परिवर्तन जीवन का
परिवर्तन जीवन का
किचन में बर्तन गिरने की आवाज आई, तभी श्यामलाल अपनी पत्नी सुशीला को जोर से डांटते हुए बोल पड़ा, कहाँ ध्यान रहता है तुम्हारा और अब कोई काम सही से नहीं करती........और फिर क्या था छोटी सी गलती के लिए भी गालियाँ शुरू हो गई .......
सुशीला- ये सब काफी समय से बर्दाश्त कर रही थी।
आइये जानते है कि एक समय था जब श्यामलाल का परिवार बहुत खुशहाल था।
सब बड़े राजी खुशी से मेल मिलाप से घर में रहते थे।
ऐसा क्या हुआ जिससे श्यामलाल के घर में आये दिन लड़ाई झगड़े होने लगे?
सबसे पहले श्यामलाल के परिवार से आपको परिचय कराते है......
एक फैमिली है जिसमे माता-पिता है। पिता का नाम श्यामलाल है, और माता का नाम- सुशीला देवी और दो बच्चे भी है उनके। एक लड़की है 18 - 19 साल की जिसका नाम - अवंतिका है और एक लड़का है जो 16-17 साल का उसका नाम- अर्पित है।
श्यामलाल जी ने कई सारे काम शुरू किये लेकिन सब में वे फेल हुए। अब थक हार कर घर पर बैठ गये हैं। अर्पित भी निकम्मा है पढ़ाई लिखाई छोड़कर घर पर बैठा है। आजीविका के लिए अब सुशीला ही काम धाम करती है एक प्राइवेट कंपनी में। लोगों से मिलना जूलता होता है उसका। कुछ एहसास जो उसके वैवाहिक जीवन में कभी नहीं हुए वो अब हो रहे हैं। वैवाहिक जीवन पति के साथ झगड़ों में बीता है। शुरू शुरू में वह जब उसके हिसाब से नहीं रहती तो श्यामलाल उसे मारता पिटता था बहुत।
कंपनी में काम की वजह से सुशीला कई लोगों के संपर्क में आयी।
लेकिन वह किसी से करीबी ना बढ़ा सकी। सब अपने मतलब से ही उससे हँस बोल लिया करते थे। एक लड़का था जो वो उसके काफी करीब आया। इतने करीब कि वह घर भी आने जाने लगा। सुशीला भी अब उसे पंसद करने लगी थी। और उससे वो अब प्रेम भी करने लगी.... थी। ख्वाब सजाने लगी.... इन सब के बीच वह पति को भी ना छोड़ पा रही थी कि कोई भी ना मिला तो कम्बक्त पति तो हाथ में रहेगा ही।
हमेशा एक द्वंद रहा...उसके मन में , हर आये दिन उसका जीवन अब कश्मकश में बीतने लगा।
वो एक साथ दो नाव की सवारी कर रही थी।
एक ओर पति था और दूसरी ओर उसका प्रेमी। वो बीच भंवर में फंस गयी थी। एक पैर आगे बढ़ाती तो दूसरा पीछे रह जाता और दूसरा पैर आगे बढ़ाती तो पहला पीछे रह जाता।
बात काफी आगे तक बढ़ चुकी थी लेकिन उसका सपना कभी पूरा ना हुआ.... सबसे बड़ा सदमा उसे तब लगा जब उसके प्रेमी ने मतलब वो लड़का जिसका नाम - संदीप था वो एक दिन सुशीला की लड़की अवंतिका को ही ले भागा।
बेचारी सुशीला अब एकदम टूट सी गयी। वो रोये या गुस्सा हो कि जिसे वो प्यार करती थी वो उसके लड़की के पीछे पड़ा था। आज सुशीला को समझ आ गया था कि वो घर पर हमसे मिलने कम अवंतिका पर डोरे डालने आया करता था। और अवंतिका भी जवान हो रही थी और बहुत सुन्दर भी थी वो। इस उम्र के पड़ाव में किसी से करीबी बढ़ाना आम बात थी।
वो भी संदीप को पसंद करने लगी थी।
और एक दिन दोनों समय देखकर निकल लिये। उन्हें पता था कि हमारी फैमिली की हालत क्या है और कैसी फैमिली है? जो उन्हें कभी भी एक होने और शादी करने की इजाजत कभी नहीं देती।
अब सुशीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करें और किसको क्या जवाब दे?
