Alka Thakur

Romance Inspirational Thriller

4.8  

Alka Thakur

Romance Inspirational Thriller

प्रायश्चित

प्रायश्चित

79 mins
515


ॐ नमः शिवाय

“मानसी जरा एक मिनट रुकना।” मानस ने आवाज लगाई तो मानसी रूक गई और पीछे पलट कर देखि तो उसने देखा मानस उसकी तरफ आ रहा हैं। मानस जब उसके पास आया तो वह बोली, 

“भाई कोई काम हैं क्या आपको मुझसे ?”

“हाँ काम तो हैं, लेकिन यहाँ नहीं बताऊंगा चलो मेरे कमरे में वही बताऊंगा।”

“क्यों कोई सीक्रेट बात हैं जो मम्मी-पापा से छुपानी हैं ?”

“नहीं छुपाना नहीं हैं उनसे लेकिन सही टाइम और सही तरीके से उन तक अपनी बात पहुंचानी हैं जिसमें मुझे तुम्हारी जरूरत हैं।” मानस बोला तो मानसी थोड़ी हैरानी से उसकी तरफ देखि और बोली, 

“आपको मम्मी-पापा तक अपनी बात पहुँचाने के लिए मेरी जरूरत हैं?”

“श्श्श क्या कर रही हो सब सुन लेंगे।” बोलते हुए मानस उसका हाथ पकड़ अपने कमरे में ले आया और दरवाजा बंद करते हुए बोला, 

“तुम तो काम होने से पहले ही बिगाड़ देती।”

“लेकिन भाई काम है क्या ?” मानस उसे अपने हाथों से रुकने का इशारा कर अपने कमरे के अलमीरे को खोलने लगा मानसी चुप हो उसे देख रही थी। कुछ देर बाद मानस एक लिफाफा लेकर उसके पास आया तो मानसी बोली, 

“भाई इसमें क्या हैं ?” मानस मुस्कुराते हुए उसे देखा और फिर उस लिफाफे में से एक तस्वीर निकाल कर मानसी की तरफ बढाया जिसे देख मानसी का हैरानी से मुंह खुला का खुला रह गया और उसकी हैरानी से भरी आँखें उस तस्वीर पर।

“सुन पहले अपना ये मुंह बंद कर पता नहीं कितने ही जर्म्स अन्दर चले गये होंगे।” बोलता हुआ मानस उसका मुंह अपने हाथों से बंद करते हुए बोला, 

“बस तुम इस तस्वीर को उन तस्वीरों में रख दो जो आज मम्मी मुझे दिखाने वाली हैं और मैं उनमें से इस तस्वीर को पसंद कर लूँगा और मेरी शादी इससे हो जाएगी।”

“नहीं, मुझसे ये नहीं होगा भाई आप इसमें किसी और की मदद ले ले मैं चलती हूँ।” बोल वह जाने लगी तो मानस जल्दी से उसका हाथ पकड़ रोकते हुए बोला, 

“अरे मेरी प्यारी बहन तू अपने भाई की मदद नहीं करेगी तो और कौन करेगा? तू तो मेरी प्यारी बहन हैं और तुझे भी पता हैं की मैं सबसे ज्यादा तुझे ही प्यार करता हूँ।”

“झूठ बोलते हैं आप भाई।” बीच में ही मानसी बोल उठी।

“अरे! ऐसा कभी हो सकता हैं ? मैं तो बस अपनी प्यारी बहन से ही प्यार करता हूँ और किसी से नहीं।” मानसी मानस के हाथों से तस्वीर लेकर उसके सामने करते हुए अपनी आँखों से इशारों में एक बार तस्वीर को देखि और दूसरी बार मानस को देखती हुई बोली, 

“तो ये क्या हैं?” मानस अपने सर के बालो को सहलाते हुए अपनी नज़रें मानसी से चुराने लगा तो मानसी बोली, 

“क्या हुआ भाई चुप क्यों हो गये अगर आप मुझसे सिर्फ प्यार करते हैं तो इनसे क्या करते हैं ?” मानसी की बात पर मानस के होठों पर मुस्कुराहट फ़ैल गई और वह बोला, 

“प्यार तो तुमसे ही करता हूँ, लेकिन चाहता हूँ की मेरी शादी इसीसे हो।”

“बिना प्यार के ही शादी ?” मानसी बोली तो मानस कुछ नहीं बोला। 

“भाई मुझे लग रहा हैं की जब आप इनसे प्यार करते ही नहीं हैं तो फिर शादी भी आपको नहीं...।”

“अरे बहुत प्यार करता हूँ न जाने कबसे।” बीच में ही मानस जल्दी से बोल बैठा और मानसी मुस्कुराती हुई बोली,

“देखा भाई मैं आपके दिल की बात आपके होठों पर ले ही आई।” मानसी की ये बात सुन मानस मुस्कुराने लगा और बोला,

“मेरी प्यारी बहन क्या मेरी मदद करेगी ?”

“जरूर करूंगी आखिर भाई के प्यार का मामला जो हैं।” मानसी मुस्कुराती हुई बोली और मानस के हाथों से तस्वीर लेकर देखती हुई बोली,

“चलिए आपको अपनी भाभी बनाने की तैयारी में लग जाती हूँ।” और कमरे से बाहर निकल गई और मानस के चेहरे पर ख़ुशी की चमक फ़ैल गई। मानस का परिवार न जाने कितने पीढियों से पॉलिटिक्स में हैं। पहले उसके दादाजी के पापा फिर उसके दादाजी और उसके बाद उसके पापा और अब मानस की बारी हैं और उसमें आने से पहले ही पूरे शहर में उसकी ही नेकी के चर्चे होने लगे हैं। चारो तरफ बस मानस का ही नाम गूंजने लगा हैं और इस बात से उसके पापा सुधीरजी बहुत खुश हैं उन्हें अपने बेटे की ऊंची उड़ान अभी से ही नजर आ रही हैं क्योंकी सारे अध्यक्ष ने फैसला किया हैं की इस बार इलेक्शन में जीतने के बाद सी.एम् के पद के लिए मानस को ही चुना जाएगा। पूरी तैयारी हो चुकी हैं और इस बात से सुधीरजी और उनकी पत्नी प्रभाजी बहुत खुश हैं, लेकिन प्रभाजी हर माँ की तरह अब मानस की शादी की जिद्द लेकर बैठ चुकी हैं। एक साल से मानस टालता आ रहा था, लेकिन अब प्रभाजी की जिद्द के आगे वह झुक गया और आज उसे किसी लड़की की तस्वीर पसंद करनी थी तो इसीलिए वह मानसी की मदद से अपनी पसंद की लड़की की तस्वीर उन तस्वीरों में भेज दिया जिससे जब देखे तो अपनी पसंद को ही पसंद करे।

.........

