प्यार की महक
प्यार की महक
वो कॉलेज की बिल्डिंग की दूसरी मंज़िल की बालकनी में खड़ी थी वहां से खुले मैदान को एकटक निहार रही थी। कभी उदास कभी मुस्कराने वाले भाव उसके चेहरे पर धूप-छाँव की क्रिड़ा कर रहे थे कुछ कुछ समझने और समझाने की जंग खुद से ही चल रही थी। आँखें खूब बड़ी बड़ी, हिरनी की आँखों सी, सांवला रंग कंधे तक के बाल और लिनेन की ब्ल्यू कलर की साड़ी पहनी हुई थी। नित्या आज अकेले न जाने क्या क्या सोचकर खुद से लड़ रही थी, उसे केशव की कुछ महीने से उसे बहुत याद आ रहा था।
उस दिन, उसने कितने फोन किए उसे, उसके पिता का हालचाल पूछने के लिए, पर वो फोन हर बार काट दिया जाता। वो रोज़ रोज़ एक ही बात से परेशान हो चुकी थी
माँ घर में रोज़ पूछतीं -"कब शादी करोगी? "इस बात का जवाब बहुत पीछे छोड़ दिया था वो मुस्कराकर माँ को टाल देती थी।
शादी तो उसने सोचना छोड़ दी ।वो शब्द से कोसों दूर रहती थी।
उस दिन जब लेक्चर कॉलेज में खत्म कर घर जा रही थी तब उसने अपनी कार से किसी टू व्हीलर वाले को ठोक दिया। उसे क्या हो गया था उसे नहीं पता था
केशव को खोने के बाद भी खोने से शायद डरने लगी थी, प्यार इन्सान की ताकत होने के साथ साथ बहुत बड़ी कमज़ोरी होती है।
प्यार दिल के कोने में सुराख करके उसके अन्दर छिपकर उसकी ताकत और कमजोरी का खेल खेलता है है इस सुराख का कोई इलाज नहीं और ना ही ये किसी को दिखाई देता है या यूं कहें प्यार इन्सान के इम्यून सिस्टम पर ही अटैक करके उसे कमजोर कर देता है
लाख दुआएं और दवाएं सब असर करना बन्द कर देती है
हम अक्सर प्यार से गांरटी की उम्मीद करते हैं उम्र भर जिस शक्ल में वो वैसा ही रहेगा। वो वहीं ठहरा रहेगा, बिना किसी बदलाव के।
ये उम्मीद करते हैं जिसका हाथ थामा है वो हमेशा वैसा ही रहेगा। हम खुद को दाँव पर लगाते हैं बस इस शर्त पर कि प्यार हमारी मर्ज़ी के मुताबिक रहे ।हम सुरक्षित रहे , सुनिश्चित रहे।
कोई भी परिवर्तन आसान नहीं रहते ,प्यार में।
उसके साथ गारंटी और वारंटी के कार्ड हमेशा चाहिए।
३ साल पहले
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केशव और नित्या एक ही कॉलेज के स्टूडेंट थे दोनों की ही मित्र मण्डली एक ही थी। बावजूद इसके दोनों अलग शहरों से थे साथ ही अलग अलग विचारों के थे।
जहां नित्या एकदम बिंदास खुले विचारों की थी, वहीं केशव थोड़ा सा रिर्जव था कम बोलता, सुनता ज्यादा था पेंटिंग, फ़ोटोग्राफ़ी , कविता , कहानियों का शौक था इसलिए वो खामोश होकर आस पास की हरियाली के प्रेम में डूबा रहता था।
दुनिया से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था अकेले घंटों रहता था। उसे मुस्कराते हुए किसी ने नहीं देखा। नित्या रोज़ रोज़ कॉलेज में जब जब दोस्तों की मंडली में उससे मिलती तो हर रोज़ एक नए केशव से मिलती थी और मन ही मन उसे सोचती कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?
