंट मोड
साइलेंट मोड


अब मेरा फोन हर वक़्त रिंगटोन मोड़ पर होता है। जो कभी साइलेंट होता था, ठीक वैसे ही जैसे कि तुम्हारे आने से पहले तक मैं था। तुम्हें अक्सर यही शिकायत होती थी ना कि फोन साइलेंट क्यों रखता हूँ। एक कॉल मिस होने पर तुम्हारा यूँ बिखरना ये कोई मतलब है, क्यों रखते हो फोन जब साइलेंट ही रखना होता है तो, अगर किसी को अर्जेंट हो तो। अरे तो बाबा मैं कॉल बैक करता तो हूँ, ये रिंगटोन विंगटोन मुझे नहीं पसंद।
हर बार यही कह कर टाल देता था।एक दिन सुबह उठा तो सोचा आज से कभी भी फोन साइलेंट नहीं रखूंगा और तब से मेरा फोन आज भी रिंगटोन मोड़ पर ही लेकिन बिल्कुल साइलेंट जैसे पहले होता था।
अब रिंगटोन बजती तो है पर कोई असर नहीं होता सच कोई कॉल उठाने का मन ही नहीं करता।
हाँ जो बैठे - बैठे सोचता हूँ ना तुम्हारे बारे में, तब एक उम्मीद बनी रहती है कि तुम्हारा कॉल आयेगा। जैसे ही फ़ोन बजता है झट से उठाने को फ़ोन देखता हूँ उस बज रही घंटी से ज़्यादा सन्नाटा मुझमें होता है यकीनन कभी - कभी तो बिना बजे ही आहट सी होती है लेकिन हर बार जेब से हाथ खाली लौटते हैं और मैं अपने कंधे झटकर हाथ मलते हुए सिगरेट की तरफ बढ़ जाता हूँ।
हर बार फ़ोन की घंटी के साथ निराश सा मैं एकदम साइलेंट हो जाता हूँ लेकिन ये घंटी बार - बार मेरे कानों में गूंजती है।
अब सिर्फ फोन में ही नहीं मेरे अंदर भी बार - बार घंटी बजती है पर रोज़ टूटती आस से मैं उतना ही साइलेंट हो गया हूं जितना ढ़ेर सारी कॉल्स पर कभी मेरा फोन हुआ करता था।