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अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Abstract Romance Inspirational

4.5  

अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Abstract Romance Inspirational

प्रेम योगी

प्रेम योगी

12 mins
23

 प्रस्तावना

 प्रेम उम्र का मोहताज नहीं होता, और न ही समाज के बनाए हुए नियमों का। प्रेम तो बस हो जाता है। यही कहानी है अखिल और अदिति की, जो एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे, लेकिन उनका प्यार शादी के बंधन में नहीं बंध सका, सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखते हुए भले उन्होंने विवाह न किया हो परंतु फिर भी उन्होंने दोस्ती के रूप में अपने रिश्ते को अमर बना लिया क्योंकि प्रेम का प्रमाण विवाह ही नहीं होता समर्पण होता है।

 अखिल महज़ 21 साल का एक शर्मीला, मगर बेहद होशियार लड़का था। उसे किताबों से प्यार था और उसकी दुनिया बेहद सीमित थी। एक दिन उसकी माँ ने उसे अपने पुराने स्कूल की एक मित्र से मिलवाया—अदिति। अदिति 30 साल की, करियर में सफल, आत्मविश्वासी और दुनिया देखी हुई लड़की थी। अदिति अखिल से पहली बार अपने घर आई थी, जब अखिल की माँ उसे खाने पर बुलाई थी। अदिति की हँसी में कुछ ऐसा था जो अखिल के दिल में उतर गया। वो पहली नज़र का प्यार था, जिसमें उम्र का कोई मतलब नहीं था। अखिल और अदिति के बीच बातचीत शुरू हुई। अदिति अखिल की मासूमियत से प्रभावित हुई और अखिल अदिति की समझदारी और जीवन-दृष्टि से। दोनों किताबों, फिल्मों, और जीवन के छोटे-छोटे लम्हों पर बातें करने लगे। धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गई। अखिल को यह एहसास होने लगा कि वह अदितिके से सिर्फ़ दोस्ती नहीं, उससे सच्चा प्यार करने लगा है। मगर उसे यह डर था कि अदिति उसे सिर्फ़ एक छोटा दोस्त समझती है। अखिल ने एक दिन साहस करके अदिति से अपने दिल की बात कह दी। अदिति, अखिल की बात सुनकर पहले मंद-मंद मुस्काई। उसकी आँखों में एक क्षण के लिए एक विचित्र सी चमक उभरी, मानो किसी भूले हुए स्वप्न की स्मृति फिर से जीवंत हो उठी हो। उसने अखिल के सिर पर स्नेहसिक्त हाथ रखा और अत्यंत मृदु स्वर में कहा, "अखिल, तुम्हारी बातें सुनकर मन भावविभोर हो उठा है, किन्तु जीवन के पथ पर कुछ बंधन, कुछ मर्यादाएँ भी होती हैं। तुम्हारा हृदय निष्कलुष है, तुम्हारा प्रेम निश्छल है, परंतु समाज के नियम, समय की गति और जीवन की अवस्थाएँ अपने स्थान पर अटल हैं।" अखिल की आँखें भर आईं। उसने अपनी दृष्टि झुका ली। पर अदिति ने उसके कंधे को हलके से दबाया, "अरे अखिल! प्रेम कोई सीमाओं में बंधने वाली वस्तु नहीं है। यह तो आत्माओं का संगम है। यदि हम इस प्रेम को नाम, बंधन या अपेक्षाओं में बाँध दें, तो यह प्रेम अपने पावन स्वरूप को खो देगा।" उस क्षण अखिल के हृदय में जैसे किसी योगी की जागृति हुई। वह समझ गया कि प्रेम, अधिकार नहीं है, प्रेम तो समर्पण है। प्रेम माँगता नहीं, वह तो केवल देता है। समय का प्रवाह निरंतर चलता रहा। अखिल और अदिति की मित्रता, जो