प्रवृति

प्रवृति

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"आज से मेरी बहू रसोई में ना जाएगी।" सासूमाँ ने हाथ पकड़कर जब रिचा से कहा तो रिचा हैरान हुए बिना ना रह पाई। ये आज क्या हुआ सासूमाँ को ? जब से ब्याह कर इस घर मे आई तब से अब तक एक दिन भी ऐसा ना था जब शकुन्तला देवी ने उसे जली कटी ना सुनाई हो। याद आ रहा था रिचा को जब उसने अपने मन की बात मनोज को बताई थी कि वो अधूरी छूटी पढाई को जारी रखना चाहती है। " मुझे कोई एतराज नहीं है रिचा, लेकिन तुम माँ को जानती हो ना, उनकी मर्जी के बिना इस घर मे पत्ता भी नहीं हिलता।" "तो क्या सॉंस लेना भी बंध कर दे, अगर माँ नहीं चाहेगी तो ?" रिचा का गुस्सा सातवें आसमान पर था और फिर एक दिन मन मे ठानकर कि आज सासूमाँ से बात करूंगी ही करूंगी, " ठीक है, ठीक है पढ़ लेना पहले रसोई मे जाकर बरतनों का जो ढेर लगा पड़ा हे उसे साफ करो।" सासूमाँ की कर्कश ध्वनि से रिचा ने सोचा कि यहाँ तो उम्मीद की कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन मैं हिम्मत नहीं हांरूगी मन में सोचकर रिचा अपनी ननद के पास जाकर बैठ गई, जिसे उसके ससुरालवालों ने मायके में जाकर पढने की इजाज़त दी हुई थी। हर लड़की एक जैसी तकदीर तो नहीं लेकर आती ना। रिचा अपनी ननद को देखकर आह भरकर काम में लग गइ। लेकिन अब रिचा ने सुबह जल्दी उठकर और रात को देर तक जाग कर बेहद मेहनत ओर लगन से पढाई जारी रखी। मनोज ने उसका प्राइवेट फार्म भरने में मदद करके पतिधर्म निभा दिया था। आज परिणाम आया और रिचा ने पूरे कालेज मे प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस बात से घर मे खुशी की जगह सासूमाँ के कारण पूरे घर मे मातम छाया हुआ था, लेकिन अचानक "लो बहू, मैं ने तुम्हारे लिए खीर बनाई है, खालो।" मै हैरान परेशान कभी खीर तो कभी सासूमाँ की तरफ देख रही थी कि मेरी ननद ने मेरे हाथो से लगभग खीचते हुए " भाभी ये तो मै खाऊंगी" और जल्दी से दो चम्मच मुँह मे डाल ली। "नहीं बेटा, ये तुम नहीं खाओगी।" जल्दी से सासू माँ ने ननद का हाथ झटक दिया लेकिन ये क्या मेरी ननंद सिर को पकड़ कर धडाम से नीचे गिर पड़ी। "दीदी दीदी क्या हुआ आपको?" मैं लगभग चीखती हुई मनोज देखो, दीदी को क्या हुआ मनोज को पुकारने लगी।

जैसे तैसे अस्पताल पहुँचे "आई एम सौरी" डाक्टर के इन शब्दो ने तो जैसे कोहराम मचा दिया। "लेकिन मैं हैरान हूँ कि आपकी बहन ने कीटनाशक मिली खीर कैसे और क्यों खाई ?" मनोज से जब डाक्टर ने कहा तो "क्या कीटनाशक मिली खीर!" वही दृश्य मेरी आंखो के आगे तैरने लगा जब सासूमाँ उसे बनावटी लाड़ लड़ाते हुए खीर खिलाने की जबरदस्ती कोशिश कर रही थी। "तो क्या वो कीटनाशक मेरे लिए ?" सोचकर ही रिचा सहम गई, सोचने लगी, सच ही तो है यदि किसी इंसान के चरित्र मे नकारात्मकता और कुटिलता घर कर ले तो हम चाहे कितने भी सकारात्मकता अपना ले, किसी के चरित्र को बदलना बेहद मुश्किल है लेकिन ये भी सच है कि ऐसी नकारात्मक प्रवृति के परिणाम इतने भयंकर होते है कि जिनकी भरपाई करनी बेहद मुश्किल है रिचा पास ही पड़ी ननद की लाश को देखकर सोच रही थी !


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