प्यार
प्यार
कल मेरी शादी को पचास वर्ष पूरे हुए, बच्चो ने तय किया जोर शोर से मनेगी शादी की वर्षगाँठ। बस फिर क्या खूब धूम धड़ाका हुआ, पार्टी, नाच गाना सब तैयार। श्रीमती जी को बहुएं जब ब्यूटी पार्लर से लेकर लौटीं तो हम उन्हे पहचान ही न पाये। उम्र से दस साल छोटी लग रही थी। सच कहें तो बच्चों का ये शगल हमे मन ही मन लुभा रहा था। हमेशा चूल्हा चौका, बच्चे, सास ससुर, घर गृहस्थी की सेवा मे उलझी उस रूपसी को मैने पहली बार निहारा। इतनी सुन्दर है मेरी पत्नी।
बकायदा मंच सजा, मेरी पत्नी को बहुएं मंच पर लाई, उसके हाथ मे माला थी। मेरे दोस्त और बेटे दामाद मेरे साथ मंच पर थे। मैने भी हार ले रखा था। मैने उसके गले मे माला पहनाई, अब उसकी बारी थी, जैसे ही उसने मुझे माला डालने का उपक्रम किया मेरी छाती मे उसका सिर आकर टिक गया, अचेतन हो गई। शायद इतने श्रृंगार प्रसाधन का बोझ सह नही पायी वो। मै घबरा गया। मेरी आँखो से आंसू निकल आये। क्या मेरी नज़र लग गई मेरी प्रियतमा को? पर जल्दी ही वो चेतन हुई और मेरे गले मे माला डाल शर्मा कर पीछे हट गई।
"देखो अंकल जी की शादी को पचास साल हो गए। अभी भी कितना प्यार करते है दोनो एक दूसरे को। बिल्कुल नये प्रेमी की तरह" पता नही किसने कहा।
प्यार भी नया पुराना होता है क्या?
