Mahesh Dube

Thriller

2.1  

Mahesh Dube

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क़त्ल का राज़ भाग 7

क़त्ल का राज़ भाग 7

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क़त्ल का राज़ 

भाग 7

                दूसरे दिन ज्योति कान्ता के घर चारकोप पहुंची। यह मुम्बई के उपनगर कांदिवली में बसी विशाल बस्ती थी। वो बेचारी अभी इस सदमे से उबर नहीं पाई थी। एक तो उसके मालिक का कत्ल हो गया था और साथ ही  उसकी नौकरी भी छूट गई थी क्यों कि मंगतानी की मौत के साथ ही उसका ऑफिस बंद हो चुका था। ज्योति ने कान्ता को सांत्वना दी फिर उसके थोड़ा संयत होने पर पूछताछ आरम्भ की 

"मंगतानी साहब कैसे आदमी थे?'' उसने पूछा

कान्ता ने नजर उठाकर ज्योति की ओर देखा मानो प्रश्न ही न समझ पाई हो। 

"मतलब एक औरत की नजर से बताओ कि ऑल टोटल मंगतानी कैसा आदमी था?'' ज्योति ने अपनी बात स्पष्ट की।

कान्ता ओढ़नी के कोने से आँख पोंछती हुई बोली, अब एक दम फ़रिश्ते तो नहीं थे लेकिन ऐसे बुरे भी नहीं थे कि साथ रहना असम्भव हो। अगर ऐसा होता तो मैं चार साल वहां कैसे टिकती ?

रूपये पैसे के मामले में उनका कैसा बर्ताव रहता था?ज्योति का अगला सवाल था।

"अब आजकल कौन है जो रूपये के पीछे पागल न हो लेकिन मेरी तनख्वाह हमेशा समय से दे देते थे, बाकी मैं नहीं जानती! कान्ता फिर रोने लगी। 

कुछ देर इंतजार करने के बाद "क़त्ल के दिन क्या-क्या हुआ मुझे बताओगी तो मंगतानी साहब के कातिल को सजा मिलने में आसानी होगी, कहकर ज्योति ने कान्ता के कमजोर पहलू पर दबाव बनाया!

जवाब में कान्ता ने उस दिन की और उसके आगे की सारी घटना बयान कर दी। 

उसकी बात पूरी हुई ही थी कि एक डिलिवरी बॉय कुछ सामान लेकर आ गया ज्योति ने देखा तो वो सैमसंग का गैलक्सी नोट मोबाईल था। एक ऐसी औरत जिसकी अभी नौकरी छूटी हो उसे ऐसा महंगा मोबाइल मंगवाते देख उसकी आँखें थोड़ी सिकुड़ गई जिसे कान्ता ने भी भांप लिया और जल्दी से बोली, पहले ही बुक करवाया था अब तो लेना ही पड़ेगा न! फिर उसने ज्योति को चाय के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया और कान्ता को धन्यवाद देकर निकल आई।  

              कांदिवली से अपनी एक्टिवा स्कूटी पर ज्योति मंगतानी की बीवी गायत्री के घर गोरेगांव पहुंची गोरेगांव के मोतीलालनगर में मंगतानी ने म्हाडा के द्वारा बनाया गया एक रो हॉउस बंगला खरीद रखा था। उसके कोई बालबच्चा तो था नहीं बस मियाँ बीबी रहते थे। गायत्री शोक की प्रतिमूर्ति बनी बैठी थी। एक दो रिश्तेदार भी गम में ढांढस बंधाने के लिए आए हुए थे। ऐसी अवस्था में कोई ज्यादा बातचीत तो होनी मुश्किल थी। ज्योति संवेदना प्रकट कर लौट आई। उसे कोर्ट जाना था। 

           रात को ज्योति ने मंगतानी मर्डर केस की फ़ाइल निकाली और पुलिस द्वारा जुटाए गए सभी सबूतों पर गंभीरता से विचार करने लगी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट का गहराई से अध्ययन करने पर एक जगह उसके माथे पर बल पड़ गए और उसकी आँखें चमक उठी। सबूतों में भी उसे पुलिसिया लापरवाही के कुछ लूप होल मिले जिन पर बहस करके वो केस को संदेहास्पद बना सकती थी। सम्यक ने अपने बयान में बताया था कि मंगतानी उसे रात को एक लाख रुपया कैश ऑफर कर रहा था तो वो रुपया अब कहाँ था? अगर सम्यक के पास नहीं मिला तो उसे कौन ले गया? अगर इस बात पर जोर डालकर ज्योति जज के मन में संदेह का अंकुर उगा सकती तो सम्यक को लाभ हो सकता था। उसने संतुष्टिपूर्ण ढंग से सर हिलाया। उसे लाइन ऑफ़ एक्शन मिल गया था।

 

कहानी अभी जारी है...

क्या किया ज्योति ने?

क्या वह सम्यक के बचाव का मार्ग ढूंढ़ सकी?

पढ़िए भाग 8


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