ଅଶୋକ କୁମାର ମହାନ୍ତ l

Abstract Horror Inspirational

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ଅଶୋକ କୁମାର ମହାନ୍ତ l

Abstract Horror Inspirational

प्रतिख्या

प्रतिख्या

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आज ऐसा एक दिन जो अमित बहुत खुसनासिम लगता हैं l क्यूं की आज उनकी पिताजी लोट रहिए l अमित के लिए प्रचुर मात्र में खेलोना और बोहत सारी पुस्तक लेकर लौटेंगे ऐसी बात का मेहसूस था l अमित सूबा उठकर अपने नित्यकर्म परीसमाप्ति कर के एक ध्यान में उनकी पिताजी का लोट ने का रास्ता देखते रहिए l सूबा से लेकर साम तक बैठा हुआ है लेकिन इसके पिताजी नहीं लोटे , की कोई संदेश नहीं भेजे l

अमित बहत दुखित हो कर उनकी मां को बोला मां पिताजी लेटर दिएथे आज लौटेंगे लेकिन अभितक क्यूं नहीं लोटे l मां ने अमित को बोले कोई काम होगा उनकी ऑफिस में , तूतो समझदार लड़का इसे क्यूं बिब्रत होरेहिए l अमित कुछ नही बोला चला गेया l कुछ समय बाद एक गाड़ी आकर उनकी घरके सामने खड़ा हुआ गांवो सारा लोक एकत्रित हो कर देखते रहे l अभितक अमित घर का दरवाजा बंद था कुछ समय बाद गांववालों ने उनकी दरवाजा खट खटा l

 लमित का मां ने दरवाजा खोला देखा किसीको एक सफेद कपड़ा में घड़ा दिया है l उनकी समझे मे नहीं आया ए सब क्या है l परंतु कुछ समय बाद सबकुछ समझ गई और जोर से रोने लगी l युनिकी प्रतिख्या हर पल केलिए प्रतिख्या बनकर रह गया l       


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