पूरक प्रेम का संचार
पूरक प्रेम का संचार
अक्सर मुझें उसकी यादें हवा के झोंके की तरह बह कर अतीत में धकेल ही देती है।उस अतीत में जिसमे मैं झाँकना भी नही चाहती।
ये बात उन दिनों की है जब मैं B. Sc कर रही थी। मेरे फूफा जी का रिटायरमेंट था। और उनके घर एक पार्टी रखी गयी थी। हम सब भी सपरिवार उनके यहाँ शामिल हुए थे।
मैं घर के कामो में भी बुआ जी के परिवार की मदद कर रही थी।आने वाले सभी मेहमानों को पानी,शर्बत देने की जिम्मेदारी मैंने ले रखी थी।
तभी मेरी फुफेरी भाभी जी ने मुझे शर्बत ले कर कमरे में आने को कहा।मैं शर्बत लेकर कमरे में गयी।वहाँ 3-4 लड़के, लड़कियां और भाभी बैठी थी।मैंने सबको शर्बत दिया।उनमे से किसी ने पूछा ये कहाँ रहती है?भाभी ने कहा, रहती तो ये जामनगर है। लेकिन ये दिल्ली में हिन्दू कॉलेज से बीएससी कर रही है। उनमें से एक लड़का बोला कि कौनसा ईयर है। और मैंने तो कभी आपको नही देखा वहाँ पर,कॉलेज तो मैं भी जाता हूँ। मैंने उसे घूर के देखा। फिर मैंने उसे कहा कि मैं तो कॉलेज पढ़ने जाती हूँ, लेकिन लगता है आप कॉलेज लड़कियां देखने जाते है।तभी कॉलेज की लड़कियों को जानते होंगे। और मैं बाहर आ गयी। भाभी भी हँसती हुए बाहर आ गयी। मैंने कहा कौन था ये बत्तमीज लड़का। भाभी ने बताया कि ये फूफा जी के साथ उनके कलीग मिस्टर शर्मा का बेटा है।ये बीटेक कर रहा है। तुमने उसे अच्छा जबाब दिया। मैं घर के दूसरे कामो में लग गयी।
रात को जब डिनर के समय ऊपर छत पर बुफे का इंतेजाम हुआ था। कोई खा रहा था ,कोई खाना खा कर जा रहा था। मैं भी अपनी फैमिली के साथ खड़ी थी।मुझे भूख लगी थी।मैंने प्लेट हाथ मे ले ली थी।और उसमें सलाद मूली, प्याज को रख लिया।मैं भीड़ कम होने का इन्तेजार साइड में खड़ी होकर करने लगी थी।मुझे क्या पता था।कोई मुझे देख रहा है,सामने कुर्सी पर बैठ कर। कहते है लड़की की छठी इंद्री से उसे इस बात का अहसास हो जाता है कि उसे कोई घूर रहा है। मैंने सामने देखा तो वो ही लड़का ना में गर्दन हिला रहा था। मेरी समझ नही आ रहा था कुछ।फिर जैसे ही मैंने मूली खाने के लिए उठाई उसने उंगली से इशारा करके उसे खाने से मना कर दिया। मुझे गुस्सा आया मैंने दूसरी साइड मुँह करके खाना शुरू कर दिया।थोड़ी देर में भीड़ कम हुई तो मैं खाना लेने काउंटर पर गयी थी, वो मेरे पीछे खड़ा हुआ धीरे से मेरे कान में बोला कि मूली और रायता दोनो ठंडे होते है।ठंड के मौसम में खाओगी तो बीमार पड़ जाओगी। प्लीज मत खाना।