अब आध्यात्मिक प्रेम का रूप धारण कर चुकी थी, और अधिक सुदृढ़ होती गई। वे संग-साथ पुस्तकालयों में बैठकर जीवन, साहित्य, और दर्शन पर चर्चा करते। कभी नदी के किनारे, कभी उद्यान की शीतल छाया में बैठकर वे प्रेम के विविध आयामों पर विचार करते। अखिल अब धीरे-धीरे एक प्रेम योगी बन रहा था। उसने अपने हृदय की समस्त कामनाओं का त्याग कर दिया था। उसका प्रेम अब किसी परिणति की आकांक्षा नहीं रखता था। वह बस अदिति के सान्निध्य में स्वयं को धन्य मानता था। अदिति भी इस विशुद्ध प्रेम को हृदय से स्वीकार कर चुकी थी। उसने अखिल से कहा, "तुम्हारा प्रेम मुझे संसार के समस्त बंधनों से मुक्त कर देता है। तुमने मुझे सिखाया है कि प्रेम, जीवन का सर्वाधिक पवित्र साधन है, न कि कोई सामाजिक लेन-देन।" अदिति ने जब अखिल से अपने मन की सीमाओं और सामाजिक बंधनों की बात कही, तो अखिल ने मुस्कुराकर सिर झुका लिया। उसने अदिति की भावनाओं को समझा, लेकिन उसका मन मानने को तैयार नहीं था। वो प्रेम जो उसने महसूस किया था, वो उसके जीवन का सत्य बन चुका था। परंतु जीवन इतना सरल नहीं था। धीरे-धीरे अदिति और अखिल की दोस्ती की बातें आस-पास के लोगों तक पहुँचने लगीं। कुछ ने अदिति की उम्र का मजाक बनाया, तो कुछ ने अखिल को "बच्चा" कहकर उनका अपमान किया। लोगों ने फुसफुसाना शुरू कर दिया— "क्या ज़रूरत है इस उम्र में ऐसे रिश्तों की?" "अखिल को अभी अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।" "अदिति को तो शर्म आनी चाहिए।" अदिति, जो समाज से हमेशा लड़ती आई थी, इस बार अंदर से हिल गई। उसने अखिल से बात करना धीरे-धीरे कम कर दिया। फोन उठाने बंद कर दिए, मिलने से कतराने लगी। अखिल परेशान हो गया, वो बार-बार अदिति से पूछता, "मैंने क्या गलत किया?" अदिति बस एक ही बात कहती— "अखिल, ये सिर्फ़ एक आकर्षण है। तुम आगे बढ़ जाओ।" अखिल का मन टूट गया। वो रात-रात भर जागता, रोता, खुद को कोसता। धीरे-धीरे उसकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उसे एंज़ाइटी की दवाइयाँ लेनी पड़ीं। माँ भी उसकी हालत देखकर व्याकुल हो उठी, मगर अखिल किसी से कुछ नहीं कहता था। उसके लिए अदिति ही दुनिया थी, और अब वो दुनिया उससे दूर जा चुकी थी। तीन वर्ष बीत गए। अखिल ने अपने आपको संभालने की कोशिश की। परंतु वह अब पहले से परिपक्व हो चुका था, मगर उसके दिल में अदिति के लिए प्रेम अब भी वैसा ही था—निश्छल, अटल। एक दिन, अचानक उसकी मुलाकात अदिति से एक बुक फेयर में हुई। अदिति अब भी उतनी ही आत्मविश्वासी दिख रही थी, मगर उसकी आँखों में कहीं एक खालीपन था। अखिल ने मुस्कुराकर कहा— "कैसी हो?" अदिति थोड़ी असहज हुई, लेकिन फिर धीरे से बोली— "ठीक हूँ। तुम कैसे हो?" अखिल ने बिना समय गंवाए कहा— "मैं अब भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ। तीन साल पहले भी किया था, आज भी करता हूँ। तुमने कहा था ये आकर्षण है, लेकिन क्या कोई आकर्षण तीन साल तक धड़कनों में बसा रहता है?" अदिति उसकी आँखों में देखती रही। इस बार उसके मन में कोई डर नहीं था, कोई हिचक नहीं थी। अखिल का प्रेम