प्रेम एक प्रेरणा!
प्रेम एक प्रेरणा!
बात बहुत पुरानी है!दिन और वर्ष तो याद तो याद नहीं लेकिन वह पति और पत्नी की आत्मीयता अवश्य याद है! रामलाल का जन्मदिन था उसके जन्मदिन के अवसर पर उसकी पत्नी उमा अपने बेटे रमेश सहित रामलाल के लिए नई धोती कमीज और उपहार लेने के लिए बाजार गई हुई थी, शाम ढलते-ढलते बाजार निकली लौटते वक्त रात हो चुकी थी, अपने गांव पहुंचने ही वाली थी की जोर-जोर से हवा के साथ बिजली चमकने लगी।धीरे-धीरे बिजली की चमक के साथ पानी भी गिरने लगा था, उमा अपने गांव के नजदीक नदी के उस पार एक गांव था वहां पहुंची और बारिश ने रफ्तार पकड़ ली।
उस रात बहुत जोर से पानी गिर रहा था तेज हवा और बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बिजली की चमक हृदय की धड़कनों को तेज कर रही थी! यहाँ घर पर रामलाल का दिल बैठा जा रहा था कि उमा और रमेश अभी तक बाजार से घर वापिस क्यों नहीं आए।
रामलाल ना घर से बाहर निकल सकता था और ना ही आज के समय जैसे कोई युक्ति थी जिसके जरिए अपनी पत्नी और बच्चों का हाल-चाल पूछ लेता कि कहां पर हैं,पानी की रफ्तार तेज हो रही थी रामलाल की पत्नी और उसका बेटा दोनों बाजार से लौटकर अपने गांव आ ही रहे थे रहे थे की बरसात ने अवरोध खड़ा कर दिया! गरज के साथ हवा और बिजली, स्थिति की नज़ाकत को देखते हुए रामलाल की पत्नी उमा ने बाजार से थोड़े आगे आगे एक गांव था वहां शरण ले ली थी अत्यधिक बरसात के कारण नदी उफान पर थी इसलिए नदी को पार करना खतरे से खाली नहीं था अतः उमा अपने बेटे रामेश के साथ छगन लाल के घर पर रुक गई सोचा बारिश बंद हो जाएगी तब निकल जाएंगे, लेकिन बारिश बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी, ऊपर से नदी उफान पर थी!
यहां रामलाल को उमा की और अपने बेटे रमेश की बड़ी चिंता थी कि अब तक आए क्यों नहीं कहीं बिजली तो नहीं.... अरे नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता...
हे भगवान रक्षा करना!रामलाल अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा प्यार करता था और उससे कहीं ज्यादा स्नेह अपने पुत्र से था।ईश्वर का स्मरण करते हुए आधी रात बीत चुकी थी लेकिन बारिश ने बंद होने का नाम नहीं लिया,ऊपर से नदी उफान की चरमावस्था पर थी!क्या पता उन दोनों ने खाना खाया भी होगा कि नहीं!
इस तरह के विचारों को विचार कर रामलाल ने भूखे ही पूरी रात गुजार दी प्रातः होते ही बारिश भी बंद हो चुकी थी थी लेकिन नदी उफान पर थी जिसके चलते उमा और रमेश नदी के उस पार फंसे हुए थे नदी का बहाव तेज था तैर कर नदी पार करने का अर्थ था आ बैल मुझे मार! उमा ने अपने बेटे रमेश को भोजन करा दिया था लेकिन उसने भी यह सोच कर कि "क्या पता रमेश के पिता जी ने भोजन किया है कि नहीं "खुद ने बिना भोजन किये ही पूरी रात गुज़ार दी!
सुबह होते ही दोनों नदी के पास पहुंचे रामलाल नदी के इस पार था उमा नदी के उस पार थी दोनों ही एक दूसरे से मिलने को इस तरह व्याकुल थे जिस तरह हंस और हंसिनी का जोड़ा। रामलाल ने नदी का पानी कम होने का इंतजार ना करते हुए नदी में प्रवेश करने का फैसला किया और कूद पड़ा नदी में, पुत्र स्नेह और पत्नी के प्रेमभाव के कारण रामलाल बड़ी ही सहजता से उफान छोड़ती नदी को पार कर गया! रमेश और उमा दोनों गले मिलकर फूट-फूटकर रोने लगे।
मां और पिताजी को रोते हुए देख कर रमेश की आंखों आंखों से खुशी के आंसू छलक आए।उस रात भर की बारिश ने उमा और रमेश की आत्मीय एकता को स्पष्ट कर दिया था।
"प्रेम एक ऐसी प्रेरणा है "जो किसी भी असंभव कार्य को पल भर में संभव कर सकती है"!.......!