प्रेम और पर्यावरण

प्रेम और पर्यावरण

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हवा और पानी में गहरी दोस्ती थी, दोनो संग संग बहुत खुश थे। तभी उनके जीवन में मानव का प्रवेश हुआ, उसने दोनो की उमंगो को थाँमने के लिए गलत ढंग से उनका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। बीड़ी, सिगरेट के धुँए ने हवा की हालत खराब की और नदी-तालाबों के जल में मल-मूत्र त्यागने से जल भी बिमार हो गया। इन सभी स्थितियों से विचलित होकर प्रदूषण धरती पहुँच गया। उसने दोनो की व्यथा सुनी और उसने कहा कि मुझे लगा, मै ही गंदा, खराब और हानिकारक हूँ। मगर इंसान की सोच और कर्म तो मुझसे ज्यादा खराब है। मैने तो इसलिए जन्म लिया था, ताकि तुम्हारी सुरक्षा बनी रहे।


मगर इंसान ने अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुडाकर, मुझे ही दोष दे दिया। अब उसे इन सबसे घुटन होती है कमाल है। हवा और पानी ने कहा, अब हम क्या करे? प्रदूषण ने उन्हे प्रकृति का रास्ता बताया... जहाँ खूब हरियाली, स्वच्छ और सुन्दर वातावरण हो... वही प्रकृति माँ है, वो तो ढूँढ नहीं सके लेकिन, प्रकृति माँ उनकी गुहार सुनकर प्रकट हुई। और उनसे कहा, तुम लोग परेशान मत हो। अब प्रदूषण ही वहाँ बचा है, तुम्हे कोई गंदा नहीं करेगा और थोडे ही वर्षो में, प्रदूषण भी शुद्ध हो जायेगा। हवा ने कहा मगर हम, इतनी कम जगह में संकुचित कैसे रह सकते है? तब प्रकृति ने कहा, धरती और आकाश को तो जानते हो? पानी बोला, हा मेरे मित्र है दोनो। प्रकृति ने कहा, उन्ही से सबक लो।


अगर तुम सच्चा प्रेम करते हो तुम्हे मिलने से कोई नहीं रोक सकता। एक किस्सा सुनो, धरती आकाश से बोली, तुममे इतना बड़ा छेद कैसा, आकाश मेरा दिल है दिल तुम्हारे लिए, धरती, मगर इसमे से पानी क्यो गिरता है? आकाश जब तुम तपती हो न, तो तुम्हारी तड़प दूर करता हूँ। आकाश ने फिर कहा तुम इतनी गोल मटोल कैसे, वो तुम्हे ज्यादा पानी खर्च न करना पडें तभी मै गोलगप्पा हूँ। फिर धरती ने कहा, तुम इतने खोखले कैसे? कोई जवाब नहीं था, आकाश के पास। बार बार पूछने मे उसने खींझकर कहा, वो मेरा ठंडा खून है जो तुम्हारी तपिश दूर करता है। 


जब तुम तपती हो तो, हमसे सहन नहीं होता और मेरा दिल फट जाता है। हवा व पानी किस्सा सुनकर रोने लगते है और दोनो का सारा मैल धुल जाता है। हवा कहती है मै आकाश भईया की ऊँचाई तक पहुँचूंगी। पानी ने कहा, मै धरती भाभी की गहराई तक जाऊँगा। तभी प्रदूषण बोला, अब इंसान धरती आकाश एक भी कर दे, फिर भी तुम्हे गंदा नहीं कर पायेगा। और तुम खुशी खुशी एक दूसरे की फिक्र करना, दूरियों की नहीं, इंसान जब जब मुझे शुद्ध करेगा तब मै तुम्हे बुलाँऊगा। तब तक इंसान खाली दूषित चीजें ग्रहण करेगा, हवा व पानी प्रणाम करते हुए कहते है। प्रेम महान है हमे दूरियों में भी अब इसका बेशुमार भान है।


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