वक़्त के इम्तिहान में खरा उतरा था। "अखिल, क्या तुम जानते हो समाज आज भी वही बातें करेगा?" "हां, जानता हूँ। पर मुझे अब फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारे बिना मैंने खुद को खो दिया था। अब मुझे खुद से, अपनी जिंदगी से और तुमसे ईमानदारी चाहिए।" अदिति की आँखों से आंसू बहने लगे। वो मुस्कुरा दी। "शायद प्रेम सच में उम्र नहीं देखता।" उन्होंने शादी नहीं की। पर उनका प्रेम समाज के हर बंधन से परे एक नई परिभाषा बना गया। वे एक-दूसरे के जीवन के 'योगी' बन गए, जिन्होंने त्याग और समर्पण में प्रेम को पाया। अखिल अब भी अदिति से उतनी ही बातें करता था, पर अब किसी डर, किसी हिचक के बिना, कभी-कभी प्रेम विवाह में नहीं, जीवनभर की दोस्ती और समर्पण में अमर हो जाता है। यही सच्चा प्रेम योग है। अखिल और अदिति की कहानी एक नए मोड़ पर आ गई थी। उन्होंने समाज की परवाह किए बिना अपने प्रेम को स्वीकार कर लिया था। अब वे एक-दूसरे के साथ समय बिताने लगे, लेकिन विवाह के बंधन में नहीं बंधे। उनकी दोस्ती और प्रेम की कहानी आसपास के लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गई। लोग उनकी बातें करते, लेकिन अब नकारात्मकता के बजाय सकारात्मकता के साथ। अखिल और अदिति ने अपने जीवन को एक नए दिशा में मोड़ दिया। वे साथ में यात्रा करते, पुस्तकें पढ़ते, और जीवन के अनुभवों को साझा करते। उनका प्रेम अब एक गहरी दोस्ती में बदल गया था, जो समय और समाज की परवाह किए बिना मजबूत होता गया। अखिल और अदिति ने साबित कर दिया कि प्रेम सिर्फ विवाह में नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में हो सकता है। अखिल और अदिति का प्रेम अब एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा में बदल गया था। अखिल ने अपने प्रेम को एक योग की तरह अपनाया था, जिसमें वह अदिति के साथ अपने संबंधों को और भी गहरा बनाने के लिए काम करता था। अखिल ने अपने जीवन को सरल और सादगीपूर्ण बना लिया था। वह अदिति के साथ समय बिताने के लिए हमेशा तैयार रहता था। उनकी बातचीत अब जीवन के गहरे अर्थों और आध्यात्मिक विषयों पर केंद्रित होती थी। अदिति अखिल के प्रेम और समर्पण से बहुत प्रभावित थी। वह अखिल को एक सच्चा प्रेम योगी मानती थी, जिसने अपने प्रेम को एक उच्चतम स्तर पर ले जाने के लिए काम किया था।अखिल और अदिति की कहानी एक अद्वितीय प्रेम कहानी थी, जिसमें उन्होंने समाज की मर्यादाओं का सम्मान करते हुए अपने प्रेम को परिपूर्ण किया। उन्होंने अपने प्रेम को एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा में बदल दिया, जिसमें उन्होंने एक दूसरे के साथ अपने संबंधों को और भी गहरा बनाने के लिए काम किया। लोक मर्यादा के साथ उन्होंने प्रेम को परिपूर्ण किया, और उनके इस प्रेम को समाज ने भी स्वीकार किया। अखिल और अदिति की कहानी एक प्रेरणा बन गई, जो लोगों को सिखाती है कि प्रेम को कैसे समाज की मर्यादाओं के साथ जोड़कर परिपूर्ण किया जा सकता है। अखिल अब एक सच्चा प्रेम योगी था, जिसने अपने प्रेम को एक उच्चतम स्तर पर ले जाने के लिए काम