Writer Ajooba:

Horror

3.4  

Writer Ajooba:

Horror

रास्ता शमसान का...

रास्ता शमसान का...

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बात उस समय की है जब मैं वाटरवर्क्स में नौकरी करता था...

मुझे सरकार की तरफ से बस्ती से थोड़ा दूर क्वाटर मिला। मैं रोज 4:00 बजे उठकर उस पुरानी टंकी के पास जाता था,जहाँ से पूरी बस्ती को पानी की सप्लाई होती थी।हर रोज की तरह आज भी मैं खाना खाकर सो गया।आज नींद बहुत ग़हरी थी।मेरी आँखों के सामने कुछ डरावने दृश्य घूम रहे थे,कुछ भयावह सपने,वो अंधेरी रात और वो बिना सिर का आदमी और एक सफेद लड़की जिसके माथे से खून टपक रहा था...                             

अचानक मेरी आँखें खुल गई..मेरा दिल सहम गया... और मैं कुछ असामान्य महसूस कर रहा था।अभी मैं बिस्तर पर पड़ा था,मुझे ऐसा लग रहा था मानो मुझे किसी ने बांध रखा हो। मैंने अपनी आंखें चारों तरफ घुमाई...वह खिड़की जिसका एक कोना टूट रहा था,उसमे से चांद की रोशनी स्पष्ट आ रही थी।शायद उस कांच को बस्ती के कुछ गिल्ली-डंडा के शौकीन बच्चों ने तोड़ दिया होगा।                      

मैंने कमरे की बत्ती जलाई तो मेरी आँखों के सामने अप्रिय रोशनी फ़ैल गई और मेरी आँखें चकाचौध हो गई।मैंने उस पीतल के लोटा को उठाया जो किसी मजबूत कागज से ढका था।पानी पिया।वह 'टिक -टिक' करती घड़ी जिसमे मैं समय देखा करता था आज रुकी पड़ी थी।शायद उसमे सेल खत्म हो गए।बाहर की रोशनी से स्पष्ट लग रहा था कि 4:00 बज गए,मैंने हर रोज की तरह बिना दूध की चाय बनाई,और एक हाथ में सिगलती सिगरेट तथा दूसरे में चाबी लेकर घर से निकल गया।                        

मैं डाबर के बने उस सीधे रोड पर चल रहा था...चांद से रास्ता थोड़ा थोड़ा दिख रहा था; दोनों तरफ सूखे बबूल खड़े थे।चलते- चलते मैं वाटरवर्क्स को जाने वाली छोटी पगडण्डी पर उतर गया,क्योकि वह डाबर की सड़क से कुछ नीचे स्थित थी।पगडण्डी पर उतरते ही मैंने कुछ असाधरण महसूस किया,ऐसा मैंने किसी दिन नही देखा।थोड़ी दूर चला तो सब कुछ अजनबी था....अब मुझे विश्वास हो चुका था की यह अलग पगडण्डी थी; जो उस पगडण्डी से 20 कदम पहले पड़ती थी।रामलाल ने इस पगडण्डी का जिक्र भी किया था।वह कह रहा था कि यह रास्ता आगे जाकर वाटरवर्क्स वाली पगडण्डी से मिल जाता है,इसलिए मैं उस पगडण्डी पर सीधा चला जा रहा था... यह रास्ता बहुत संकरा था,जगह जगह गड्ढ़े थे,और मृत जानवरों की बदबू आ रही थी।रास्ता इतना सघन था की पगडण्डी के दोनो और वाले वृक्ष मेरे सिर के ऊपर छत बना रहे थे।                    

कुछ आगे चला तो गीदड़ों की दिल दहलादेने वाली किलकिलाती आवाजें सुनाई दी;ये आहटें मेरे दिल को आहत कर रही थी।मैं चलते चलते बहुत दूर पहुंच गया लेकिन मुझे कोई रास्ता नजर नही आ रहा था,ना ही वाटरवर्क्स।...अब मेरे पांव कंपने लगे और मैं स्थिर होकर आगे बढ़ रहा था।         

अब मेरी आँखों के सामने वो सारी बाते घूम रही थी,जो मुझे मेरा बूढ़ा काका सुनाया करता था;गीदड़ों की चीख मेरे कान फोड़ रही थी।मुझे अचानक बूढ़े काका का अंतिम समय याद आ गया,जिस दिन उसका दाह संस्कार किया था वो मेरी आँखों के सामने स्पष्ट दिख रहा था;मैंने इन बातों से पीछा छुड़ाने की कोशिश की...मगर एक एक बात मेरे लिए प्रत्यक्ष बन रही थी।रात को सपने में देखे दृश्य और वो सफेद लड़की ...ऐसा लग रहा था मानो मेरी आँखों के सामने खड़ी है,और वो मुझे घूर घूर कर देख रही हो।श.. श... करती झिंगूरों की आवाजें दिमाग में डर भर रही थी।अब मैं बर्फ की तरह ठंडा होकर जम गया...                              

तभी अचानक मेरी टांग किसी पत्थर से टकरा गई और मैं नीचे गिर गया...झटपटा कर मैं खड़ा हो गया और उस पत्थर को उठाया तो उसे देखकर मैं दंग रह गया,मेरे गालो के रोम खड़े हो गए.....मेरे शरीर का एक एक बाल खड़ा हो गया...मेरी नसों में खून जम गया....        

क्योंकि वो कोई पत्थर नही....बल्कि किसी बच्चे की हड्डी थी..उसे देखकर मेरी आँखें फट गई।मैंने अपनी आंखें उठाकर देखा तो मुझे दूर दूर तक राख के ढेर नजर आ रहे थे ...क्योंकि जिस जगह मैं खड़ा था वो एक शमसानघाट था।मैंने बगल में मुड़कर देखा तो एक अधजले आदमी की लाश पड़ी थी।मेरा दिमाग बेचैन था और मैं तुरंत पीछे मुड़कर दबे पांव भाग रहा था।मैं भागने की कोशिश कर रहा था लेकिन मैं भाग नही पा रहा था...जैसे किसी ने मेरे पांव बाँध दिए हो...और मेरे पांव भारी हो गए।                            

बहुत दूर मुझे जलती हुई चिता नजर आ रही थी।ऐसा लग रहा था मानो बहुत सारी जिंदा लाशें मेरा पीछा कर रही हो,मेरे शरीर की एक एक हड्डी अलग थलग महसूस हो रही थी और मैं पूर्णरूपेण असुंतलित था।पागल गीदड़ों का एक टोल मेरा पीछा कर रहा था...जगह जगह फूटे मटके, पुराने कपड़े और मृत शरीर पड़े थे।

मैं भाग रहा था..बस भाग ही रह था और 2:30 घंटे की डरावनी यात्रा के बाद उस डावर की सड़क पर पहुंच ही गया।पूरा शरीर पसीनों से भीग रहा था,मेरे पांवो की गति मंद पड़ गई थी ....और मैं लंबी लंबी साँस लेने लगा।तभी मैं एक अजनबी से टकराया ,मैंने उससे घबराते हुए समय पूछा.... उसने कहा- 'साढ़े चार'।                     

समय सुनकर मैं आधा गया-"इसका मतलब 2:00 बजे"(मैंने मन ही मन सोचा)

अब मुझे डर नही लग रहा था लेकिन मेरा दिमाग विकृत हो चुका था ,और वो दृश्य मेरी आँखों के सामने फिर फिरकर घूम रहे थे।...और मैं बस डर हुआ था।....सहमा हुआ था।।



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