मैं कुछ कह तो नही पाई।लेकिन उसकी हरकत ने मेरे चेहरे पर स्माइल जरूर ला दी थी। अभी मैं खाना खाकर नीचे सीढ़ियों से जा ही रही थी कि वो जीने पर ऊपर चढ़ रहा था।तभी अचानक जो ऊपर की सीढ़ी पर वेटर प्लेट लेकर चढ़ रहा था वो उसके हाथ से प्लेटें स्लिप होकर नीचे जीने में हमारे ऊपर भी गिरी।हम दोनों ही बचने के लिए आमने सामने खड़े थे। जैसे ही प्लेटें गिर गयी तो मैने आँखे खोल कर देखा , मैं नीचे न जाकर हड़बड़ा कर ऊपर ही जाने लगी ।लेकिन कब मेरे बाल उसकी शर्ट के बटन में उलझ गए।पता न चला।मैं उन्हें उसमे से निकालने की भरपूर कोशिश कर रही थी कि कोई हमे ऐसे न देख ले।वो बस मुझे देख कर मुस्करा रहा था।और मुझे अपने कर्ली बालो पर आज बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। मैं किसी तरह अपने बालों की लट को तोड़ कर ऊपर को भागी। अब सब मेहमान जा रहे थे।मैं भी घर जाने के लिए नीचे सीढ़ियों से उतर रही थी।तभी वो अचानक से भागता हुआ मेरे सामने आया। इससे पहले मैं कुछ समझ पाती।तब तक वो मेरे हाथ मे एक पर्ची पकड़ा गया। और वापस चला गया। मैंने उस पर्ची को देखा,उसमे उसका नाम , फ़ोन नम्बर के साथ लिखा था,कि यदि तुम्हे मैं थोड़ा भी पसंद आया तो मुझे कॉल जरूर करना। 2 दिन के घमासान द्वंद के बाद आखिर मैंने उसे फ़ोन किया। वो लखनऊ रह कर जॉब कर रहा था। मुझसे मिलने दिल्ली आ जाता था। कब हमारे इस प्यार भरे रिश्ते को 2 साल हो गए थे पता भी न चला।
एक दिन मैंने उसे फ़ोन किया तो उधर से आवाज आई कि आज रिंकू की शादी है।वो फ्री होकर तुम्हे कॉल कर लेगा ।इतना सुनते ही, मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई । मैंने उसके बेस्ट फ्रेंड को फ़ोन किया ।उसने बताया कि उसकी लव मैरिज हो रही है। वो तुमसे सिर्फ टाइम पास कर रहा था।
मेरे पास रोने के सिवा कुछ नही था।मैने अब किसी को फ़ोन न करने की कसम लेकर फ़ोन नंबर चेंज कर लिया।लेकिन उसके फेसबुक एकाउंट पर उसकी तस्वीरों को देखती तो लगता कि ये पृथ्वी यही फट जाए और मैं इसमे समा जाऊ। मैंने इसके म्यूच्यूअल फ्रेंड को भी अनफ्रेंड कर दिया।जिससे उस तक पहुँचने के सारे रास्ते बंद हो जाये। धीरे धीरे मैं अपनीं जिंदगी में वापस लौटने लगी थी ।
1 साल बाद पापा ने मेरी शादी तय कर दी। मैंने चुपचाप सब मान लिया।क्योकि मेरे मन मे अब कुछ भी शेष न बचा था। विपुल से मेरी शादी हो गयी।लेकिन जैसे अरेंज मैरिज में अक्सर होता है।साथ रहते है पर प्यार नही होता ।मैं भी विपुल के साथ पत्नी बन कर रहती थी पर प्यार नही कर पाई उन्हें। मेरे इस रवैये के कारण वो भी मुझे ज्यादा फोर्स नही करते। हम दोनों जॉब अलग अलग जॉब कर रहे थे। विपुल बैंगलोर में और मैं दिल्ली में। विपुल के कहने पर मैंने भी बैंगलोर में ही जॉब के लिए ट्राय किया और मुझे जॉब मिल गयी।मैं बैंगलोर विपुल के साथ रहने लगी। हमारे बीच दूरियां ज्यादा और नजदीकियां कम ही थी।लेकिन धीरे धीरे ये गैप कम हो रहा था। विपुल मेरा ध्यान रखते।लेकिन मैं ये सब एक पति का फर्ज समझ कर उस पर ज्यादा ध्यान नही देती।
एक दिन जिस फ्लैट में हम रहते उसके सामने वाले फ्लैट में इनका एक कलीग आकर रुका।इन्होंने उसे चाय पर बुलाया। उसे मैं बस आश्चर्य चकित होकर देख रही थी। तभी मैंने चाय बनाई।लेकिन मैं अतीत में खो गयी।और सोच रही थी ये दुनिया इतनी छोटी क्यो है?