इसी द्वंद में उसका मानसिक संतुलन थोड़ा बिगड़ गया था।
अर्पित भी समाज के ताने के डर से वो अपना पढ़ाई लिखाई छोड़कर घर पर बैठ गया, ताकि न वो बाहर जायेगा ना ही कोई उससे उसकी बहन के बारे में पूछेगा।
लेकिन ये बात श्यामलाल को नहीं पता थी।
सुशीला ने श्यामलाल से बोला कि अवंतिका को वो अपने बहन के घर भेजी है।
ताकि श्यामलाल को कुछ पता न चल पाये, अगर वो मायके के लिए बताती तो श्यामलाल पता लगा लेता, और बहन का घर तो बहुत दूर शहर में है।
वहाँ कैसे वो पता लगा पायेगा? शहर में जल्दी कोई अपने अगल-बगल को ही नहीं जानते है तो उसे कैसे जानेगें।
लेकिन एक दिन जब सुशीला किसी अपने सहेली से बात कर रही थी तो अर्पित ने सुन लिया था, तो सुशीला ने किसी तरह अर्पित को समझा बूझा कर उसे ये बात किसी से भी जिक्र न करने की हिदायत दी। यहाँ तक बोली कि अपने पापा को भी न बताना।
अर्पित नालायक तो था लेकिन कुछ मैटर में वो समझदार भी था फिर वो सोचा कि अगर पापा को पता चल गया तो वो मम्मी को बहुत गाली देगें और मारेगें भी।
वैसे ही वो मम्मी को मारते पीटते रहते है।
लेकिन जब अवंतिका बहुत दिन तक घर पर नहीं दिखी तो अगल-बगल वाले बातें बनाने लगे कि लग रहा इनकी लड़की किसी के साथ भाग गई। अगर वो रिश्तेदारी जाती तो कोई न कोई उसे जरूर देखता जाते या जब उसे कोई लेने आता तो बगल में पता लग ही जाता है कि आज फला के घर कोई मेहमान आये है।
तब अर्पित इन सब के डर से घर से निकलना कम कर दिया और स्कूल भी जाना बन्द कर दिया।
इधर सुशीला हर दिन यहाँ वहाँ फोन लगाती ताकि संदीप का पता चल जाये।
लेकिन हर रोज उसे निराशा ही हाथ लगती।
एक दिन वो किचन में खाना बनाने गई किसी तरह चूल्हा जलाया और एक कढ़ाई में उसने सब्जी चढ़ा दी।
एक तरफ वो कुछ सोचते हुए आटा सानने लगी।
वो सोच रही थी कि कितना सब कुछ अच्छा चल रहा था, हम कभी नहीं सोचे कि इतनी किस्मत खराब होगी मेरी।
काश की हम संदीप से नजदिकिया ही नहीं बढ़ाते और ना ही ये सब होता।
हम समझ क्यों नहीं पाये कि मेरी एक बेटी भी अब जवान हो रही है और किसी को घर पर आने की इजाजत कैसे दे दिये?