किया था। अदिति के साथ उसका प्रेम अब एक गहरी दोस्ती और आध्यात्मिक संबंध में बदल गया था, जो समय और समाज की परवाह किए बिना मजबूत होता गया। उनकी कहानी एक उदाहरण है कि कैसे प्रेम और समाज की मर्यादाओं को एक साथ जोड़कर एक सुंदर और परिपूर्ण जीवन बनाया जा सकता है। अखिल और अदिति का विवाह अलग-अलग लोगों से हो जाता है, लेकिन उनका प्रेम और दोस्ती अभी भी बरकरार रहती है। अखिल की शादी एक अच्छी और समझदार लड़की से होती है, जो अखिल की साहित्यिक रुचियों को समझती है। अदिति की शादी एक सफल व्यवसायी से होती है, जो अदिति की स्वतंत्रता और व्यक्तित्व का सम्मान करता है। हालांकि दोनों के विवाह अलग-अलग लोगों से होते हैं, लेकिन अखिल और अदिति की दोस्ती और प्रेम अभी भी मजबूत रहता है। वे एक दूसरे के साथ समय बिताने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, और उनकी बातचीत में अभी भी वही गहराई और समझदारी होती है। समय के साथ, अखिल और अदिति के जीवन में नए अनुभव और चुनौतियाँ आती हैं। अखिल की पत्नी उसे एक अच्छा पति और पिता बनने के लिए प्रेरित करती है, जबकि अदिति के पति उसे अपने व्यवसाय में सफल होने के लिए समर्थन देते हैं। अखिल और अदिति की दोस्ती और प्रेम अभी भी उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और वे एक दूसरे के साथ अपने अनुभवों और भावनाओं को साझा करते रहते हैं। उनकी कहानी एक उदाहरण है कि कैसे दो लोग अलग-अलग जीवन जीते हुए भी एक गहरी और सच्ची दोस्ती बनाए रख सकते हैं। बिलकुल, मैं आपकी कहानी को पूरी भावना और गहराई के साथ आगे लिखता हूँ। मैं कहानी को वहीं से आगे बढ़ाता हूँ जहाँ आपने छोड़ा था, और इसमें वह भावनात्मक यात्रा जोड़ता हूँ, जो इसे और अधिक पूर्ण बना देगी। प्रेम योगी: अगले अध्याय तीन वर्षों बाद जब अखिल और अदिति फिर से मिले थे, उसके बाद उनके जीवन की राहें तो अलग रहीं, मगर दिल के धागे पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गए थे। अखिल का विवाह और संघर्ष कुछ समय बाद, अखिल का विवाह काव्या से हो गया। काव्या एक सौम्य, समझदार और साहित्य प्रेमी युवती थी, जिसने अखिल की दुनिया को धीरे-धीरे समझना शुरू किया। शादी के शुरूआती दिनों में काव्या को अखिल और अदिति की दोस्ती थोड़ी अजीब लगी, लेकिन उसने अखिल की भावनाओं में कभी कोई छल नहीं पाया। काव्या ने महसूस किया कि अखिल के दिल में अदिति के लिए जो स्थान है, वह न तो शारीरिक है, न ही कोई अधिकार वाला — वह एक निर्मल, निष्कलुष प्रेम है। फिर भी, काव्या के मन में एक हल्की सी जलन और अनबुझी जिज्ञासा बनी रही। उसने अखिल से पूछा — "क्या तुम कभी मुझे उतना प्यार कर सकोगे, जितना तुम अदिति से करते हो?" अखिल मुस्कुराया, उसकी आँखों में एक शांत प्रकाश था — "काव्या, तुम्हारे लिए मेरा प्रेम आज है, अदिति के लिए मेरा प्रेम कालातीत है। तुम्हारे साथ मैं जीवन जीता हूँ, अदिति के साथ मैं जीवन समझता हूँ। तुम मेरा वर्तमान हो, वो मेरी आत्मा का एक कोना है।" काव्या धीरे-धीरे इस प्रेम की गहराई को समझने लगी। अदिति का विवाह और जीवन का अकेलापन