प्यार और बारिश की अधूरी कहानी
प्यार और बारिश की अधूरी कहानी
खुदा से तुम्हारी मिलने की फरियाद कर रहा हूं, आंसुओं की बारिश में भीग कर मैं तुम्हें याद कर रहा हूं। आदित्य खुले आसमान के नीचे खड़ा बारिश में भीग रहा थाा, बादलों के साथ उसके आंसू भी बरस रहे थे।
आदित्य:- "कहां हो कशिश क्यों हो गई तुम, मेरी नजरों से दूर मेरी एक भूल की इतनी बड़ी सजा मत दो मुझे, लौट आओ मेरी जिंदगी में वापस कहां खो गई इस दुनिया की भीड़ में तलाश कर के मैं थक गयाा।"
कितना खूबसूरत वह लम्हा था। जब तुम बारिश में भीगा करती थी। खुद मन ना भरे तो मुझे भी जबरदस्ती भीगाया करती थी। ना जाने क्या खुशी मिलती थी तुम्हें इस बारिश में भीगने से आज भी अच्छी तरह से याद है मुझे, तुमने कहा. था.. मुझसे।
कशिश :-"आदित्य कब तक तड़पाओगे मुझे कितनी अच्छी बारिश हो रही है, आओ ना साथ में भीगेंगे।"
आदित्य: "कशिश अभी डिस्टर्ब मत करो ऑफिस जाने में लेट हो रहा है, फिर कभी भीगेंगे"
कशिश... "क्या आदित्य हमेशा सिर्फ ऑफिस उसके अलावा कुछ और सुझता है तुम्हें, देख लेना, जिस तरह मुझे तड़पा रहे हो ना, इस बारिश में तुम भी तड़पाओगे आखरी बार कहती हूँ हाथ थाम लो मेरा शादी कर लो मुझसे वरना किसी दिन घूम हो गई ना ढूंढते रहना पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलूंगी, तब नहाओगे अपने आंसुओं से,, मेरे साथ बारिश में नहीं नहा रहे ना तब पता चलेगा की कशिश को सताने का क्या सजा होता है तब जाकर तुम्हें मेरी तड़प पता चलेगी।
मेरी भावनाओं की कभी कदर नहीं करते ना जब दूर चली जाऊंगी तो आहट ढूंढते फिर ना मेेरी! "
आदित्य सही कहा था,, जेडकशिश तुमने तुम्हें सताने की सही सजा दी है मुझे, क्यों नहीं मानी उस वक्त मैंने तुम्हारी बात अगर मान लिया होता तो आज तुम मेरे साथ होती है ना जाने कहां हो,, देखो ना तुम्हारी कहीं हर बात सच हो गई।
मैं नहा रहा हूं, अपने आंसुओं से एक-एक पल तुम्हारी याद में तड़प रहा हूं,, जिस तरह मैंने तुम्हें तड़पाया था!"
उसी वक्त आदित्य की मां सुजाता वहां पहुंची सुजाता,,.. "अरे बेटा आदित्य तुम क्यों हर बारिश में, इस तरह भीगने खड़े हो जाते हो तुम्हें, जुखाम हो जाती है ना इस तरह खुद को सजा देने से जा चुका इंसान लौटकर तो नहीं आ जाएगा !
मैं जानती हूं, तुम कशिश को याद कर रहे हो ना, लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं रही उसे भूल जाओ और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो आज 2 साल हो गए उसे बाढ़ में बह गए!"अगर वह जिंदा होती तो जरूर लौटकर आती लेकिन अब तक नहीं लौटी तो तुम भी उसे भूल जाओ। क्योंकि मरे हुए इंसान कभी जिंदा नहीं हुआ करती? वह बाढ़ इतनी भयानक थी लाखों लोग उस में बह गए।"
हजारों लोग मर गए क्या पता उनमें से एक कशिश भी हो
आदित्य..., "मां ऐसा बिल्कुल मत कहो कशिश को कुछ नहीं हुआ होगा, मेरा दिल कहता है। मेरी कशिश जहां भी है सही सलामत होगी।
मेरा दिल मानने को तैयार ही नहीं की, कशिश अब इस दुनिया में नहीं रहे हमारी बारिश अधूरी रह सकती है,, लेकिन हमारा प्यार वो अधूरा नहीं रहेगा उसे आना होगा, मेरे पास वरना मैं उसे ढूंढ लूंगा... कशिश तुम कहां हो... मैं तुम्हें ढूंढ रहा हूं... मुझे आवाज दो कैसे पहुंचा मैं तुम तक कौन सा रास्ता जाता है। "
तुम्हारे पास मिल जाओ कशिश मिल जाओ! आदित्य अपनी भावनाओं के दर्द से जल रहा था,, उसका दिल जोरो से रो रहा था। अपना मन शांत करने के लिए आदित्य अपनी मां की गले से लिपट कर रोने लगा।
आदित्य माँ कहां ढूंढू कशिश को हर जगह ढूंढ लिया, जहां वह जा सकती थी,, लेकिन वह कहीं नहीं मिल रही है!