वो कैन्टिन में दोस्तों के बीच उसे आँखों के कोनों से देखती थी, हँसी ठहाकों के बीच आँखें उसकी हँसी में गोते खाती रही। उसे मालूम ही नहीं पड़ा। कब केशव उसे पसन्द आ गया।
वो हँसते हँसते उसे देखकर चुप हो जाती, बिन्दास लड़की बिल्कुल साधारण सी लड़की हो रही थी, कि बहती नदी से ठहरी नदी सी हो गई थी, प्रेम इन्सान की सूरत सीरत निखार ही देता है।
वो बादलों पर कदम रखकर चलती थी वो अकेले में भी मुस्कुराती थी वो महकती थी बिना जाने की केशव क्या सोचता है वो सिर्फ उसी में डूबी रहती थी। कॉलेज में निगाहें उसे ढूंढती रहती थी उसे देख इत्मिनान से सांस लेती थी। केशव कब उसके लिए आक्सीजन बन गया। उसे खुद नहीं पता ।बस एक आदत बनता जा रहा था वो और आदतें न आसानी से लगती है और न छूटती है।
कॉलेज के बाहर एक चाय की टपरी वाला था जहां अक्सर सारे दोस्त मंडली बनाकर उसकी चाय पीने जाते थे इन सारे दोस्तों को वहां इकट्ठा होने का मौका मिलता। इस बहाने वो सब एक दूसरे से बातें करते, गप्प करते और छेड़खानी।
केशव तब भी उतना ही बोलता जितनी जरूरत होती। खुद का हाल कभी बयान नहीं करता था। नित्या उसे टक टिकी निगाहों से देखते जा रही थी केशव को कुछ एहसास हुआ उसने नज़रें उठाकर देखा और इशारे से पूछा "क्या हुआ?" नित्या को जैसे ही एहसास हुआ कि केशव ने पकड़ लिया है चोरी करते हुए तो वो सकपका गई। झट से नजरें इधर उधर कर अपने दोस्त को पूछने लगी- "यार आज लेक्चर बोर है घर जल्दी चले क्या? '
स्वामनि ने पूछा "क्यो घर जाना है ?" नित्या आँखें नीचे कर उसको उचकती तिरछी आँखों से देख रही थी। केशव ने कई बार उसकी नज़र चोरी पकड़ ली थी, वो नित्य को देखकर मुस्कराने लगा। नित्या उसे आँखें टेड़ी -मेड़ी कर चिढ़ाने लगी। इन दोनों की आँखों की चोरी कितने लोगो ने पकड़ी, ये दोनों को ही नहीं पता था।
रोज रोज नित्या कभी अपने दोस्त की आड़ से केशव को देखती थी, कभी किताबों में सर घुसा कर कनखियों से उसे देखती रहती। केशव को पता चल चुका था कोई तो खिचड़ी पक रही है नित्या के मन में। प्रेम चाशनी होता है पर अगर चाशनी ज्यादा खाने में होती है तो भी मुश्किल होता है खाना और कहीं गलती से फर्श पर गिर जाए तो भी दुभर करती है।
एक सुबह नित्या कॉलेज पहुँचीं तो केशव उसे कहीं दिखाई नहीं दिया। उसने यहां वहां सब जगह देखा पर नहीं दिखाई दिया। दोस्तों की पूरी मण्डली में भी नहीं दिखाई दिया। कई दिनों तक उसे ढूंढती रही ।एक दिन अचानक एक दोस्त ने पूछा -" यार केशव कहां है ? नजर नहीं आता ,आजकल "
तब किसी ने कहा- "अरे तुम्हें नहीं पता, वो अपने गाँव गया हुआ है कुछ दिन के लिए कोई जरूरी काम है।"
नित्या के आँखें फिर भी उसे ढूंढती रहती थी।
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कुछ दिनों बाद
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नित्या कॉलेज में रोज़ की तरह उसे ढूंढने की कोशिश करती रहती थी पर उसे वो नहीं दिखता। आज वो वो चुप चाप अपनी बेंच की तरफ बढ़ने लगी ,तभी केशव वहां आ गया, उसे देखते ही केशव ने उसे छेड़ते हुए पूछा -"किसे ढूंढ रही हो?" नित्या थोड़ी सहम गई और उसकी धड़कनें बढ़ गई।
वो उसे देखकर मुस्कराहट छुपाते हुए बोली-" किसी को तो नहीं"
केशव ने उसे कहा -" कॉलेज के बाद काफी के लिए चलोगी?" "कम बोलने वाला शख्स इतना बोलना जानता है हमे तो लगा बड़ा सीधा सादा है "- हँसते हुए नित्या ने उसे छेड़ दिया। केशव उसे देखकर मुस्कराता हुआ अपनी सीट पर चला गया। उसे अपना जवाब मिल चुका था।
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कॉलेज के बाद
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नित्या और केशव सि सि डी में काफी आर्डर कर बातें करने में व्यस्त थे, आज केशव की नज़रे उस पर से नहीं हट रही थी वो उसका हाथ थामना चाहता था उसे चूमना चाहता था छूना चाहता था बांहों में भरना चाहता था।
आज उसका मन शायराना हो था रहा था नित्या ने पूछा -"आज चाय नहीं, क्यो?"
केशव -" आज का दिन चाय के लिए नहीं, आज का दिन, खास तरह से सेलिब्रेट करने के लिए है।"
नित्या -"आज क्या खास है?'
