परिवेश बनाम अनुभव
परिवेश बनाम अनुभव
टेलिविजन पर एक प्रचार दिखाया जा रहा है... "एक लड़की अपने बाल काट रही है, पूछने पर बताती है कि वह बाल काटकर लडका बनना चाहती है ताकि वह स्कूल जा सके....हमने बच्चों से इस advertisment की चर्चा की.. वर्कशॉप में 9 से 15 वर्ष की आयु के बच्चों से बात कर रहे थे.. * 13 वर्षीय लड़की ने कहा कि हमारे देश में ज्यादातर परिवार लड़कों को वैल्यू ज्यादा देते हैं *10 वर्षीय लड़की का जवाब सुनकर मैं कुछ क्षण तक उसे देखती रह गई.... उसका कहना था... "नहीं मैडम..कुछ लोगों की कमाई उतनी नहीं होती कि घर के सारे लोगों की जरूरत पूरी हो सके...
वहां ऐसी सोच होती है कि बेटा पढ़लिखकर बड़ा आदमी बनेगा और बेटी के लिए कमाने वाला लड़का ढूढ लेंगे..." इस लड़की की परवरिश एक अनाथ आश्रम में हो रही है........ मैंने भी कही पढ़ा था कि "जिसे जिस चीज का अभाव होता है.. उसे वह बहुत अच्छे से समझता है। शायद सही है.... कहा जाता है कि परवरिश के लिए परिवेश बहुत मायने रखता है लेकिन कुछ हद तक सोच परिवेश से नहीं अनुभव से पनपती है।