“मानस।”

“जी मम्मी।”

“बेटा जरा इधर आओ।” प्रभाजी बोली तो मानस उनकी तरफ चला आया और उनकी बगल की कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसे पता था की प्रभाजी उसे यहाँ क्यों बुलाई हैं और इस बात से वह परेशान हैं की मानसी ने उसका काम किया भी या नहीं। प्रभाजी उसकी तरफ एक लिफाफा बढाती हुई बोली

“मानस इन तस्वीरों में से एक तस्वीर तुम पसंद कर लो और हाँ आज कोई बहाना नहीं अभी ही मुझे जवाब चाहिए।” मानस क्या बोल सकता था वह अपने धड़कते दिल से प्रभाजी के हाथों से वह तस्वीरों वाला लिफाफा ले लिया और उसमें से एक-एक करके तस्वीर निकालने लगा और सामने की टेबल पर रखने लगा प्रभाजी उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। मानस उड़ती नज़रों से तस्वीर को देखता और रख देता किसी को ध्यान से नहीं देख रहा था।

“मानस ये कैसे तस्वीर देख रहे हो ? ऐसे देखोगे तो फिर कोई कैसे पसंद आएगी? कम-से-कम एक नजर देख तो लो अच्छी तरह।” उनकी बात सुन मानस बेमन उन तस्वीरों को देखने लगा।

“ये मानसी ने वो तस्वीर इसमें डाली या नहीं डाली?” मानस अपने दिल में बोला। 

“मानस क्या सोच रहे हो ?” उसे सोचते देख प्रभाजी बोली तो मानस कुछ नहीं में अपना सर हिला कर फिर से तस्वीर देखने लगा और अब हर तस्वीर निकालने से पहले ईश्र्वर से प्रार्थना करता फिर निकालता लेकिन जो तस्वीर वह ढूंढ रहा था वह निकल ही नहीं रही थी। मानस अपनी नज़रें घुमा कर मानसी को ढूंढने लगा तो प्रभाजी उससे इस तरह किसी को ढूंढते देख बोली, 

“क्या हुआ मानस किसी को ढूंढ रहे हो क्या ?”

“नहीं तो।” मानस जल्दी से बोल उठा और फिर से तस्वीरे निकालने लगा और फिर उसकी आँखों में चमक आ गई और वह अपनी पसंद की तस्वीर प्रभाजी की तरफ बढ़ा दिया और वहाँ से चला गया क्योंकी उसे डर था की उसकी ख़ुशी उसके चेहरे पर आकर उसकी पोल न खोल दे। प्रभाजी उस तस्वीर को कुछ देर तक देखती रही। सिंपल सी एक लड़की जिसे देखकर ही पता चल रहा था की ये किसी मिडिल क्लास फैमली की हैं और ये तस्वीर इनमें शामिल होना उन्हें हैरानी दे रही थी। जहाँ बड़े-बड़े बिजनेस मैन और नेताओ के परिवार की लड़कियों की तस्वीर थी उसमें ये तस्वीर उन्हें कुछ ज्यादा ही हैरान कर रही थी, लेकिन बेटे की पसंद यही थी तो वह उस तस्वीर वाली के बारे में पता करने को बोली और इधर मानस मानसी के इस काम से खुश हो उसे उसके मनपसंद तोहफे देने की तैयारी में लग गया था और मानसी के सामने एक पैकेट बढ़ाते हुए बोला, 

“ये तुम्हारे काम का इनाम।” मानसी हैरानी से मानस के हाथों से पैकेट लेते हुए बोली, 

“क्या हैं इसमें भाई ?”

“खुद खोल कर देख लो।” मानस की बात सुन मानसी जल्दी से पैकेट खोलने लगी और मानस उसे वही खड़ा देख रहा था। पैकेट खोलते ही मानसी ख़ुशी से चहकती हुई बोली, 

“भाई मेरे लिए इतना खुबसूरत पेंडेंट जिसमें हीरे लगे हुए हैं और इतनी खुबसूरत ड्रेस ?”

“और जब मेरी उससे शादी हो जाएगी तो मैं तुमसे वादा करता हूँ तुम्हे हीरो का सेट दिलवाऊंगा और होलीडे के लिए तुम्हे गोआ ले जाऊंगा।” मानस की बात सुन मानसी हैरानी से उसे देखि मानस के चेहरे पर फैली ख़ुशी उसे बता रही थी की मानस उसको कितना पसंद करता हैं।

“जरूर होगी भाई आपकी शादी उनसे ही होगी।” तभी प्रभाजी कमरे में आई और बोली, 

“मानस बेटा उस लड़की की तस्वीर शायद गलती से उन लिफाफों में आ गई थी तो आप उसे छोड़ बाकियों की तस्वीर से कोई अच्छी तस्वीर पसंद कर लीजिये।” उनकी ये बात सुन मानस के चेहरे की ख़ुशी गायब हो गई उसके चेहरे का रंग उड़ गया जो मानसी महसूस कर रही थी तो वह बीच में ही बोली, 

“मम्मी जब भाई ने किसी को पसंद कर लिया हैं तो फिर और तस्वीर की क्या जरूरत हैं उनसे ही भाई की शादी करवा दीजिये न।” मानसी की बात सुन प्रभाजी बोली, 

“बेटा नहीं हो सकती हैं न।”

“क्यों नहीं हो सकती हैं मम्मी ?”