केशव - "हर भाव को शब्द नहीं दिए जाते हैं खामोशी और शब्द दोनों को मोल खत्म होने लगता है।"
नित्या -"आज बड़े मूड में हो " कहकर हँसने लगती है
केशव मुस्कराता हुआ कहता है- "मैं हर सुबह अपनी आँख तुम्हारी इसी हँसी की खनक से खोलना चाहता हूं।"
नित्या थोड़ी घबरा गई, वो यहां वहां चारों तरफ देखने लगी। फिर केशव को देखा वो अभी बोल रहा था। "मैं तुम्हारे माथे पर अपने होंठों को रखना चाहता हूं , तुम्हारी अंगुलियों में अपनी अंगुलियों को उलझा हुआ देखना चाहता हूं। चाहता हूं मेरी आँखों में तुम्हारा प्रतिबिंब हमेशा के लिए ठहर जाए।
थोड़ा रूकता है फिर कहता है -"मेरे आंखों में एक सपना पलने लगा है" थोड़ा रूकता है मुस्कराता है फिर कहता है
"आने वाले दिनों मे, मैं तुम्हारे साथ सपनों की डोर से आसमाँ में अपनी पतंग उड़ाना चाहता हूं, चाहता हूं जब भी मैं हवा में ज्यादा उड़ानें भरो, तो तुम मेरा कान पकड़ने का हक रखो। आसमान के उस पार की ज़मीन पर हमारी दुनिया हो ,सूरज चाँद दरवाज़े के देहरी पर खड़े हो।"
नित्या उसके मुंह पर हाथ रखकर बोलती है -"तुम इतनी कविता करते हों ? " वो फिर हँस दी।
नित्या उसे देखती रही, सुनती रही, मुस्कुराती रही। उसका तो कोई ख़्वाब सच हो रहा था
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उस दिन
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उस दिन वो घर के लिए जाने वाला था तो नित्या उससे मिलने गई, क्योंकि इस बार वो थोड़े लम्बे वक्त के लिए घर जाना था।
नित्या केशव से मिलने उसके रूम पर पहुंची । दरवाजा बजाया , दरवाजा खुला था वो अंदर गई , यहां वहां देखा ,देखा केशव अकेला अपनी उथल पुथल में उलझा था, नित्या कमरे में पैर रखती है और गले में खराश करती है केशव जो अब तक उलझा था अपने सामान को समेटने में, एकदम सर उठाकर देखता है। उसे देखकर कहता है "ओ नित्या, कैसी हो ?"
नित्या- "केशव, कब वापस आओगे ?"
केशव -" कुछ कह नहीं सकता। पापा बहुत सिरीयस है।"
नित्या -"अपना ध्यान रखना और मुझे अपडेट करते रहना।"
केशव- "हम्म"
थोड़ी देर खामोशी पसरी जाती है, नित्या उसको बस सामान समेटते देखती रहती है, केशव को एहसास है उसके दुख का पर उसका जाना जरूरी है।
बस जाने से पहले नित्या को एक दिन के लिए होल्ड करना चाहता था, उसे खुद के पास रोकना चाहता था उसके माथे पर बोसा रखना चाहता था।
केशव-" आज अगर मैं तुम्हें रोक लूं ,तो ?"
नित्या- "क्यो ? " कहकर मुस्करा रही थी
केशव - "आज तुम्हारा हाथ कसकर पकडना चाहता हूं "
इतना कहने पर ही नित्या खिड़की से आती ठंडी हवा महसूस करने लगी।
प्यार में प्यार का मौसम बिल्कुल अलग ही हवा ले कर आते हैं
केशव जैसे जानता था नित्या उस से मिलने आएगी और उसे वो जाने नहीं देगा। पहले से कमरे को सजाने का सामान इक्ट्ठा कर लिया था ।
नित्या और केशव पूरे कमरे को कैण्डल से सजाकर ,फूलों के बीच, केशव नित्या से कहता है " नित्या में तुमसे बहुत प्यार करता हूं, गारंटी बस तुम तक ठहर जाने की नहीं।"
नित्या-" मुझे तुम मिल गए ,इस से ज्यादा मैं कुछ नहीं चाहती ।ये प्यार है कोई जंजीर , कोई सौदा नहीं , तुम्हारे उम्र भर ठहरने और ठहराने का। इस लम्हे इस पल का प्यार उम्र भर का है बिना किसी शर्तों के।
तुम मुझे में हमेशा के लिए ठहर गए । बावजूद इसके कि तुम्हारी मेरे साथ रहने की कोई गारंटी नहीं।"
पूरे कमरे को कैण्डल से डेकोरेट कर फूलों की महक के बीच खिड़की बन्द कर अंधेरे उजालों से खेलने लगे।
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वर्तमान
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नित्या घर वापस आ गई ,उदासी नहीं गई ,अभी भी। उसे झुंझलाहट हो रही है रोना आ रहा है सब सामान उठाकर ज़ोर जोर से फेंकना चाहती है फिर भी खामोश बैठी अपना काम में तल्लीन होने की पूर जोर कोशिश में है।
" नित्या ,नित्या..." माँ की आवाज़ आती है झट से उसके कमरे के दरवाज़े धकेलते हुए,अंदर आ जाती है और नित्या का हाथ पकड़कर उसे कहती हैं -"उठो"
नित्या-"क्यो क्या हुआ, माँ ?"
माँ -" कहा न उठो और चेंज करके हाल में आओ" इतना कहर माँ चली जाती है।
नित्या कन्फूयज पर फिर भी माँ की बात अनमने मन से मान ली।
तैयार होकर हाल में पहुँचकर देखती है
उसके पुराने दोस्त सब इकट्ठा हुए हैं और केशव भी वही सोफे पर बैठा हुआ था।