और वो जब भी आता तो वो उससे थोड़ा बात चीत करता पढ़ाई लिखाई को लेकर।
हमें लगा कि वो उसका ध्यान रख रहा है।
लेकिन ये नहीं समझ पाये कि मेरी फूल जैसी बेटी पर उसकी नियत खराब हो जायेगी।
काश कि उस दिन हम जब वो आया तो हम चाय बनाने के लिए दूध लेने दुकान पर न जाते।
काश कि अवंतिका के पापा और अर्पित घर पर रहे होते।
तो आज ये दिन न देखना पड़ता।
ये सब सोचते हुए वो काफी सिसक सिसक कर रोने लगी। और एक तरफ सब्जी भी जल रही थी लेकिन सुशीला को कोई होश खबर न थी कि चूल्हा पर सब्जी भी पक रही है।
इधर रैक पर रखा बर्तन एक बिल्ली की वजह से नीचे गिर पड़ा सारा और जब जोर से किचन में आवाज हुई तो श्यामलाल बाहर से भागे आया और जब वो किचन में गया तो सुशीला अपने आप में खोई हुई बहुत गहरी सोच में थी वो उसे पता भी नहीं कि कब बिल्ली आई और कब बर्तन गिर गया और इधर सब्जी में से जलने की बदबू भी आने लगी।
श्यामलाल सुशीला पर चिल्लाने लगा और जल्दी से चूल्हे पर से कढ़ाई उतारी।
और खुब गन्दी गन्दी गालिया बकते हुए वो सुशीला पर चिल्लाए जा रहा था।
फिर भी सुशीला आदत से मजबूर थी।
उसे श्यामलाल के गाली का कोई असर अब नहीं होता क्योंकि ये सब पहली बार नहीं हो रहा था।
उसे बस अपने बेटी अवंतिका की चिन्ता सता रही थी।
सुशीला का तो सब कुछ बर्बाद हो गया।
प्यार भी गया और बेटी भी।
और ये सब के टेन्शन में वो बहुत कमजोर सी हो गई थी।
जाॅब पर भी नहीं जा पा रही थी तो उसने एप्लिकेशन लिख कर छुट्टी ले ली 15 दिन की।
सात दिन बीत चुके थे लेकिन अब भी अवंतिका का कुछ पता नहीं चला।
और ना ही संदीप का फोन लग रहा था।
अब अगल-बगल भी लोग तरह की बातें करने लगे। सुशीला और अवंतिका को लेकर।
इधर जो भी पैसा थोड़ा बहुत बचा था वो श्यामलाल रोज पी कर खत्म किया जा रहा था।
सुशीला नौकरी पर भी नहीं जा पा रही थी परेशानी और टेंशन में।
अर्पित पढ़ाई लिखाई छोड़कर गलत संगति में पड़ कर दिन भर गाँव के बाहर जाकर गन्दे बच्चो के साथ घूमने लगा कुछ दिन से।
बहुत सारी परेशानी सुशीला के जीवन में अब उमड़ पड़ी एक साथ।
एक दिन अचानक सुशीला घर से भोर में निकल कर नदी पर पहुँच गई और नदी के किनारे खड़े होकर सोचने लगी की अब मैं जी कर क्या करूंगी?
पति ऐसा मिला जो आज तक बिल्कुल भी इज्जत मान सम्मान नहीं किया।
एक लड़का मिला जो धोखा देकर मेरी ही बेटी को लेकर भाग गया।
बेटा भी निकम्मे बच्चो की संगति में पड़ गया।
अब कुछ नहीं बता जीवन में।
ये सब सोचते हुए जैसे ही सुशीला अपने कदम नदी में कूदने के लिए बढ़ाई....
तभी एक साधु बाबा जा रहे थे उस रास्ते से होकर तभी उनकी निगाह उस औरत पर पड़ी और वो तुरन्त समझ गये वो क्या करने जा रही है?
वो तुरन्त बोल उठे, बेटा रूक जा, ऐसा अनर्थ मत कर खुद के साथ।
सुशीला साधु बाबा को देखकर थोड़ा ठहर गई और उनके पास आकर बोली कि बाबा मैं जीकर अब क्या करूंगी?
