प्यार की थपकी
प्यार की थपकी
वे हमारे प्रशासनिक अधिकारी थे साथ ही वरिष्ठ नागरिक भी थे। चूँकि वे बुजुर्ग और हमारे अधिकारी थे तो हम उनका बहुत आदर करते थे। हम में से कई युवा महिलाएं भी थी। हम लोग जिस कंपनी में काम करते हैं उस कंपनी ने अपने कर्मचारियों को ऑफिस तक लाने के लिए एक मिनी बस लगा रखी थी। जैसे ही बस में चढ़ते युवतियां उन्हें गुड मोर्निंग करती वे उनके गाल थपथपा देते या सिर पर हाथ रखकर आशीष देते या पीठ पर प्यार का हाथ फेर देते। बस से उतरते वक्त भी वे ऐसा अवसर नहीं चूकते। सभी इसे हलके में लेते लेकिन मुझे बड़ा एम्ब्रेसिंग महसूस होता।
एक दिन अटेंडेंस पञ्च करते उन्होंने मेरा नाम पुकारा। मैं जैसे ही उनके पास गई और वे मेरे गाल छूने ही वाले थे कि मैंने साहस कर कह दिया ‘मुझे टच न करें, मुझे ये बिलकुल अच्छा नहीं लगता।’ वे अचकचा गए। वे वहां से तुरंत अपने चैम्बर में चले गए। उन्हें बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई। जैसे सरेआम उनकी इज्जत उतार ली गई हो। उस दिन वे अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकले।
स्टाफ में कानाफूसी चलने लगी ‘बढ़ऊ आज आया ऊंट पहाड़ के नीचे’ पुरुष कर्मचारियों ने शाबासी देते हुए कहा, ‘शीलाजी आपने बिलकुल ठीक किया।’ महिला कर्मचारियों ने मेरे साहस की प्रशंसा की और मुझे धन्यवाद भी दिया। मुझे डर लग रहा था कि वे कहीं बदला लेने पर उतारू न हो जाय। मुझे अपने जॉब की चिंता थी क्योंकि घर खर्च इससे चलता था। माँ को पता लगेगा तो पता नहीं क्या-क्या सुनायेगी !
फिर हमने देखा कि अब उन्होंने ये हरकत करना छोड़ दिया। लेकिन हमने गुड मोर्निंग कहना नहीं छोड़ा। अब वे आँखों में आँख डालकर गुड मोर्निंग कहने की बजाय रस्मी गुड मोर्निंग बोल देते। प्यार जताना छोड़ दिया ‘जब उन्हें नहीं पसंद तो क्यों करें? वे उसे गलत ‘वे’ में लेते हैं’।
मुझे लगा हम सामाजिक प्रतिक्रियाओं और परिणामों से इतने भयभीत और चिंतित होते हैं कि कुछ कहने का साहस भी नहीं कर पाते।