Utkarsh Srivastava

Children Stories

2.4  

Utkarsh Srivastava

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दान पुण्य

दान पुण्य

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पंडित मुंशी राम बहुत ही नेकदिल और भगवान में आस्था रखने वाले पुजारी थे। वो अपना सारा काम मुहूर्त के हिसाब से करते थे। उनका मानना था कि रोज पुण्य काम करने चाहिए। अपनी दयालुता और दरियादिली से वो कुछ ही समय में बहुत प्रसिद्ध हो गए। मुंशी जी की दो संताने राम और घनश्याम थीं। दोनों संताने बहुत नेक और ईमानदार थीं। मंदिर के दान पात्र में जमा धन मंदिर के निर्माण और मुंशी जी के घर खर्च में निकलता था। एक बार एक गरीब विधवा मुंशी जी के पास पहुंची और बोली आप बहुत दानी और कृपालु है, आपकी चर्चा दूर दूर तक है। मै अभगिन जिसको बेघर कर दिया हो आपसे विवाह करना चाहती हूं। मुंशी जी घबरा गए लेकिन जनता के सामने अपनी शान बरकरार रखते हुए उस महिला से तपाक से बोले तुम परेशान मत हो ।आने वाले रविवार को मै तुमसे विवाह करूंगा। जनता बेहद हैरान रह गई।


उनके सामने लोग उनकी तारीफ कर रहे थे तो पीठ पीछे उन्हें सनकी भी कह रहे थे। मुंशी जी बेहद गदगद थे कि उनकी तारीफे हो रही हैं। घर में बीवी की बुराई सुन सुन के तंग आ चुके थे तो उन्हें सब अच्छा लग रहा था। धीरे धीरे दिन गुजरते गए और रविवार भी आ गया। वो गरीब विधवा मुंशी जी के पास पहुंची और बोली कि "आपने मुझसे विवाह का वचन दिया था।" मुंशी परेशान हो गया खुद को संभालते हुए बोले "अरे पागल औरत मै शादी शुदा हूं वो तो मैंने तुझे पागल समझकर कह दिया होगा।" विधवा एकदम बौखला गई और उसने मुंशी को तमाचा मारते हुए कहा कि तूने एक विधवा के जज्बातों का मजाक बनाया है तुझे भगवान कभी माफ नहीं करेंगे।


विधवा मंदिर के बाहर निकाल गई। मुंशी को थोड़ी राहत मिली। दिन गुजरते गए मुंशी की ख्याति दिनों दिन बढ़ती गई। एक दिन एक डकैत मंदिर में घुस गया उसने दान पत्र से सारा धन निकाला और मुंशी के ऊपर बंदूक तान दी। उधर मंदिर के बाहर खड़ी विधवा सब नजारे देख रही थी उसने खुद के डकैत के सामने खड़ा कर दिया और बोली इन्हे जाने दो मै तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं। डकैत की नीयत डोल गई और उसने बंदूक फेंक दी। बेचारी विधवा पंडित से बोली अगर दान पुण्य और नेकी का सही मतलब दिखावा ही होता है तो मुझे नहीं करना। जों लोग सच्चे दिल से मदद करना चाहते हैं वह अपनी इज्जत को भी दांव पर लगा देते है। उनके बहुत विरोध होते है मगर वो में में सदैव भला सोचते हैं।


जिस दिन आपने कहा कि मै तुमसे विवाह करूंगा उस दिन से ही मैं आपको अपना पति मान चुकी थी,मगर आप अपनी ख्याति बढ़ाने में व्यस्त थे। इस दान पुण्य से आपका दान पात्र तो भर सकता है मगर पुण्य नहीं भर सकता। भगवान की सजा से खौफ खाकर या खुद के नेकदिल दिखाकर दान पुण्य नहीं किए जाते। सच्चा दान तो वही होता है जिसमें खुद की भी परवाह ना रहे सिर्फ भगवान का ध्यान हो। मेरे अरमानों को जिस दिन आपने कुचला मेरी शरीर जल गया तो अब इसका कोई मोल नही। मुंशी को अपनी गलती पे बहुत खेद हुआ। डकैत बालों से विधवा को खींचने लगा तो पंडित ने उसके मुड़ते ही भगवान का त्रशूल डकैत के पैर में घोप दिया।


मुंशी ने विधवा से विवाह करने का वादा किया और अपनी ओछि सोच के लिए विधवा से माफी मांगी। अब पंडित दान पुण्य में दिखावे से दूर रहने लगा और उसने अपने कर्मो पे ध्यान देना शुरू कर दिया।


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