उसने साधु बाबा से अपनी जीवन की सारी बात रोते रोते बता दी।
साधु बाबा बोले बेटा ऐसे हार मानने से कुछ नहीं होता ये सब जीवन की परीक्षाये है। जो पिछले जन्म में हुए पाप के कारण मिलती है।
और इससे डर कर भाग कर जो आत्म हत्या करता है उसे और भी पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
तो बेहतर है कि आप अपनी तकलीफे को झेल लो।
सब समय का चक्र है, समय कभी अच्छा तो कभी बुरा चलता ही रहता है।
बेटा हमें सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा है आने वाले कुछ महिने में तुम्हारी सारी समस्या खत्म हो जायेगी।
और तुम खुशहाल जीवन व्यतीत करोगी।
सुशीला ये बातें सुनकर अपने आंसू पोछते हुए बोली, सच में बाबा ऐसा होगा।
साधु बाबा- तथास्तु! हाँ बेटा, सब वैसा ही होगा। जाओ अब घर लौट जाओ खुश रहो,
और अच्छे से चिन्ता मुक्त रहना सब ठीक हो जायेगा।
जैसे ही सुशीला थोड़ा मुस्कुराकर बाबा को सर झुकाकर प्रणाम की।
बाबा पता नहीं कहाँ तब-तक अन्तर्ध्यान हो गये।
सुशीला बाबा बाबा कहकर पुकारने लगी।
फिर वो भूल भी गई कि वो यहाँ किस लिए आई थी।
बाबा की बातों ने सुशीला पर एक जादू जैसा असर किया।
और फिर वो घर आ गई।
नहा-धोकर आज वो सबसे पहले अपना पूजा घर साफ की जो काफी समय से गन्दा और सब मूर्तियों में झाला लगा पड़ा था।सफाई करने के बाद वो पूजा-पाठ की और खाना बनाई फिर श्यामलाल के पास जाकर थोड़ा प्यार से बोली बात की और उनको खाना परोस कर उनके पास बैठकर आज उनको बेना डोलाते हुए कुछ बाते भी करती रही जब तक श्यामलाल खाना न खा लिया।
आज श्यामलाल को भी बहुत अच्छा लगा कि सुशीला उसके पास बैठी रही जब तक वो खाना खा रहा था।
सुशीला अब धीरे-धीर रोज ऐसे ही करने लगी और श्यामलाल को भी अब अपनी पत्नी की महत्ता समझ में आने लगी और वो अब गाली देना कम कर दिया गुस्सा भी धीरे-धीर कम होने लगा उसका।
वो भी अब सुबह जल्दी उठ नहा-धोकर पूजा-पाठ करने लगा और सकारात्मक अनुभव उसे अब होने लगा।
उसने अब शराब भी छोड़ दी।
अब श्यामलाल बहुत बदल गया और वो एक आदमी के साथ मिलकर साझेदारी में एक दुकान भी खोल ली।
इधर अर्पित भी अपने घर में मम्मी पापा को खुश देखकर उसे अच्छा लगने लगा अब वो भी ज्यादातर समय श्यामलाल के साझेदारी में खुले हुए दुकान पर काम करने में लगा देता और गलत बच्चो की संगति भी छोड़ दी।
और अर्पित अब स्कूल भी जाने लगा और सारा काम स्कूल का भी पूरा करने लगा ।
अध्यापक जी भी अब अर्पित से खुश रहने लगे।
अब सब कुछ सुशीला के जीवन में बदलने लगा।
जो श्यामलाल पहले सुशीला को बहुत गाली देता और मारता था अब वो सुशीला को बहुत पसंद और प्यार करने लगा।
अब दोंनो पति-पत्नी अब एक रूम में साथ रहने लगे।
अब सुशीला को नौकरी भी करने की जरूरत नहीं पड़ी।
धीरे धीरे समय बीतता गया और श्यामलाल अब खुद की अपनी दुकान भी खोल ली ।
लेकिन सुशीला एक दिन साधु बाबा की बात सोचने लगी की बाबा बहुत सही बोले थे, सब कुछ सच में बदल गया मेरे जीवन में लेकिन मेरी बेटी अवंतिका का आज भी पता नहीं चला।
एक साल अब होने को है उसे गये हुए मेरी बेटी किस हाल में और कहाँ होगी? पता नहीं।
इधर श्यामलाल का कारोबार भी अब अच्छा चलने लगा तो अब वो अपने घर को भी पक्का बनवाने की सोचने लगा।
एक महिने में सुशीला का घर भी बन गया। बहुत शानदार और सुन्दर सा घर तैयार हो गया। और श्यामलाल घर का पूजा-पाठ करा कर रहने लगा।
सुशीला बहुत खुश हुई और एक दिन वो श्यामलाल से अवंतिका के बारे में बताने लगी और कही कि प्लीज हमें माफ कर दिजिए हम आपसे झूठ बोले कि अवंतिका हमारे दीदी के यहाँ गई है।
वो तो संदीप के साथ भाग गई है।
दरअसल हम बहुत डर गये थे कि आप क्या ही कर डालोगें ये सच सुनने के बाद?
