लैपटॉप का आगमन
लैपटॉप का आगमन


सितंबर के माह था। गणेश जी की मुर्तियों का आगमन शहर के गालियों से हो गया था।
विदुर इस जश्न के मौसम में फिर भी परेशान था । उसने 20 हज़ार रुपए जमा कर लिए थे ओर 5 हज़ार का उदार लेकर घर पर एक लैपटॉप लाना चाहता था।उसे उधार तो मिल गया था पर वो घर पर क्या कहता ?
कंप्यूटर लाना है? उसके घर वाले पुराने जमाने के काका काकी टाइप सोच वाले थे। अब आखिर वो क्या करता? उसने पैसे गिने ओर चल पड़ा ।कुछ घंटो में घर वापस आया तो गणपति बापा की मूर्ति देखी, वह भूल ही गया था कि आज गणेश चतुर्थी भी है। घर वाले उसके हाथों में इतना बड़ा डब्बा देख कर आष्चर्य चकित हो गए।
वह घबराकर बोला नए जमान
े का कंप्यूटर है और उसे खोल कर दिखाया।
'तो यह है लैपटॉप?' दादी माँ पूछ पड़ी।
'जी हाँ।' विदुर मुस्कुराया।
'और यह क्या है?' दादी पूछी
'माउस' विदुर बोला, फिर हंस पड़ा, 'दादी चूहा है!'
दादी डर कर उसे नीचे रख दी।
'फिर तो यह भी गणपति बप्पा जैसे है, इसका भी आगमन करना पड़ेगा,' उसकी माँ हाथ मे फूल,चावल, ओर तिलक ले खड़ी हो गयी।फूल चावल छिड़कते ही कीस के बीच अतक गए।
उसने तिलक का शिंगार कैमेरा की आंख पर किया।
विदुर कुछ कह पता उसके पहले ही दादी के हाथ मे एक चीज़ देख कर बेहोश हो गया।
उसकी दादी बोल पड़ी, 'अरे विदुर उठ! यह नारियल फोड़ना तो लैप टॉप पर बाकी रह गया।'