मुक्ति
मुक्ति
भाभी गोप्प दा की पत्नी थी, भाभी एकदम सीधी साधी थी, बहुत दुख देखे थे भाभी ने अपने जीवन में,माँ बाप थे नही, तो ताऊ ने पाला था उन्हें, भाभी की ताई को भाभी फूटी आँख नही सुहाती थी, शायद वो एक ओर लड़की का बोझ नही उठाना चाहती थी, पर वो लोकलाज के चलते भाभी को पालने को मजबूर थी, पर गुस्से से वो दिनभर भाभी को गालियाँ देती रहती थी, भाभी से घर का सारा काम करवाया जाता, बदले में मिलता तो, रूखा सूखा खाना वो भी,ले पेट चीर ले अपना डायलॉग के साथ।
भाभी चुपचाप सब कुछ सहती थी, क्योकिं उन्हें पता था के, जैसा भी है पर उनके लिये सुरक्षित है ये स्थान, भाभी को जो बोला जाता, भाभी वो चुपचाप कर दिया करती,ताई के बच्चे भी भाभी को परेशान करते थे।
दुखों के बीच पली भाभी अब बडी हो चली थी,ओर उसको बडी होते देख, भाभी की ताई इस चिंता में पतली हो रही थी के, भाभी की शादी करनी पड़ेगी, इसके चलते भाभी की ताई ओर चिडचिडी हो गई थी, इसलिए अब वो भाभी को ओर परेशान करने लग गई थी।
भाभी के लिये उसकी बढ़ती उम्र दुखदाई हो गई थी, इधर भाभी की ताई का पारा सातवें आसमान में चढ़ा रहता था, भाभी अब उसे किसी कर्ज की तरह लगने लगी थी,जबकि भाभी की सारी जमीन जायदाद,ओर भाभी की माँ का सारा जेवर उनकी ताई ने ही दबा रखे थे, फिर भी भाभी की ताई भाभी की शादी में एक पैसा भी खर्च नही करना चाहती थी, इसलिए वो भाभी की शादी को टाल रही थी,भाभी से उम्र में छोटे ताई के बच्चों की शादी हो चुकी थी, पर भाभी की शादी की तरफ तो जैसे आँख ही फिरा चुकी थी।
इधर भाभी की उम्र के साथ उनके ऊपर अत्याचार भी बढ़ते जा रहे थे, ये देख एक दिन गाँव के बुजुर्ग प्रधान ने भाभी के ताऊ को बुलाया, ओर उनसे कहा कब करेगा रे लड़की की शादी, सत्ताईस साल की हो गई, माना तेरी सगी लड़की नही है, पर है तो तेरा ही खून,क्यों पाप का भागीदार बनता है, कोई अच्छा सा लड़का देख कर जल्दी शादी कर दे, पूरे गाँव में तेरी हँसी उड़ रही है, की कैसा पापी है जो अनाथ लड़की के साथ अन्याय कर रहा है।
प्रधान की बात का भाभी के ताऊ पर असर हुआ, ओर वो भाभी के लिये लड़का ढूँढने में लग गये, ओर आखिरकार उन्हें गोप्प दा ठीक लगे, उसके पीछे भी दो कारण थे, एक तो गोप्प दा भी बडी उम्र के थे, दूसरी बात दहेज नही देना था, अतः भाभी के ताऊ ने बात पक्की कर दी।
इधर गोप्प दा की कहानी भी भाभी जैसी थी, ना माँ बाप, न कोई भाई बहिन, चाचा ने पाला, वो भी ये सोच कर की जानवर चरा लायेगा।
उनकी शादी की कोशिश भी नही की गई ठीक भाभी की तरह, 30 साल हो चुके थे, खुद शादी करते तो कैसे करते, जमापूंजी के नाम पर एक टूटा फूटा घर था, जिसमें रहकर, वो लोगों के जानवरों को चराने का काम करते थे,उनकी जमीन जायदाद सहित अन्य सामान भी भाभी की तरह हथिया लिये गये थे।
गोप्प दा की शादी तो ठहर गई थी, पर हालात ऐसे थे की, अपनी दुल्हन को देने के लिये कुछ न था, आखिरकार मंदिर में शादी हुईं, वर पक्ष की ओर से चार पाँच गये ओर भाभी को घर ले आये थे।
गोप्प दा ने घर पहुँचते ही भाभी को बोले ,कुछ नही है मेरे पास, बस ये टूटा घर है, पता नही तू रह पायेगी या नही, पर मेर पास यही है, इस पर बौजी बोली, जो भी है हमारा अपना तो है,मेरे लिये तो सबसे कीमती तुम हो।
गोप्प दा ओर बौजी बेहद खुश थे की, उनकी गृहस्थी बस गई, दोनों मेहनती तो थे ही, इसलिए नदी किनारे लोगों के बंजर खेतों को साझे में लेकर उनमें सब्जियाँ इत्यादि लगाना शुरू किया, बकरियाँ खरीद कर खुद पालना शुरू किया,इससे उनकी आर्थिक स्तिथि में सुधार आया, बच्चें भी हो गये थे, उन्हें स्कूल डाला ताकि वो पढ़ लिख सके।
अब बौजी ओर गोप्प दा इस बात से खुश थे की, उनके उन कष्टों का अंत हुआ,जो उन्हें उनके अपनों ने दिया था, अब वो खुद के लिये जी सकते थे अपने मन मुताबिक, जो वो पहले जी नहीं पाये थे।