श्यामलाल- ये बात सुनते ही कुछ नहीं बोला और कहा कि हमें सब पता है अवंतिका और संदीप ने जो किया है और हमें ये भी पता है कि वो जहाँ भी अच्छे है और खुश है।
सुशीला ये बात श्यामलाल के मुँह से सुनकर एकदम अवाक रह गई कि उन्होंने इतना आसानी से सब कैसे एक्सेप्ट कर लिया।
और कुछ रियेक्ट भी नहीं किया। और बहुत खुश हुई कि श्यामलाल सच में बहुत बदल गया था।
अब सुशीला एकदम सज झज के रहने लगी और श्यामलाल तो दिन पर दिन एकदम सुन्दर और स्वस्थ होता जा रहा था और एकदम आकर्षित लगने लगा।
कोई भी श्यामलाल को देखता तो उसे एकटक देखते ही रह जाता।
अब अर्पित भी अपनी इंटर की पढ़ाई 1st division से पास करके वो अब पूरा समय श्यामलाल के कारोबार में देने लगा।
एक दिन सुशीला पूजा कर रही थी और भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि हे! भगवान मेरी बेटी किस हालत में होगी वो कब मेरे पास आयेगी।
तभी शाम तक एक कार श्यामलाल के गेट पर आकर रूकती है।
जब सुशीला बाहर आकर देखी तो एक हैन्डसम लड़का काला चश्मा लगाए कार में से निकलता और दूसरा कार का दूसरा गेट खोलता है तभी उससें से एक प्यारी सुन्दर सी लड़की साड़ी पहने हुए एक परी जैसी गुड़िया को लेकर कार से बाहर निकलती है।
सुशील लड़के को तो नहीं लेकिन वो अपनी बेटी अवंतिका को पहचान ली और तुरन्त उसके पास जाकर उसे गले लगकर रोने लगी।
फिर कुछ ही देर में श्यामलाल और अर्पित भी आ गया।
अब सब खुशी पूर्वक अवंतिका को घर में लेकर आये।
अवंतिका ने सबसे पहले अपने मम्मी पापा से माफी मांगी और अपनी प्यारी सी गुड़िया को सुशीला के गोद में रखते हुए बोली ,मम्मी आप नानी बन गई हो और ये रहे संदीप जी।
सुशीला और श्यामलाल भी सब कुछ भूल कर उन दोनों को माफ कर देते है और संदीप को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लेते है। और अर्पित अवंतिका की लड़की गोद में लेकर उसे उछालते हुए बोलता है ये...ये.....
मैं तो मामा बन गया।
सच में जीवन बहुत अनमोल है बस सही समय का इन्तेजार करना चाहिए कभी भी परिस्थियों से घबराना नहीं चाहिए।
और अपनो के पास बैठना उठना चाहिए।
जैसे सुशीला ने जबसे श्यामलाल के पास जाकर बैठने बोलने लगी।
तबसे श्यामलाल को भी अच्छा लगने लगा।
और उनका जीवन फर्श से अर्श तक जा पहुँचा।
तो दोस्तों आपको ये कहानी कैसी लगी और इस कहानी से आप लोग क्या सीखे एक बार कमेंट करके जरूर बताइयेगा।
मिलते है किसी दूसरी कहानी के साथ तब-तक पढ़ते रहिये हमारी कहानियो को और अपना महत्वपूर्ण कमेंट देना न भुलिये।