“क्योंकी मानस की शादी किसी ऊंचे घर में और पावरफुल लोगो के घर में ही हो सकती हैं और ये तो एक मामूली स्कुल टीचर की मामूली सी बेटी हैं तो इससे मानस की शादी कैसे हो सकती हैं।”

“मम्मी! ये कोई रीजन हुआ पहले आप बोली की जिसे भाई पसंद करेंगे उसी से उनकी शादी होगी और अब जब भाई को कोई पसंद आ गइ तो आप इन छोटी बातों के लिए रिश्ते से मना कर रही हैं।” मानसी बोली तो प्रभाजी एक बार मानस की तरफ देखि वह अपना चेहरा नीचे किये उनकी बातें सुन रहा था।

“बेटा तुम अभी छोटी हो तुम ये बातें नहीं समझोगी।” प्रभाजी उसे समझती हुई बोली।

“तो समझाइये।” मानसी बोली। 

“बेटा देखो हमारा परिवार कितने ही सालो से इस राजनीती में हैं हमारे घर की कुछ अपनी पहचान हैं तो फिर हमें उसी तरह का जीवन जीना पड़ेगा।” प्रभाजी की बात से मानसी का मूड थोड़ा बिगड़ गया था तो वह बोली, 

“मम्मी आप मुझे एक बात बताइए भाई के लिए कैसा रिश्ता होना चाहिए आपकी और पापा की नज़रों में ?” उसकी बात सुन प्रभाजी बोली, 

“देखो लड़की सुन्दर होनी चाहिए उसकी एजुकेशन हाई होनी चाहिए जैसा की मानस का हैं उसके पापा चाहे बहुत बड़े बिजनेस मैन, या बहुत बड़े ऑफिसर या बहुत बड़े नेता होने चाहिए जिनकी पहुँच ऊपर तक होनी चाहिए। उसका कम से कम एक भाई होना चाहिए और जो मानस के बराबरी का हो। उसकी फैमली हमेशा से पावरफुल होनी चाहिए बस इतना ही इससे ज्यादा नहीं।” प्रभाजी की बात सुन रही मानसी अपनी हैरानी भरी आँखों से उन्हें देखते हुए बोली, 

“बस इतनी सी मांग हैं आपलोगों की ?”

“हाँ।” उसकी बात सुन प्रभाजी बोली।

“और क्या बाकि रहा मम्मी, आपने तो लड़की नहीं बल्कि पावर की चाहत रखी हैं आपको भाई के लिए दुल्हन नहीं बल्कि दुल्हन की जगह पर पावर चाहिए।” मानसी थोड़ी नाराजगी से बोली।

“यहाँ क्या हो रहा हैं ?” सुधीरजी कमरे में आते हुए बोले तो तीनो उनकी तरफ देखने लगे। सुधीरजी की नजर मानस पर पड़ी तो वह बोले, 

“तो मानस ने लड़की पसंद कर ली ?” उनकी बात सुन प्रभाजी उनकी तरफ तस्वीर बढ़ा दी जिसे देख उनकी भौंहे सिकुर गई और उसकी जो जानकारी प्रभाजी ने निकाली थी उसे पढ़कर तो वे तुरंत बोले, 

“ये शादी नहीं हो सकती हैं।” और उनकी बात सुन मानस तुरंत बोला, 

“तो मैं कभी शादी नहीं करूंगा।” मानस की बात सुन सुधीरजी और प्रभाजी हैरानी से उसे देखने लगे।

“मानस ये क्या बेवकूफी भरी बातें कर रहे हो। तुम्हे पता भी हैं की तुम क्या बोल रहे हो ?”

“हाँ पापा मुझे पता हैं और आज तक आप जो बोले मैं मानता रहा बस मेरी एक ये जिद्द पूरी कर दीजिये क्योंकी मैं अगर कभी शादी करूँगा तो इसी से नहीं तो कभी भी नहीं करूँगा।” मानस अपना फैसला सुना दिया जिसका सपोर्ट मानसी ने भी किया। सुधीरजी और प्रभाजी कितनी कोशिश किये उसे मानाने की लेकिन वह नहीं माना और अपना फैसला सुना कमरे से बाहर चला गया। प्रभाजी और सुधीरजी परेशान से बस उसे जाते हुए देखते रहे।

........

मानस अपने कमरे में दुखी हो अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था तभी मानसी उसके कमरे में आई और उसे इस तरह उदास देख दुखी हो गई। जो भाई हर वक्त खुश रहता था आज वह उदास अपने कमरे में दो दिनों से बंद था न खाना खा रहा था और न ही किसी से बातें कर रहा था। मानसी उसके पास आकर उसके बगल में बैठती हुई बोली,

“भाई आप इस तरह परेशान रहेंगे तो हम सब भी तो खुश नहीं रहेंगे।” मानस उठकर बैठते हुए बोला,

“मानसी पापा मेरी फीलिंग क्यों नहीं समझ रहे हैं मुझे कोई पावरफुल घर में शादी नहीं करनी हैं मुझे बस उसी से शादी करनी हैं और किसी से नहीं।” मानसी को महसूस हो रहा था की वह लड़की मानस के लिए क्या हैं तभी कमरे में सुधीरजी की आवाज गूंजी।

“और जब वही तुमसे शादी नहीं करना चाह रही हैं तो हम क्या करे ?” उनकी बात सुन मानसी और मानस उनकी तरफ देखने लगे तो सुधीरजी बोले,

“तुम्हारे जिद्द के खातिर गया था वहाँ तुम्हारे रिश्ते की बात करने लेकिन लड़की ने साफ़ मना कर दिया इस शादी से।”

“क्या उन्होंने भाई से शादी करने से मना कर दिया ?” मानसी हैरानी से बोलती हुई मानस की तरफ देखि।

“हाँ और यकीन नहीं हो रहा हो तो अपनी मम्मी से पूछ लो उन्होंने भी सुना था की लड़की के पापा ने बोला की उनकी बेटी ये शादी नहीं करनी चाहती हैं।”

“अब तुम ही अपने भाई से पूछो की हम क्या करे ?” सुधीरजी बोले तो मानस तुरंत बोला,

“फिर से कोशिश करिये।” और उसकी इन बातों ने सुधीरजी को महसूस करा दिया की मानस अपनी ये जिद्द नहीं छोड़ेगा। वे कमरे से बाहर चले गये और बाहर आते ही प्रभाजी से बोले,

“ये तुम्हारा लाडला एक नंबर का जिद्दी हैं पता नहीं उस लड़की में इसे क्या नजर आया की इस तरह जिद्द पर अड़कर बैठा हैं न ही खा रहा हैं न ही कमरे से बाहर आ रहा हैं और न ही अपनी ये जिद्द छोड़ रहा हैं।”

“तो अब आप क्या करेंगे ?” प्रभाजी बोली।

“क्या करूंगा उस लड़की को मनाऊंगा चाहे पैर ही क्यों न पकड़ने पड़े आखिर मानस की जिंदगी का सवाल हैं दो ही दिनों में उसका चेहरा कैसा हो गया हैं और देर हुई तो पता नहीं।” बोलते-बोलते वह चुप हो गये दोनों के चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी मानस की जिद्द की वजह से। सुधीरजी कमरे से बाहर चले गये प्रभाजी परेशान सी एक बार मानस के कमरे की तरफ देखि और फिर चली गई।

........

