रिश्तों की अहमियत
रिश्तों की अहमियत
रामपाल और जानकी दोनों गाँव में खेतीबाड़ी करते हुए अपना गुजर बसर कर रहे थे । बहुत ज़्यादा पैसे तो नहीं थे पर ज़िंदगी आराम से ही गुजर रही थी । उनके पास दो बीघे ज़मीन थी फसल उगाकर मेहनत करके दोनों अपने परिवार का पालन पोषण अच्छे से कर रहे थे । उनके दो पुत्र थे राजेश बड़ा बेटा था रवि छोटा दोनों गाँव के ही स्कूल में पढ रहे थे । राजेश सातवीं कक्षा में पढ रहा था और रवि पाँचवीं में । उस गाँव में सातवीं तक ही स्कूल था आगे पढने के लिए बच्चे शहर की तरफ जाते थे । राजेश को सातवीं में अच्छे अंक आए परंतु पिता की हैसियत को देखते हुए उसने कहा मैं आपके साथ खेतों में काम करूँगा मुझे आगे नहीं पढ़ना है । माता-पिता ने बहुत समझाया पर उसने न पढ़ने की ठान ली ।
रामपाल की खेतों में पानी उसके पड़ोसी जग्गू देता था पर वह बहुत सताता था । इसलिए रामपाल ने अपने खेत में ही बोर खोदने के लिए सोचा और गाँव के कुछ परिचितों से पैसे माँग कर लाता है और बोर खोदने का काम शुरू करता है । रामपाल की बदक़िस्मती ने उसका पीछा नहीं छोडा और बहुत गहराई तक खोदने पर भी पानी नहीं आया । एक तो पानी नहीं आया ऊपर से क़र्ज़ा!!!इसी चिंता में एक दिन वह चल बसा ।अब राजेश ने ही घर की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली । छोटी सी उम्र में ही वह बड़ा हो गया । एक दिन माँ ने राजेश से कहा बेटा —रवि आजकल पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहा है ।दिनभर आवारा गर्दी करता फिरता है। उसे भी अपने साथ खेत पर ले जा और काम करा ,तेरी मदद भी हो जाएगी और वह कुछ काम भी सीख लेगा ।
दस दिन बाद माँ ने फिर से राजेश को याद दिलाया कि बेटा रवि के लिए कुछ सोचा । राजेश ने कहा —"माँ शहर के ही एक स्कूल में बात कर लिया है मैंने हॉस्टल में रहकर पढ़ेगा ।" माँ ने मना किया कि" तेरे पिता के द्वारा किया कर्ज अभी तेरे सर पर है और अब इसकी पढ़ाई का खर्चा भी क्यों ?" राजेश ने कहा "माँ मेरे बच्चे होते तो मैं नहीं करता क्या ? आप फ़िक्र मत कीजिए सब ठीक हो जाएगा ।" रवि भाई के तकलीफ़ को देख रहा था ।इसलिए उसने बिना पीछे मुंडे अच्छे अंकों से पास होते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की और एक अच्छे सरकारी दफ़्तर में नौकरी भी करने लगा ।
इस बीच भाई के भी दो बच्चे हो गए माँ ने ज़ोर ज़बरदस्ती से रवि की शादी भी रेलवे में काम करने वाली सुनीता से कर दिया । दोनों ही सरकारी मुलाजिम थे अच्छी ख़ासी तनख़्वाह और रेलवे क्वार्टर में रहते हुए आराम की ज़िंदगी जी रहे थे । इस बीच जानकी का भी देहांत हो गया था । सब अपने अपने परिवारों में ख़ुश थे गाँव की पढ़ाई समाप्त होते ही भैया अपने बेटे को शहर के स्कूल में आगे की पढ़ाई के लिए भर्ती कराना चाहते थे । इसके लिए उन्होंने रवि से हॉस्टल के बारे में पता करने को कहा । रवि उसे हॉस्टल भेजने के बदले अपने घर में रखकर पढ़ाना चाहता था जिसके लिए सुनीता तैयार नहीं थी । उसका कहना था कि इतने लोगों के लिए खाना पकाना ऑफिस का काम मुझसे नहीं होगा । रवि ने कह दिया कि "मेरा भाई मेरे लिए पिता बनकर खड़ा था और उसने मेरी पढ़ाई कराई और आज मैं सरकारी नौकरी करके आराम की ज़िंदगी बिता रहा हूँ तो उन्हीं के कारण तुम कुछ भी कहो मैं तुम्हारी मदद कर दूँगा पर उसे हमें अपने घर में रखकर पढ़ाना है ।मैं अपने भाई के लिए कुछ काम आ सकूँ ,इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या हो सकती है ।"अब सुनीता को मालूम हो गया कि रवि मानने वाला नहीं है इसलिए जेठानी के बेटे सुजित को अपने घर में रखने के लिए तैयार हो गई ।