एक दिन विपुल घर पर नही थे तभी रिंकू घर आया। बोला, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। मैंने उसे सोफे पर बैठने को कहा। उसने मुझसे माफी मांगी।और बोला कि उसका तलाक हो गया है।वो मुझे आज भी प्यार करता है । मेरे हाथों को पकड़ कर माफी माँगने लगा। मैंने कहा कि मैं शादीशुदा हूँ।तो बोला मुझे फ़र्क नही पड़ता। उसने मेरे चहेरे को अपने हाथों में लेकर कहा कि मैं तुम्हारे लौटने का इन्तेजार करूँगा। वो चला गया।
छोड़ गया मुझे ज्वार भाटे में अकेला। उसके स्पर्श को मैं भूल नही पा रही थी। क्योंकि विपुल से मन का जुड़ाव तो था नहीं।कही न कही रिंकू का ये प्रेम मुझे भी आनंदित कर रहा था। मैं जब भी विपुल का सोचती तो उस पल खुद पर गुस्सा आता।लेकिन प्रेम के उस ठूठ वृक्ष पर फिर से पुरानी कोपलें न आ जायें, इस बात से डर रही थी।मैं रिंकू को बहुत ज्यादा तबज्जो तो नही दे रही थी।पर डर था कहि भटक न जाऊं।
कुछ दिन बाद मेरे पापा की बहुत तबियत खराब हो गयी थी। उनकी किडनी खराब हो गईं थी।उन्हें एक डोनर की जरूरत थी।जो उन्हें एक किडनी दे सकें। बहुत भाग दौड़ की, लेकिन निराशा ही हाथ लग रही थी।तभी विपुल ने डॉक्टर से अपना चेकअप करने के लिए कहा।पापा को विपुल ने किडनी देने का फैसला किया था ।भगवान की कृपा से सबकुछ मैच हो गया था। विपुल ने पापा को किडनी दे दी थी। दोनो जल्द ही ठीक होने लगे थे। मैं विपुल को लेकर घर आ गयी।मैंने छुट्टी ले रखी थी।उनकी सेवा करने लगी। एक दिन रिंकू विपुल के पास आया। वो दोनों बात कर रहे थे। मुझे डर था कि रिंकू विपुल को कुछ बोल न दे। मैं दरवाजे की ओट से उनकी बातें सुन रही थी। रिंकू बोला अबे क्या जरूरत थी बुड्ढे को किडनी देने की अपनी जिंदगी देख पहले। लेकिन पता नही तुझे क्या सुझा। वो कितने साल और जियेंगे। इससे पहले वो कुछ और बोलता विपुल बोले। यार वो भी मेरे पापा जैसे ही है। मैं मंशा से बहुत प्यार करता हूँ। रिंकू बोला कि तूने बताया था कि वो तुझे प्यार नही करती शायद। विपुल बोले, मैं एक साधारण इंसान हूँ। हो सकता है मंशा को कुछ और तरह के लोग पसंद हो। उसको वो सब न पसंद हो जो मुझे पसंद हो। अभी हमें साथ रहते हुए 6 महीने हुए है। धीरे धीरे उसके अनुसार मैं खुद में बदलाव लाने की कोशिश कर रहा हूं। वो भी बदलाव ला रही है अपने में। धीरे धीरे हममें प्यार हो ही जायेगा। सब्र का फल मीठा होता है। मैं चाहता हूँ कि मेरा प्यार इस कठिन अग्नि में तप कर कुंदन बन जाये। मैं बस विपुल के इस रूप को देख कर सोच रही थी ।
क्यो वो मेरी हर बात में पसंद पूछते और उसकी तरह सब काम करना पसंद करते। रिंकू चला गया।
लेकिन मुझे समझ आ गया था कि मेरा असली प्यार कौन है। मैंने कुछ नही कहा विपुल से।कुछ दिन बाद करवा चौथ थी। मैंने नई नवेली दुल्हन की तरह श्रृंगार किया।और अमर सुहाग के साथ विपुल से गिफ्ट के बदले जीवन भर का प्यार मांग लिया। और अपने जीवन के ठूठ वृक्ष पर बसंत के बाद नई कोपलें फूटने की लालसा मुझ में प्रेम का संचार कर रही थी।विपुल के प्रेम का संचार।