चारो तरफ खुशियाँ फैली हुई थी। लड़की को अपने परिवार और सुधीरजी के प्रेशर के आगे झुकना पड़ा था और मानस और अंशिका की शादी की तैयारी जोरो पर थी। मानस के ख़ुशी का ठिकाना नहीं था वह मानसी को अभी ही हीरो का सेट दे दिया था और उसके चेहरे पर फैली ख़ुशी सुधीरजी और प्रभाजी को अच्छी लगी थी। घर के लाडले और इस घर का इकलौता वारिस और साथ-साथ आने वाले वक्त का होने वाले सी.एम् की शादी हो रही थी तो फिर पूरा शहर सज रहा था। हर तरफ मानस की शादी के ही चर्चे हो रहे थे। बहुत से लोग ना खुश थे इस शादी से क्योंकी उनकी बेटी को निग्लेट कर इस मामूली सी लड़की से जो सुधीरजी मानस की शादी कर रहे थे, लेकिन चुप थे कुछ बोल नहीं सकते थे क्योंकी अभी पूरा पावर मानस की वजह से सुधीरजी के साथ जो था तो चुप रहने में ही उनकी भलाई थी और देखते-देखते शादी का दिन भी आ गया आज मानस अपनी गाड़ी में सवार अपनी दुल्हन को लाने निकल पड़ा। ऐसा लग रहा था कोई राजकुमार अपनी शेह्जादी को लेने जा रहा हो और बारात होटल के द्वार पर लगी तो अंशिका के माँ-पापा उनके स्वागत के लिए आगे आये। जब मानस अपनी गाड़ी से शेरवानी में निकला तो वे दोनों कुछ देर तक उसे देखते रह गये वह किसी राजकुमार की तरह लग रहा था और उन्हें अपनी बेटी की किस्मत पर गर्व होने लगा और वह बड़े प्यार और सम्मान से मानस को अन्दर लाये और स्टेज पर बैठाये।

“अरे भाई थोड़ा पेशेंस रखिये भाभी आती ही होंगी।” मानस को अपनी नजर घुमाते हुए अंशिका को ढूंढते देख मानसी शरारत से बोली तो मानस मुस्कुराने लगा।

“अरे भाई देखिये भाभी के पास ये खबर चली गई की आप उनसे मिलने के लिए बेसब्र हुए जा रहे हैं वे आ गई।” उसकी बात सुन मानस मुस्कुराते हुए उसके सर पर प्यार से चपत लगाते हुए उधर देखने लगा जिधर से अंशिका आ रही थी। दुल्हन के जोरे में कुछ लड़कियों के साथ अंशिका आ रही थी लेकिन उसका चेहरा घूँघट में था जिस वजह से मानस मायूस हो गया और मानसी भी मायूस होकर बोली,

“उफ़! अभी और इंतजार करना पड़ेगा भाभी का चेहरा देखने के लिए।” मानसी की बात सुन अंशिका के पापा महेशजी बोले, 

“बेटा हमारे यहाँ शादी से पहले दुल्हन को दूल्हा नहीं देखता हैं अपशगुन माना जाता हैं।”

“ओ।” बोल मानसी शरारत से मानस की तरफ देखि तो मानस झूठी मायूसी अपने चेहरे पर लाकर मानसी की तरफ देखा तो मानसी खिलखिला कर हँसने लगी। लड़कियों के साथ आंशिका स्टेज पर आ चुकी थी तो मानस उठ कर खड़ा हो गया फिर लड़कियों और लड़कों की नोक-झोक में जयमाल हुआ और दोनों को मंडप में बिठाया गया जैसे-जैसे रस्मे पूरे हो रहे थे मानस की खुशियाँ यह सोच बढती जा रही थी की अब अंशिका उसकी हो रही हैं।

“बस कुछ और रस्मे फिर अंशिका हमेशा के लिए मेरी हो जाएगी।” मानस अपने दिल में बोला और घूँघट में बैठी अंशिका की तरफ देखा और फिर देखते-देखते विदाई का समय हो गया और अंशिका के रोने से हर तरफ माहौल उदास हो गया और बड़ी ही मुश्किल से अंशिका को मानस की गाड़ी में बिठाया गया और गाड़ी अपनी मंजिल की तरफ निकल गई एक घर की खुशियाँ अब दुसरे घर के लिए निकल चुकी थी जहाँ कुछ देर तक रौनक थी वही अब ख़ामोशी और उदासी फैली हुई थी।

........

मानस की गाड़ी उसके घर के आगे आकर रूकी तो उसके घर में नई बहूँ के स्वागत की तैयारी शुरू हो गई और प्रभाजी आरती की थाल ले दरवाजे के पास आई। मानसी नई बहु को अपने सहारे दरवाजे पर लाई और प्रभाजी बड़े प्यार से अपनी बहु की आरती उतारी और मानसी अंशिका के पैरो से कलश गिराती हुई उसे लेकर अन्दर चली आई और साथ में मानस भी अन्दर आया। अंशिका अभी भी घूँघट में थी और मानस उसकी एक झलक पाने के लिए बेचैन था, लेकिन कुछ कर नहीं सकता था क्योंकी यहाँ भी यही बोला गया था की जब तक सारी रस्मे पूरे नहीं होते और मुंह दिखाई नहीं होती तब तक अंशिका घूँघट में ही रहेगी। मानस एक बार घूँघट में अपने परिवार वालो के साथ बैठी अंशिका को देखा और वहाँ से चला गया और मानसी उसके इस हाल पर मुस्कुराने लगी और अंशिका के कानो के पास अपना मुंह लाकर धीरे से बोली,

“भाभी बेचारे भाई आपको देखने के लिए बेचैन हैं और ये रस्मे ख़त्म ही नहीं हो रही हैं की भाई आपको देख सके।” मानसी की बात सुन घूँघट में बैठी अंशिका अपने आप में सिमट गई। सारे दिन रस्मे होती रही तो जब रात हो गयी तो,