सुजित शहर में चाचा के घर में रहकर पढ़ने लगा । वह पढ़ने में बहुत ही होशियार था उसे स्कालरशिप मिलती थी पुस्तकालय से पुस्तकों को लेकर नोटिस बना कर पढ़ लेता था और पैसों को अपने पिता को भेज देता था । इसे देख सुनीता को ग़ुस्सा आता था कि हमारे घर मुफ़्त की रोटी खाता है और पैसे अपने माता-पिता को भेज देता है । अब सुनीता उसे पढ़ने के लिए समय नहीं देती थी जब भी वह पढ़ने बैठता उसे किसी न किसी काम के बहाने बाज़ार भेजती थी । एक दिन रवि ऑफिस से आ रहा था उसने सुजित को शाप से आते हुए देखा। उसे ग़ुस्सा आया कि पढ़ने के समय वह बाहर घूम रहा है । सुजित घर आकर सामान सुनीता के हाथ में थमाकर जल्दी से पीछे मुड़ता है तभी सुनीता कहती है "कहाँ चल दिए मैं तो तुमसे साबुन भी मंगाना चाह रही थी !!!भूल गई ,अब याद आया ला दो यह लो पैसे ।" सुजित ने कहा —-"चाची कल मेरी परीक्षा है और मुझे पढ़ना है ,मैं नहीं जा सकता ।आप एक साथ पूरे सामानों की लिस्ट क्यों नहीं देती हैं । बार- बार बाज़ार भेजती रहती हैं ।इस बार अच्छे अंक नहीं आए तो मेरी स्कॉलरशिप रुक जाएगी ।" सुनीता ने कहा —"वही तो मैं चाहती हूँ क्योंकि तुम हमारे घर में मुफ़्त की रोटी खाते हो और पैसे अपने पिता को भेजते हो ।अब मैं देखती हूँ कि तुम अपने घर पैसे कैसे भेजोगे ।" बाहर खड़े रवि ने सब सुन लिया , उसने सुनीता से कहा -"कौनसा साबुन लाना है मुझे बताओ मैं ला देता हूँ ।" सुनीता का दिल धक से रह गया ।उसे लगा रवि ने सारी बातें सुन ली थी । रवि ने कहा —"बोलो कौनसा साबुन लाना है दो दिन पहले ही मैंने घर का सारा सामान लाकर दिया था और तुम उसे पढ़ने न देने का बहाना करके उसे सामान के वास्ते बाहर भेज रही हो । मैंने तुम जैसी पढ़ी लिखी और नौकरी करने वाली लड़की से यह उम्मीद नहीं की थी ।तुम्हें तो पढ़ाई की अहमियत मालूम है और मैंने कई बार तुम्हें भाई के बारे में बताया था । हम तो सिर्फ़ सुजीत को खाना ही खिला रहे हैं पढ़ाई तो वह अपने स्कॉलरशिप पर कर ले रहा है । परंतु भाई तो मेरी फ़ीस ,हॉस्टल की फ़ीस सब भरता था । मैंने तो उसके लिए कुछ भी नहीं किया । हर महीने उसका बेटा ही उसके लिए पैसा भेजता है । सुजीत तो कम से कम अपने बेटा होने का फ़र्ज़ निभा रहा है पर मैं .....,मैं तो आस्तीन का साँप निकला कहते हुए रोने लगा ।" सुनीता को लगा उससे बहुत बड़ी भूल हो गई है । वह रवि से माफ़ी माँगने लगी । उसने कहा अब कभी भी मुझसे इस तरह की भूल नहीं होगी । सच ही कहा तुमने मैं पढलिख कर भी पढ़ाई के अहमियत को भूल गई थी । मुझे माफ़ कर दो । अगले दिन से वह सुजीत की पढ़ाई पर ध्यान देने लगी । जैसे ही सुजीत की पढ़ाई ख़त्म हुई । वह भी नौकरी करने लगा । इसी बीच रवि के घर में भी नए मेहमान का आगमन हुआ । जिसका नाम रखा गया ध्रुव ।देखते- देखते ध्रुव भी बड़ा होता जा रहा था । इस बीच सुजीत को कंपनी की तरफ़ से अमेरिका जाने का मौक़ा मिला और वह वहीं शादी करके सेटल हो गया । कहते हैं दुनिया गोल होती है और रवि का बेटा ध्रुव अपना एम.एस करने सुजीत के पास ही गया । इसीलिये हमें रिश्तों के अहमियत को समझना चाहिए । रिश्ते होते ही हैं , एक दूसरे की सहायता करने के लिए उन्हें बचाकर रखना चाहिए । एक छोटी सी ग़लती से रिश्तों में दरार आ सकती है । रहीम जी ने जैसे कहा —-
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए ।
टूटे सो फिर न जुड़े , जुड़े गाँठ पड़ जाए ।
