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Uma Bali

Abstract

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Uma Bali

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रिश्ता

रिश्ता

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हैलो……

जैसे ही नीता ने फ़ोन उठाया उधर से नंदनि की आवाज़ सुन कर उसका चेहरा ख़ुशी से खिल उठा ।

कैसी हो..

सेहत ठीक है..

रवि कैसा है………एक साथ कई प्रश्न पूछ डाले उसने

हाँ माँ स….ब ठीक है….

आप अपना बताएँ ……

आराम से वह सोफ़े में धँस गई, बेटी की काल और वो भी कैनेडा से ,सोचा जी भर बातें करें और वह उसकी गृहस्थी की छोटी छोटी बातें सुनने लगी। उसके ऑफिस की बातें …खाने की मेज़ से ले कर घर के कामकाज की बातें और फिर हिदायतों की लम्बी लिस्ट …..

लेकिन उसे अच्छा लग रहा था …

घर में हर तरह का दायित्व निभाते निभाते अब नीता वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आ चुकी थी दोनों बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी और नंदिनी के पापा तो अपने बिज़नेस में ही व्यस्त रहते ।

‘ दवाइयाँ टाइम पर ले रही हो न आप’

“हाँ भई ले रही हूँ तुम ख़्वाहमख़्वाह चिंता न किया करो ‘

सचमुच बेटी बड़ी हो गई है वह सोचने लगी …..जैसे वो माँ हो गई हो और हम बच्चे 

“माँ अपना और पापा का ख़्याल रखना किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बताना

मुझे चिन्ता लगी रहती है दूर हूँ न, भगवान न करे कुछ हो गया तो …..माँ बाप न रहे तो….,..

उसकी आवाज़ रूँध सी गई

“अरे कुछ नहीं होगा और अगर कुछ होता है तो प्रैक्टिकल हो कर सोचो

ये तो प्रकृति का नियम है बेटा”

“अच्छा ..अच्छा अब रखती हूँ कल काल करती हूँ बाय “जवाब सुने बग़ैर नंदिनी ने फ़ोन काट दिया।

नीता की अपनी आँखें भर आईं थीं और उसकी अपनी माँ की छवि उसकी आँखों के सामने तैरने लगी। माँ को दुनिया छोड़े नौ बरस तथा पापा को गये सात साल हो गये ।

वो भी यही सोचती थी माँ बाप चले जाएंगे तो क्या होगा ?

और वह चले गए ,अनायास ही वह बहुत बड़ी हो गई ,

अब उसका मायका उसे ज़्यादा नहीं खींचता ।

उस के मन की गुत्थियाँ उसके अपने तक सीमित रह गई है।

हर पल उनकी कमी खलती है उसे आँसू गालों पर लुढ़क गये थे

काश! वह बेटी को बता पाती कि माँ बाप जाने के बाद भी हमसाये की तरह साथ रहते हैं। वो दिखते नहीं पर बहुत याद आते है।

शायद कुछ बातों का जवाब वक़्त कारगर तरीक़े से दे सकता है ।



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