“अरे मानसी बेटा आप भाभी को उनके कमरे में ले जाइये कुछ देर आराम कर लेगी।” प्रभाजी बोली।

“जी मम्मी।” बोल मानसी अंशिका को उन सबके बीच से उठा कर उसे उसके कमरे में ले आई। ये कमरा मानस का था जो आज फूलो से सजा हुआ था। मानसी अंशिका को फूलो से सजे बेड पर बैठाती हुई बोली,

“भाभी अब आप कुछ देर आराम करिये और मैं भाई को भेजती हूँ।” बोल मानसी जैसे ही जाने लगी की अंशिका अपने हाथों से उसका हाथ पकड़ ली। मानसी मुस्कुराती हुई उसके पास बैठती हुई बोली,

“भाभी आप घबरा क्यों रही हैं? मैंने बोला की मैं भाई को भेज रही हूँ और मेरे भाई दुनिया के बेस्ट बेटे बेस्ट भाई हैं और अब बेस्ट पति बनने वाले हैं तो आप बिलकुल मत घबराइए।” बोल मानसी घूँघट में बैठी अंशिका को प्यार से गले लगाई और फिर उसके पास से उठ बाहर चली गई और बाहर आकर मानस को कमरे में जाने को बोली तो मानस ख़ुशी से उठा और अपने कमरे की तरफ जाने लगा तो मानसी पीछे से बोली, 

“भाई मेरी भाभी को परेशान मत करियेगा क्योंकी मैंने ओवरकॉन्फिडेंस में ये बोल दिया की आप बहुत अच्छे हैं और वे न घबराये आप उन्हें परेशान नहीं करेंगे।”

“अच्छा तो भाभी के आते ही भाई पर शक करने लगी।” मानस बनावटी गुस्सा करते हुए बोला।

“नहीं बात ये हैं की मेरी भाभी बहुत प्यारी और अच्छी हैं और आप।” उसके बोलने के बीच में ही मानस उसकी तरफ बढ़ा तो वह भागते हुए बोली, 

“आज कल आप कुछ अलग-अलग से लगने लगे हैं।”

“हाँ पास आओ बताता हूँ क्या लगने लगा हूँ।” मानस बोला तो वह भागते हुए ही फिर बोली, 

“ध्यान रहे मेरी भाभी को परेशान मत करियेगा।” बोलती हुई वह वहाँ से भाग गई और उसकी बातों से मानस के होठों पर मुस्कुराहट आ गई और वह अपने कमरे की तरफ चला आया दरवाजा खोल अन्दर आया तो उसे फूलो से सजे बेड पर दुल्हन के कपरो में घूँघट में बैठी अंशिका नजर आई और उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। कुछ देर वह वही खड़ा घूँघट में बैठी अंशिका को देखता रहा और फिर धीरे-धीरे अपने कदमो को अंशिका की तरफ बढ़ता हुआ अंशिका के पास पहुंचा और अंशिका के सामने बेड पर धीरे से वह बैठ गया आज उसके अन्दर अलग से भाव पैदा हो रहे थे। वह अंशिका से शादी होने से खुश हैं अंशिका अब हमेशा के लिए उसकी हो चुकी हैं और अंशिका उसके इतने पास बैठी हैं। वह अपने अन्दर अजीब सी हलचल महसूस कर रहा था। क्या बोले कैसे बात शुरू करे? उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। जिसको पाने के लिए वह खाना छोड़ा बाहर निकलना भी छोड़ दिया था और पागल हो रहा था आज वह अंशिका उसके इतने पास हैं और वह बस उसे घूँघट में बैठे देख रहा था और लगभग एक घन्टे बाद बड़े ही मुश्किल से वह धीरे से बोला, 

“अंशिका।” और जवाब में अंशिका अपने आप में सिमट गई। मानस अपना हाथ आगे बढ़ाया और सर झुकाई घूँघट में बैठी अंशिका के चेहरे से धीरे से घूँघट हटाया और नज़रें नीचे की हुई दुल्हन बनी अंशिका को बस देखता रह गया उसके खुबसूरत चेहरे को देखते ही वह खो सा गया और बस उसे देखता रह गया। न जाने कितने देर तक वह इसी तरह उसे देखता आ रहा था और उसके इस तरह अपने तरफ देखने से अंशिका परेशान हो रही थी। वह अपने आप में सिमटती जा रही थी। उसके चेहरे की घबराहट देख मानस बेड से उठते हुए बोला, 

“अंशिका अभी आप आराम करिये।” बोल वह कमरे से चला गया और अंशिका अपने घुटने में सर छुपा फुट-फुट कर रोने लगी। अपनी बेबसी पर न चाहते हुए भी उसे ये शादी करनी पड़ी थी अपने परिवार वालो के जिद्द और मानस के पावरफुल परिवार वालो के आगे वह अकेली लड़की हार गई और आज मानस की दुल्हन बन उसके घर आ गई थी। किसी ने उसकी ख़ुशी के बारे में नहीं सोचा था और वह अपनी बेबसी पर रो रही थी उस सजे कमरे में बस अंशिका की सिसकियाँ गूंज रही थी।

मानस के ख़ुशी का ठिकाना नहीं था आज उसे उसकी अंशिका मिल गई थी वह गेस्ट रूम में लेटे अपने आगे की जिंदगी के बारे में सोच रहा था।

“मैं अपनी अंशिका की जिंदगी को ढेर सारी खुशियों से भर दूंगा एक पल के लिए भी उनकी जिंदगी में दर्द तकलीफ नहीं आने दूंगा एक बार भी उनकी आँखों में आँसू नहीं आने दूंगा। अंशिका मैं आपसे वादा करता हूँ आपकी जिंदगी खुशियों से हमेशा भरी रहेगी आपने जो मुझ पर एहसान किया हैं मेरी जिंदगी में आकर वह मैं कभी नहीं भूलूंगा और हमेशा आपका ये पति आपके हर फैसले में आपका साथ देगा आपके हर सुख दुख में आपकी ढाल बन खड़ा रहूँगा आपका हर फैसला मुझे मंजूर होगा ये आपसे आपके पति का वादा हैं।” और न जाने कितने वादे मानस अपने दिल में मानसी से करता रहा सारी रात और उसकी आँख लग गई। 

......... 

