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पर्यटक

पर्यटक

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"नमस्कार सेठ जी।"

"अरे आओ आओ गिरधारी, बड़े दिनों बाद नजर आए।"

"आप ही याद नहीं करते सेठ जी, मैं तो जब कहो तब हाजिर हो जाऊं, आजकल तो कोई ऑर्डर भी नहीं आ रहा आपका, बीच में तीन चार बार फोन भी करा था, लेकिन भइया बोले अभी कोई डिमांड नहीं, पापा आएंगे तो बता देंगे।"

"हाँ गिरधारी आजकल काम धंधा तो है नहीं, तो मैं भी शोरूम पे कम ही आता हूँ, तुम तो जानते ही हो उस हादसे के बाद विदेशी टूरिस्ट कितने कम आने लगे हैं और अपने लोकल टूरिस्ट ऐसे हैंडीक्राफ्ट के आइटम कहाँ खरीदते हैं।"

"आप सही बोल रहे सेठ जी मेरा तो सारा काम चौपट हो गया। आपके अलावा जितनी भी जगह आइटम सप्लाई करता था, कहीं से कोई ऑर्डर नहीं, सारे कारीगर ठाले बैठे हैं, काम बंद करने की नौबत आ गई है।"

"अरे गिरधारी कौन समझाए इन निकम्मों को जो अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारने पे तुले हुए हैं, तुझे तो मालूम है इस समय तो अपना पीक सीजन होता था, विदेशी टूरिस्टों का तांता लगा रहता था, गाड़ियां भर-भर के आती थी और हमें तो फुरसत ही नहीं मिलती थी। पूरे साल का गल्ला सिर्फ इस सीजन में उठा लेते थे । अब ये देखो आज का अख़बार, आज विश्व पर्यटन दिवस पे सरकार की लंबी चौड़ी बातें... ये करेंगे वो करेंगे... लेकिन इनसे कोई पूछे कि ऐतिहासिक इमारतों और मुख्य बाज़ारों में जगह जगह गंदगी के ढेर और आवारा पशुओं पे ही लगाम लगा लो तो बड़ी बात है।

अभी पिछले साल की उस दुःखद घटना ने तो पूरे अंतरराष्ट्रीय जगत में हमारा सर शर्म से झुका दिया जब शहर के सबसे व्यस्ततम और मुख्य बाजार में सांड ने एक विदेशी पर्यटक को सींग मार कर मौत के घाट उतार दिया।

"भाई गिरधारी हमने तो अब एक संस्था से बात करी है जो आवारा पशुओं को तुरंत पकड़ कर ले जाएगी और बीमार पशुओं का इलाज भी करेगी। बताओ आखिर कब तक सरकार के भरोसे बैठे रहेंगे।"


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