#बटुआ_
#बटुआ_
गौरव अपनी दादी का बहुत लाडला था...जब वो आठ साल का था तो रोज स्कूल से आते ही वो अपनी दादी के पास जाता तो दादी उसे अपने बटुये से पाँच रू.या कभी दस रू. पर देती जरूर थी...पर अपने बटुये को किसी को हाथ नही लगाने देती थी....।!
समय बीतता गया व गौरव अब पच्चीस साल का हो गया और उसकी नौकरी भी लग गयी दस लाख सालाना....नौकरी के लिये उसे गाँव छोड़कर मुम्बई जाना पड़ा...उसे गाँव व दादी की बहुत याद आती थी....।
आज पाँच महीने बाद वो गाँव जा रहा था...आते ही सबसे पहले वो दादी के कमरे में गया पैर छूकर उसने हाथ आगे बढ़ा दिया...दादी हँसते हुये बोली...."अब मैं क्या तुझे दूँगी...अब तो तेरा बटुआ भारी है...।!"
गौरव ने बोला "तो दादी आज तो बटुआ बदल लेते हैं...आप मेरा बटुआ ले लो व मुझे अपना दे दो...।"
दादी की आँखों में आँसू आ गये...वो बोली "बेटा...तूने इतना कह दिया वही मेरे लिये बहुत है मैं इस उम्र में अब पैसे का क्या करूँगी....बस तुझे ज़िन्दगी में कोई कमी ना हो यही आर्शीवाद है...।"
फिर अपना बटुआ खोलकर उसमें से दस रू.निकालकर गौरव को देते हुये बोली..."ये बरकत के है हमेशा अपने बटुये में रखना...।!"
गौरव दादी के गले से लग गया व ठिठौली करते हुये बोला....."आपने अपना बटुआ फिर भी नही दिया ना....।"