सुबह प्रभाजी की नजर मानस पर पड़ी।

“अरे मानस तुम यहाँ क्यों सोये हो ?” उनकी आवाज सुन मानस जल्दी से अपनी आँखें खोला और सामने प्रभाजी को देख जल्दी से बेड पर उठकर बैठते हुए बोला, 

“वो आज से पहले कभी किसी के साथ कमरा शेयर नहीं किया था तो वहाँ नींद नहीं आई तो कुछ देर पहले ही यहाँ चला आया।”

“ये क्या बात हुई मानस तुम अंशिका को अकेले छोड़ कर यहाँ चले आये वह यहाँ किसी को नहीं जानती हैं बस उसकी पहचान के तुम्ही यहाँ हो सोचो उसे कुछ जरूरत होगी तो किससे बोलेगी।” प्रभाजी थोड़ी नाराजगी से बोली तो मानस जल्दी से उठ अपने कमरे की तरफ चला गया अगर ज्यादा देर करता तो ज्यादा सुनना पड़ता उसे प्रभाजी से। उसके जाते ही, 

“ये लड़का भी कब क्या करता हैं कुछ समझ नहीं आता हैं मुझे। पहले उसी अंशिका के लिए पागल था और अभी उसे अपने कमरे में देख परेशान हो रहा हैं।” बोलती हुई वह वहाँ से चली गई। मानस अपने कमरे में आया तो उसने देखा अंशिका रात वाले कपड़ो में नहीं थी।

“लगता हैं अंशिका तैयार हो गई हैं।” अंशिका की नजर मानस पर पड़ी तो वह अपनी कदमें पीछे कर ली।

“अंशिका आपको कुछ चाहिए?” बोलते हुए मानस की नजर अंशिका के चेहरे पर पड़ी तो उसने देखा अंशिका के चेहरे पर घबराहट फैली हुई हैं और उसकी झुकी पलको पर आँसू आकर रुके हुए हैं मानस परेशान हो उठा।

“अंशिका क्या हुआ आपको ?” बोलता हुआ मानस अपने कदम उसकी तरफ बढाया तो आंशिका अपने कदम पीछे की तरफ बढाई जितने कदम मानस उसकी तरफ बढ़ा रहा था उतने ही कदम अंशिका पीछे जा रही थी जिसे महसूस कर मानस अपनी कदम रोक लिया और दूर से ही बोला, 

“अंशिका क्या हुआ कुछ बोलिए ?” लेकिन वह कुछ नहीं बोली बस उसके रुके आँसू उसके गालो पे लुढ़कते चले गये और मानस घबरा कर अपने कमरे से निकल मानसी के कमरे में आया और मानसी जब मानस को घबराये देखि तो वह भी परेशान हो गई।

“भाई क्या हुआ आप इतने परेशान और घबराये हुए क्यों हैं ?”

“मानसी अंशिका बहुत परेशान हैं और रो रही हैं।”

“क्या भाभी रो रही हैं ?”

“हाँ।”

“आपने उनसे पूछा वे क्यों रो रही हैं ?” मानसी परेशान होकर बोली, 

“हाँ।”

तो वे क्या बोली ?”

“कुछ नहीं बोली बस रोती ही जा रही हैं।”

“हाँ और आप उन्हें चुप करने के बजाय यहाँ आ गये हैं।” बोलती हुई मानसी मानस के कमरे की तरफ चली गई और मानस परेशान सा वही मानसी के कमरे में चहल कदमी करने लगा। मानसी कमरे में आई तो अंशिका को देख उसके पास आकर प्यार से बोली, 

“भाभी क्या हुआ आप इतनी परेशान क्यों हैं ?” मानसी की प्यार भरी बातें सुन अंशिका उसके गले लग बस रोती चली गई और मानसी परेशान उसे चुप करने की कोशिश करने लगी। बहुत कोशिश के बाद मानसी उसे चुप करा पाई और जब वापस कमरे में आई तो, 

“मानसी क्या बात थी अंशिका क्यों रो रही थी ? क्या उन्होंने तुम्हे अपने रोने की वजह बताई ? क्या अब वह ठीक हैं ?” मानस घबरा कर मानसी के कमरे में आते ही पूछा।

“भाई एक काम करिये एक कागज पे अपने सारे सवाल लिख कर दे दीजिए मैं पढ़कर जवाब दे दुंगी।” मानसी की बात सुन मानस बोला, 

“माफ़ कर दो अपने भाई को बात ये थी की अंशिका का हाल देख घबरा गया था।” मानसी एक बार मानस की तरफ देखि उसके चेहरे पर बहुत ज्यादा घबराहट नजर आ रही थी।

“भाई, भाभी ठीक हैं उन्हें अपने घर वालो की याद आ गई थी इसी वजह से रो पड़ी थी।”

“ओ.. मैं तो घबरा ही गया था इस बात से अच्छा तो एक काम करता हूँ कुछ दिनों के लिए उन्हें उनके घर छोड़ देता हूँ जब उनका दिल करेगा तो उन्हें ले आऊंगा।” मानस बोला तो मानसी उसे याद दिलाती हुई बोली, 

“भाई, भाभी कल ही यहाँ आई हैं और अभी कुछ दिनों में आप दोनों की शादी की पार्टी होने वाली हैं और उससे पहले मुझे नहीं लगता हैं की कोई भाभी को यहाँ से जाने की इजाजत देंगे।”

“तो अब मैं क्या करू ?” मानस परेशान होकर बोला।

“बस तब तक आप भाभी को खुश रखने की कोशिश करिये और उन्हें महसूस करवाइए की आप उनसे कितना प्यार करते हैं।” मानसी की बात सुन मानस कुछ बोला नहीं बस कुछ सोचने लगा।

........

