रिद्धि की शंका - किर्ती
रिद्धि की शंका - किर्ती


रिद्धि के परीक्षा का आज परिणाम था। दुपहर को देर से उसका प्रमाणपत्र आया। खुशी के मारे वह पाठशाला में कुल्फी की पार्टी अपने दोस्तों के साथ कर रही थी; अपने उतीर्ण आने ये ख़ुशी में वह काफी देर तक वहीं रह गयी।
फिर कुछ घंटों में बारिश होने लगी और उसके चलते वह विद्यालय के छत के बाहर नही निकल पायी। वहां दूसरी ओर उसकी माँ उसके इंतेज़ार में परेशान हो रही थी।बारिश की बूंदे कम होने लगी तो वह हिम्मत जुटा कर निकाल पड़ी। पर उसके घर का रास्ता अब भी दूर था। और फिर कुछ ही मिनटों में बारिश फिर पड़ने लगी तो वो बारिश के रुकने के लिए जल्दी से एक मंदिर के अंदर जा पहुँची - उसने वहां भगवान की मूर्ति को प्रणाम किया और जमीन पर बैठ गयी। वह बाहर चलते हुए लोगो को देखने लगी, और जब उसने अपना ध्यान मूर्ति की ओर रुख किया तो अचानक खयालो खयाल में एक सवाल मन मे आया कि भगवान इस छोटे से स्थान पर कैद क्यों है? और वोह सिर्फ वही तक सीमित क्यों है?
हमारे साथ क्यों नही?
रिद्धि मूर्ति की ओर ध्यानपूर्वक
देखने लगी, उसने देखा के आसपास गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों भिखरी पड़ी हुई है, उनमे से मनमोहक सुगंध आ रही थी, उसने दीये के ओर से पवित्रता की किरणों को महसूस किया।
उसने सोचा कि यह वातावरण सिर्फ मंदिर तक ही सीमित क्यों है?
अगर भगवान हमारे साथ मे होते तो दुनियां में कोई बुराई नही होती। लोगो के मन मे इतना क्रोध कपट नही होता।
रिद्धि ने वहाँ बैठें छोटे बच्चों को देखा, वे प्रसाद में मिले हुए कुरमुरे बड़े चाव से खँ रहे थे।
उन्हे परवाह नही थी कि वो नीचे गिर हुए हैं या जूतों के पास पड़े है, पर वो वहाँ से भी उठा ले रहे थे।
रिद्धि को समझा कि यह भूख कुछ नही देखती।और अगर इन्हें कोई खिला रहा है, तो शायद भगवान ही।आसमान में काले बादल ओर गहरे हो रहे थे, और चांद का नामोनिशान न था। थी तो बस एक काली रात। उसका ध्यान द्विप की फड़फड पर गया, हवाएं तेज़ चल रही थी। उसने बाहर देखा तो बारिश रुक चुकी थी।
बस उन्हीं कुछ सवालों और शंका को लिए वो घर की ओर चल पड़ी।