क़त्ल का राज़ भाग 1
क़त्ल का राज़ भाग 1
क़त्ल का राज़
भाग 1
सम्यक बाबलानी ने हैरान परेशान हालत में गुरुबख्श मंगतानी सेठ के आफिस में कदम रखा। आजकल वो अपनी जिंदगी से बेजार था। उसकी कई दिनों की बढ़ी हुई दाढ़ी मैले और मुड़े तुड़े कपड़े उसकी हालत की चुगली कर रहे थे। एक टाइम था जब सम्यक ने गुरुबख्श के साथ काफी मौज मस्ती की थी और दोनों पक्के यार समझे जाते थे लेकिन अब वो बात नहीं रही थी। मंगतानी ने रियल एस्टेट के धंधे में मोटा माल पीटा था और अब बाजार की बड़ी मछली समझा जाता था वहीं सम्यक की हालत काबिले फ़िक्र थी। माली हालत तो जो थी वो थी ही, उसकी पारिवारिक स्थिति और डावांडोल थी। उसकी पत्नी आशा ने तलाक की नोटिस दे रखी थी और आजकल अपनी बेटी ईशा के साथ अलग रहती थी। किसी जमाने में सम्यक की प्रेमिका से पत्नी बनी आशा अब सम्यक का चेहरा भी नहीं देखना चाहती थी। हर तरफ से टूटा सम्यक शराब के समुन्दर में ही पनाह ढूंढता रहता जिससे उसकी अवस्था और खस्ता होती जा रही थी।
अरे आओ सम्यक साईं! मंगतानी ने सम्यक को देखते ही जोर से कहा, "कैसा है बाबा"? लेकिन उसकी आँखों में अरुचि के भाव स्पष्ट दिख रहे थे।
आम वक्त में सम्यक तुरंत वहां से विदा लेता लेकिन हालात का मजबूर था सो जबरन कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, सब झूलेलाल की मेहर है गुरुबख्श! और सुनाओ धंधा कैसा चल रहा है?
जवाब में गुरुबख्श ने इतने तरह के रोने रोये कि सम्यक का मन हुआ कि शीशे की भारी ऐश ट्रे उठाकर उसके सर पर पटक दे, लेकिन प्रकट में वो पेपरवेट को गोल-गोल घुमाता हुआ ध्यान से सुनने का अभिनय करता बैठा रहा। सम्यक ने किसी समय गुरुबख्श को पांच लाख रूपये दिए थे जिसमें से डेढ़ लाख उसने लौटा दिए थे पर बाकी के साढ़े तीन लाख के लिए उसके मन में खोट आ गया था। सम्यक ने मंगतानी को दोस्ती खाते में पैसे दिए थे तो इसकी कोई लिखापढ़ी नहीं थी। अब अपनी खस्ता हालत के मद्देनजर सम्यक को पैसों की सख्त जरुरत थी लेकिन मंगतानी उसे धक्के खिला रहा था। भीतर ही भीतर उबलते हुए सम्यक बोला, गुरुबख्श! आखिर मेरे पैसे तू कब देगा? हर चीज की एक हद होती है! गुरुबख्श मंगतानी कुर्सी की पुश्त पर पीठ सीधी करता हुआ एक फ़ाइल में नजरें गड़ाये हुए बिना सम्यक की आँखों में देखे बोला, "वड़ी साईं! बोल तो दिया हजार बार कि जब होंगा तो खुद सामने से देंगा! तू बार-बार मगज क्यों चाटने आता है? सम्यक का खून यह भाषा सुनकर उबाल खा गया उसने झपट कर मंगतानी का गला पकड़ लिया और जोर- जोर से झिंझोड़ता हुआ बोला कुत्ते! मैं तेरी जान ले लूंगा। मंगतानी जोर जोर से चिल्लाने लगा तुरंत बाहर से सोनू भीतर आया और उसने बाहों में जकड़ कर सम्यक को मंगतानी सेठ से अलग किया। सोनू सिंह बिहार का रहने वाला बलिष्ठ कदकाठी का पचीसेक साल का लड़का था। सम्यक जैसे झोलझाल शराबी पर काबू पाना उसके लिए बाएं हाथ का खेल था। अपना गला मसलते हुए मंगतानी ने सम्यक को भद्दी-भद्दी गालियाँ देते हुए सोनू को आदेश दिया कि उसे उठाकर बाहर फेंक दे और कभी भीतर घुसने दे। सम्यक हाथ पाँव मारता रह गया और मंगतानी को देख लेने की धमकी देता रहा पर सोनू ने उसे किसी गुड्डे की तरह उठाकर ऑफिस से बाहर कर दिया। सोनू बगल के ऑफिस का चपरासी था जो मंगतानी साहब से कुछ इनाम इकराम पाता रहता था और एवज में छोटी-मोटी सेवा कर दिया करता था। वैसे भी उसे ऐसे काम करने में मजा आता था जिसमें उसकी शारीरिक क्षमता का उपयोग होता हो। सम्यक थोड़ी देर बाहर ही बकता झकता रहा फिर रिशेप्सनिस्ट कान्ता के कहने पर पाँव पटकता चला गया।
कहानी अभी जारी है ........
क्या हुआ आगे?
क्या सम्यक अपने अपमान का बदला ले सका?
पढ़िए भाग 2