मानस और अंशिका की शादी के पाँच दिन हो गये लेकिन मानस की अंशिका से अब तक एक भी बात नहीं हुई थी। जब भी अंशिका का सामना मानस से होता तो वह घबरा कर उससे दूर चली जाती और जब रात में मानस अपने कमरे में आता तो अंशिका के घबराये चेहरे को देख वापस गेस्ट रूम में चला आता और सोचते हुए अपनी रातें बिताता। इन दिनों अंशिका बस मानसी के क्लोज हुई थी एक दो उसकी बातों का जवाब दे देती थी। बाकि सबके साथ वह नॉर्मल रहती थी बस मानस से दूर रहती उसे देख घबरा कर अपने आप में सिमट जाती और मानस बस उसे देखता और उससे दूर चला जाता ये सोच कर की सबकुछ कुछ दिनों में ठीक हो जायेगा और अंशिका के साथ वह अपनी जिंदगी उसी तरह जियेगा जिस तरह जीने का ख्वाब उसने देखा था। दो दिनों में उसकी शादी की पार्टी होने वाली थी जिसमें बड़े-बड़े लोग शामिल होने वाले थे सारे लोग उसी में लगे हुए थे। प्रभाजी और सुधीरजी पार्टी की हो रही तैयारी देखने होटल गये हुए थे मानस किसी काम से बाहर गया हुआ था काम ख़त्म कर घर वापस आया और अपने कमरे में आया तो उसने देखा अंशिका खिड़की के पास खड़ी बाहर की तरफ देख रही हैं नीले रंग की साड़ी में वो मानस को बहुत प्यारी लग रही थी। मानस खड़ा उसे देखने लगा तभी अंशिका की नजर मानस पर पड़ी तो वह घबरा कर कमरे से बाहर जाने लगी तो मानस उसके सामने आकर खड़ा हो गया तो वह साईड से निकलने लगी और आज पता नहीं मानस को क्या हुआ वह अंशिका का हाथ पकड़ लिया। अंशिका अपना हाथ उसके पकड़ से छुराने की कोशिश करने लगी, लेकिन मानस ने हाथ नहीं छोड़ा और उसके पास आकर खड़ा हो गया। अंशिका बड़े ही जोर लगाकर अपना हाथ उसके हाथों से छुड़ाई और कमरे से बाहर चली गई। मानस अन्दर आया और जिन पेपरों को लेने कमरे में आया था उन्हें अपने अल्मीरे से निकाला तभी उसके कानों में किसी की चीखने की आवाज आई तो वह जल्दी से कमरे से बाहर भागता हुआ आया आवाज किचन से आ रही थी तो वह किचन की तरफ चला आया। वहाँ काम करने वाली और मानसी को घबराया हुआ देखा तो कुछ कदम अन्दर आया तो उसके होश उड़ गये आंशिका का हाथ मानसी अपने हाथों में पकड़े हुए रोती हुई बोल रही थी।

“भाभी आपका ये हाथ इतना कैसे जल गया ?” तभी मानसी की नजर मानस पे पड़ी तो वह उसी तरह अपने आँसू बहाती हुई बोली, 

“भाई देखिये न भाभी का ये हाथ कैसे इतना जल गया।” मानसी की बात सुन अंशिका की नजर मानस पर पड़ी और मानस की नजर अंशिका की नज़रों से मिली तो उसके हाथों से सारे पेपर छूट कर नीचे गिर गये और उसके कदम अपने आप पीछे की तरफ हो गये और वह जल्दी से अपने कमरे में चला आया।

“मेरे छूने की वजह से अंशिका ने अपने उस हाथ को इस तरह जला दिया।” मानस का सर फटने लगा शादी से लेकर अब तक की सारी बातें मानस के दिमाग में घुमने लगी और आज की बात से वह पूरी तरह घबरा गया था। उसे अंशिका की आँखों में उसके लिए चेतावनी साफ नजर आ रही थी की अगर वह अंशिका के करीब जाने की कोशिश करेगा तो वह क्या कर सकती हैं। कितने ही देर वह अपने कमरे में दर्द से तड़पता रहा और आँसू बहाता रहा और अपने दिल में कुछ फैसला कर अपने कमरे से निकल गया। इधर डॉक्टर आकर अंशिका को देखे तो उन्होंने बताया की उसका हाथ बुरी तरह जल गया हैं उसका ध्यान रखने को बोले दवा और लगाने को मलहम दिए। सारे घर में बस यही बातें हो रही थी की आखिर अंशिका किचन गई ही क्यों और गई तो कैसे उसका हाथ इतना जल गया और इस बात का उन लोगो के पास कोई जवाब नहीं था और जवाब जिनके पास था वे चुप थे इस हादसे के बारे में तो बस मानस और अंशिका जानते थे।

.........

शादी की पार्टी कुछ दिनों के लिए टाल दी गई थी मानसी अंशिका का ख्याल रखने लगी थी जिस वजह से अंशिका मानसी के क्लोज होती जा रही थी। मानस उस दिन के बाद से अंशिका के सामने आने से बचने लगा था। उसे डर लगने लगा था की अंशिका उसकी किस बात से परेशान हो जाये और अभी इलेक्शन का टाइम आ गया तो वह वैसे ही उसमें व्यस्त हो गया और सबकी नज़रों से बच कर वह अपने कुछ जरूरी सामानों के साथ ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो गया जिससे अंशिका के सामने वह न आये, लेकिन कभी-कभी अपने दिल के हाथों मजबूर होकर अंशिका की नज़रों से बच कर उसे देखने लगता। इसी तरह समय गुजर रहा था और देखते-देखते मानस अपने स्टेट का सी.एम् बन गया और उसके घर में तो खुशियों की लहर दौर उठी हर तरफ से बधाईया आने लगी थी और मानस अपना काम शुरू किया और काम शुरू करते ही उसके हर तरफ चर्चे होने लगे। एक तो आज का युवा था और उसके साथ पूरे राज्य के लोगों का यकीन उसके साथ था तो वह पूरे जोश से काम शुरू किया उसे किसी चीज की लालच थी नहीं तो पूरी ईमानदारी से वह अपना काम करने लगा और जिस वजह से हर तरफ बस उसके काम और उसकी तारीफ होने लगी और इसके साथ मानस के जिंदगी में कुछ और बदलने लगा।

“मानस मैं कुछ दिनों से देख रहा हूँ तुम ऊपर के कमरे में रहने लगे हो ?” सुधीरजी मानस के घर आते ही बोले तो अपनी ये बात घर वालो के सामने खुलने से वह घबरा गया।

“नहीं, ऐसी बात...।”

“तो कैसी बात हैं मुझे भी जरा बताओ।” सुधीरजी बोले तो अब मानस जवाब अपने दिमाग में ढूंढने लगा।

“मानस मैं कुछ पूछ रहा हूँ उसका जवाब दो मुझे।” मानस को सोचते देख सुधीरजी बोले तो मानस जल्दी से बोला,

