पश्चाताप
पश्चाताप
देब्बू को अपने घर से आये छः महीने बीत गये थे, छोटी सी बात पर वो अपनी सास से झगडा कर बैठी थी, और अपने पीहर आ गई।
कभी इस घर की लाडली बेटी रही, देब्बू को यहाँ आकर अहसास हुआ की, अब वो पहले जैसी लाडली नही रही यहाँ,अब उसके घर वालों का व्यवहार उसके प्रति रूखा रूखा सा था,पर देब्बू क्या करती, उसके पास ओर कोई चारा भी नही था।
अब देब्बू को अपना ससुराल याद आ रहा था, कैसे वो इकलौती बहु होने के कारण पूरे घर पर राज करती थी, बस थोडा़ सास ही तो टोका टोकी करती थी, बाकी तो सब ठीक ही थे।
उसे इस बात पर पछतावा हो रहा था की, छोटी सी बात पर उसने घर छोड़ने का फैसला ले लिया।
देब्बू अब वापस अपने घर जाना चाहती थी, वो घर जहाँ उसकी पूछ थी,पर अब जाये तो जाये कैसे, वो ही तो घर छोड़ कर आई थी।देब्बू सारे दिन यही सोचती रही की, कैसे वापस जाऊ, उसे समझ नही आ रहा था की, किस तरीके से उसकी घर वापसी हो।काफी सोचने के बाद उसने तय किया की, चाहे कुछ भी हो जाये,अब वो अपने घर वापस जायेगी।
सुबह होते ही उसने पानी का बर्तन पकडा ओर पानी भरने के बहाने निकल गई ओर रास्ते से उसने अपनी सास के नंबर पर फोन किया,ये सोच कर के उनसे माफी माँग लूँगी।
फोन में लगातार घँटी जा रही थी, पर फोन नही उठा, देब्बू अंदर से सहम उठी, ये सोच कर के, कहीं उसकी सास गुस्से में तो फोन नही उठा रही, वो चिंतित हो उठी की अब उसकी घर वापसी का क्या होगा।
तभी पानी भर कर लौटते हुये ,उसके मोबाईल की घँटी बजी, देब्बू ने तुरंत सर पर रखी बाल्टी नीचे उतारी, ओर फोन को निकाला ही था के फोन कट गया।
उसने नंबर देखा तो उसकी सास का ही नंबर था, उसकी साँस में साँस आई की, चलो सासु जी का फोन तो आया वापस।
उसने पलट कर फिर अपनी सास को फोन किया ,घँटी जाने लगी थी, हर घँटी पर देब्बू की साँस की गति तेज हो रही थी, उसे समझ नही आ रहा था की, वो अपनी सास से क्या बोलेगी, तभी दूसरी तरफ से फोन उठ गया।
उसकी सास सामने से हलो हलो करती रही ओर देब्बू कुछ बोल ही नही पा रही थी,उसका गला भर आया था, ओर उसकी आँखों में से आँसू गिर रहे थे।
तभी उसकी सास बोली, अब बहुत रो ली, अब मत रो ओर जल्दी घर आजा, तेरी याद आ रही है।
देब्बू ने सास के मुँह से जब याद शब्द सुना तो, वो फूट फूट कर रोने लगी, अपनी सास से माफी माँगने लगी, की मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है, मुझे माफ कर दो।
देब्बू की सास ने उसे तत्काल वापस आने के लिये कहा, देब्बू पानी से भरी बाल्टी उठा कर दौड़ी दौड़ी अपने पीहर तक पहुँची ओर उसे उतारते ही, एक बैग में अपना सारा सामान पैक करने में लग गई।
उसे सामान पैक करता देख उसकी भाभियाँ मँद मँद मुस्कुराने लगी, शायद ये सोच कर के, चलो एक घर जिद के कारण टूटने से बचा।
देब्बू ने सारा सामान पैक किया ओर भाभियों को बोली, आपके वहाँ बहुत दिन तक रह ली, अब अपने घर वापस जा रही हूँ, कोई गलती हुई हो तो माफ कर देना।
भाभियों ने देब्बू को गले से लगा लिया ओर बोली, शादी के बाद तो औरत का, असली घर उसका ससुराल होता है, ओर हमें खुशी है की तुम भी ये समझ चुकी हो, ओर जिसने भी ये समझ लिया, समझो उसने अपने घर को स्वर्ग बना लिया, जाओ ओर जाकर अपने घर को स्वर्ग बनाओ, हमारी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ है।
देब्बू भाभियों को अपने घर को स्वर्ग बनाने का वादा करते हुये निकल पड़ी अपने असली घर को।
