परिभाषा
परिभाषा
रीता भाभी, नमिता भाभी , और भी बहुत सी कॉलोनी की भाभियाँ व मैं अनु....हम सब सामने के गार्डन में बैठे शाम को बात कर रहे थे....तो बातों बातों में हमने सोचा कि मिलकर कही चलते है...????
किसी ने कहा पिकनिक...किसी ने कहा मूवी....तो मैंने कहा कि क्यूँ ना हम सब मनोविकास केन्द्र जहाँ मानसिक रोगी महिलायें रहती है...थोड़ा समय उनके साथ बैठेगे व कुछ खाने-पीने व जरूरत का सामान भी ले जायेगे...सभी ने अपनी सहमती दे दी....!
हमने संस्था के कार्यकर्ता से दूसरे दिन का समय ले लिया और नियत समय पर हम सब सारा सामान लेकर वहाँ पहुँच गये....सभी उम्र के लोग थे वहाँ उनके कहने पर लाईन लगाकर वो खड़े हो गये तो हमने जो सामान ले गये थे वो उनको बाँट दिया पर उन्होने वो खोलकर खाया नहीं....हम सोच रहे थे कि कौन कहेगा कि वो मानसिक रोगी है....कितने समझदार व नियम मानने वाले थे...फिर वहाँ के कार्यकर्ता ने हमें सभी कमरे दिखाये बहुत साफ व करीने से लगा था सामान...बस बिस्तर पर प्लास्टिक के मोमजामे जरुर बिछे थे ताकि बिस्तर गन्दे ना करें..!!!!
हम बाहर आकर उनके पास बैठ गये....फिर उनकी बातों से ऐसा लगा कि वो कितने दर्द में है व किसी ना किसी अपने का इंतजार कर रहे थे.....क्यूँकि वो इसलिये उनकी घर में देखभाल कौन करें तो यहाँ छोड़ गये...सच कैसे अपने थे वो....???
सच आज ज़िन्दगी में दो परिभाषाएँ बदली थी कि.....पहली....पिकनिक जाकर या मूवी जाकर सुकून नही मिलता....सुकून तो आज मिला था....दूसरी....मानसिक रोगियों का दर्द हमसे भी ज्यादा गहरा होता है....वो ज़िन्दगी को हमसे ज्यादा समझते है.....!