अदिति का विवाह एक सफल व्यवसायी राजीव से हुआ, जो उसे बहुत सम्मान देता था, परन्तु राजीव का जीवन व्यापार में इतना व्यस्त था कि अदिति अपने अंदर धीरे-धीरे अकेली होती गई। राजीव ने अदिति को कभी नहीं रोका, लेकिन कभी समझा भी नहीं। अदिति अक्सर अपनी भावनाओं की गहराई के लिए अखिल को याद करती थी। वे अब भी मिलते थे, पर अब मिलना छुपकर नहीं था। दोनों के जीवनसाथी इस रिश्ते को समझ चुके थे — अब कोई संकोच नहीं था। काव्या और अदिति की मुलाकात एक दिन, काव्या ने खुद अदिति से मिलने की इच्छा जताई। अदिति थोड़ी घबरा गई थी, पर काव्या बेहद सहज थी। "मैं तुम्हें समझना चाहती हूँ।" काव्या ने कहा। उन दोनों ने लंबी बातें कीं। काव्या ने अदिति से कहा — "तुमने अखिल को जो प्रेम दिया, वो मुझे नहीं मिला होता तो शायद अखिल वो नहीं बनता जो आज है। मैं तुमसे ईर्ष्या नहीं करती, बल्कि आभारी हूँ। तुमने मेरे पति को प्रेम सिखाया है।" अदिति की आँखें भर आईं। शायद पहली बार, उसे अपने प्रेम के लिए पूर्ण स्वीकृति मिली थी। समय की कसौटी समय बीतता गया। अखिल पिता बन गया। अदिति अपने व्यवसाय में व्यस्त होती गई। जीवन की दौड़ में वे एक-दूसरे से थोड़ा-थोड़ा दूर होते गए, लेकिन उनके बीच की आत्मीयता वैसी ही बनी रही। कभी-कभी, अखिल अपने बेटे को किताब पढ़ाते हुए अचानक रुक जाता, और सोचता — क्या वह अपने बेटे को कभी अदिति के बारे में बताएगा? क्या वह कभी इस अनकहे प्रेम की कहानी आगे बढ़ाएगा? एक दिन, अखिल के बेटे ने उससे पूछा — "पापा, सच्चा प्रेम क्या होता है?" अखिल मुस्कुरा पड़ा। उसकी आँखों में यादों की नमी झलकने लगी। "बेटा, सच्चा प्रेम वह होता है, जो पाने की जिद नहीं करता, बस साथ चलने की ख्वाहिश रखता है।" वह जानता था, यह उत्तर शायद किसी किताब में नहीं मिलेगा, लेकिन उसके जीवन की सबसे बड़ी सीख यही थी। अंतिम मोड़ समय बीतता रहा अखिल प्रौढ़ हो चला अदिति वृद्ध हुई, अखिल को पता चला कि वो बीमार है बीमारी वह उससे मिलने चला राजीव अदिति का ध्यान रख रहे थे, मगर अदिति के मन की शांति तब मिली, जब अखिल अस्पताल मिलने आया। अदिति ने कहा — "अखिल, क्या तुम जानते हो, मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी क्या थी?" "तुम्हारा साथ?" अखिल ने धीरे से कहा। "नहीं, तुम्हारा प्रेम। जो कभी मुझसे कुछ मांगता नहीं था, जो सिर्फ मुझे वैसे ही स्वीकारता था, जैसी मैं थी।" तुम्हारे साथ मैने हृदय से प्रेम किया दैहिक नहीं मैंने तुम्हारे प्रेम में भोग नहीं योग को देखा है इसलिए तुम अच्छे अर्थ में प्रेम योगी हो , और मेरा सौभाग्य रहा मुझे समझने और मुझसे प्रेम करने वाले मुझे मेरे पति राजीव मिले। अखिल की आँखों से आंसू बह निकले। "मैंने तो बस तुम्हें जीवनभर समझना चाहा, पाना नहीं।" राजीव स्तब्ध थे। अदिति मुस्कुरा दी। "तुम सच में प्रेम योगी हो, अखिल।" कुछ दिनों बाद, अदिति दुनिया छोड़ गई। लेकिन उसके जाने के बाद भी अखिल के जीवन में वह अमर रही।
 समाप्त
 - अनुपम मिश्र ' सुदर्शी ' 
उन्नाव उत्तर प्रदेश 


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