परिवार
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आज सुबह उठा तो साथ में विचार उठा कि आज तो वापस अपने कार्यस्थल की तरफ प्रस्थान करना है,मैंने ठान लिया था जैसा कल जाना वैसा आज जाना,परन्तु श्रीमती जी के भाव हम पर प्रभाव डाले हुए थे कि आज नहीं कल चले जाना, हुआ ये था कि उनके परसों ही फूफा जी चल बसे थे जो कि पुलिस में पदस्थ थे, उनके जाने का ग़म और मेरे कर्मस्थल पर चलने की तैयारी उन्हें तोड़े जा रही थी, जद्दोजहद की समझाने की जो कि काफी हद तक बेकार ही गई बस एक ही रट लगा रखी थी कि कल चले जाना, इन सबके बीच दिन का दिनकर आगे बढ़ रहा था मुझे शाम की बस से प्रस्थान करना था, इन सबके बीच में घर पर हमारी बुआओं का आगमन हुआ बड़ी बुआ को छोड़कर बाकी की तीन बुआयें आ धमकी, चलो अच्छा हुआ कि उन सब लोगों से हम एक साथ आज मिल भी पाये, फिर आपस में हालचाल - वार्तालाप शुरू हुआ, मैं बुआओं से ज्योतिषयों की तरह वार्ता कर रहा था, सारे गांव गली की बातें ऐसे बता रहा था जैसे मैं यहां प्रतिदिन निवास करता हूं, जबकि ये सारी बातें मुझे भी पिछले दो दिनों में ही मालूम हुई थीं, कमश:
