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प्रतिस्पर्धा की दौड़

प्रतिस्पर्धा की दौड़

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''आआआईईईइ....!''अचानक बहु नीलम की चीख ऊपर के कमरे से सुनकर ससुर घनश्याम सास मीता और पति सुनील जीने की तरफ़ भागे।

''क्या हुआ? क्या हुआ?'' तीनो एक स्वर में चिल्लाये। नीलम खिड़की पकडे खड़ी थी।

''बाबू जी मोहित!'' कहकर बेहोश हो गयी। भीतर का नज़ारा देखकर घनश्याम को चक्कर-सा आ गया। मीता भी सिर पकड़ कर चिल्लाने लगी। सुनील पागलों की तरह दरवाज़ा पीटने लगा।

''खोलो मोहित, दरवाज़ा खोलो अब कोई कुछ नहीं कहेगा कोई कुछ नहीं कहेगा!''

''और कहो! अरे अब उसको पढ़ाते क्यों नहीं? मेरे चौदह साल के बेटे का जीना दुश्वार कर दिया था तुमने। बेटा फलाने का बेटा इतने घंटे पढ़ता है उसके इस बार इतने मार्क्स आये है।इतने से कम नहीं आने चाहिये मेरा लाल कितना परेशान रहता था" नीलम ने फफकते हुए अपने पति की तरफ़ देखते हुए कहा।

सुनील की आँखों से आँसू बह निकले चिल्ला-चिल्ला कर रो पड़े। घर का इकलौता चिराग, माँ की आँखों का तारा, दादी-दादा का दुलारा आज प्रतिस्पर्धा की भेंट जो चढ गया था। मौत को गले लगाकर फाँसी के फंदे पर झूल गया थाl


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