“वो इलेक्शन में ज्यादा रात को वापस आता था और फिर कुछ काम करना पड़ता था तो अंशिका की नींद न बिगड़े इसी वजह से ऊपर चला जाता था।”

“यही बात हैं न ?” सुधीरजी सवाल भरी नज़रों से उसे देखते हुए बोले तो वह जल्दी से हाँ बोला तो वे बोले,

“तो ठीक हैं अब अपने काम के साथ-साथ अपने परिवार को भी टाइम दो और हाँ शादी के बाद तुम अंशिका के साथ कही नहीं गये थे तो कही जाने का प्रोग्राम बनाओ।”

“जी पापा अभी तो मुश्किल हैं क्योंकी अभी तो काम शुरू हुआ हैं अभी बहुत काम हैं तो अभी कही भी नहीं जा सकता हूँ।” सुधीरजी के बातों के बीच में मानस बोल उठा।

“हाँ मैं समझता हूँ, लेकिन थोड़ा टाइम तुम्हे अंशिका के साथ भी बिताना चाहिए और मैं आज तो जाने को नहीं बोल रहा हूँ जैसे ही कुछ छुट्टी का मौका लगे तो चले जाना।”

“हूँ।” मानस उनकी बात सुन बोला और दिल में बोला,

“वही तो नहीं कर सकता हूँ।” उसे सोचते देख सुधीरजी फिर बोले,

“क्या हुआ ?” तो वह कुछ नहीं में अपना सर हिला बाहर चला गया, लेकिन इसके बाद उसकी जिंदगी में परेशानियाँ बढ़ने लगी प्रभाजी और सुधीरजी की नजर उस पर कुछ ज्यादा रहने लगी।

“मानस ऊपर क्यों जा रहे हो ?” प्रभाजी की आवाज पर मानस परेशान सा पलटा।

“इतनी रात हो गई हैं और तुम अपने कमरे में जाने के बजाय ऊपर क्यों जा रहे हो ?” प्रभाजी उसकी तरफ देखती हुई बोली।

“वो कुछ काम बाकि था तो सोचा सोने से पहले ख़त्म कर लूं फिर आराम से सो जाऊंगा।” मानस बहाने बनाते हुए बोला।

“अब जो काम हैं कल करना अभी अपने कमरे में जाओ और आराम करो।” प्रभाजी अपना फैसला सुनाई मानस कुछ बोलता की उसकी नजर सुधीरजी पर पड़ी और वह बिना कुछ बोले धड़कते दिल से अपने कमरे की तरफ चला गया और बड़े ही धीरे से कमरे का दरवाजा खोला और धीरे कदमो से अन्दर चला आया तो उसने देखा अंशिका सोई हुई हैं। मानस कुछ देर तक उसे इसी तरह देखता रहा, लेकिन उसका दिमाग बोला,

“जल्दी से यहाँ से हटो नहीं तो अगर इनकी आँख खुल गई और यह तुझे देख ली तो इन्हें देखकर जितना सुकून मिला हैं मिनटों में कही गायब हो जाएगी।” ये सोचते ही मानस अपने कमरे की दुसरी तरफ का दरवाजा खोला और बालकनी में आकर कुर्सी पर बैठ गया और आँखें बंद कर लिया अभी उसकी आँखों में सोई हुई अंशिका का चेहरा नजर आ रहा था।

“अंशिका कब तक मुझे अपने से इस तरह दूर रखेंगी क्या कभी मैं आपसे प्यार भरी दो बातें नहीं कर पाउँगा। क्या हम दोनो अपनी जिंदगी उस तरह नहीं बिता पाएँगे जिस तरह मैंने सोचा था।” इसी तरह की बातें सोचता हुआ मानस सो गया।

.......

“अरे मानसी कैसी हो ?” एक आवाज सुन मानसी पीछे पलटी तो दिवाकर को देखि और खुश होती हुई बोली,

“अरे दिवाकर भैया आप कब भारत आये ?” मानसी की बात सुन दिवाकर उसके पास आते हुए बोला,

“कल ही आया हूँ और सोचा सी.एम् साहब से मिल लू।”

“लेकिन भाई तो घर पर नहीं हैं।” मानसी बोली।

“अरे मानस नहीं हैं तो क्या बाकि के घर वालो से तब तक मिल लेता हूँ।” दिवाकर बोला।

“लेकिन मम्मी-पापा भी घर से बाहर गये हैं।” मानसी बोली तो दिवाकर मुस्कुराता हुआ बोला,

“तब तक अपनी बहन से ही बातें कर लूँगा आखिर तीन साल बाद जो मिल रहा हूँ।” बोलते हुए वह मानसी की तरफ बढ़ा और अचानक से किसी ने उसे धक्का देकर गिरा दिया। दिवाकर फर्श पर जा गिरा और जब संभला और सामने देखा तो उसने देखा मानसी को कोई अपने पीछे किये और अपने हाथों में चाकू लिए खड़ी उसे घूरती हुई देख रही हैं। दिवाकर हैरानी से देखते हुए फर्श से उठा तो वह उसे चाकू दिखाई।

“भाभी ये दिवाकर।” इससे ज्यादा मानसी कुछ बोल नहीं सकी अंशिका उसका हाथ पकड़ अपने कमरे में ले आई और दरवाजा बंद कर ली। दिवाकर हैरान सा सबकुछ देख रहा था और साथ-साथ दरवाजे पर खड़े सुधीरजी और प्रभाजी भी ये सब देखे थे और वे अन्दर आते ही दिवाकर से माफी मांगे अंशिका की इस हरकत ने उन्हें बेइज्जती का एहसास दिलाया और वह अपने गुस्से को किसी तरह काबू किये कुछ देर बाद दिवाकर चला गया और सुधीरजी का गुस्सा उनके चेहरे पर नजर आने लगा था और जब मानस घर आया तो,

“मानस तुम क्या चाहते हो ?” उनकी ये अचानक से पूछे सवाल पर मानस हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा।

“तुमने जिद्द की मुझे इसी लड़की से शादी करनी हैं मैंने तुम्हे कितनी बार बोला था की रिश्ते अपने बराबरी के लोगों में करनी चाहिए, लेकिन नहीं तुमने हमारी एक बात नहीं सुनी और एक मामूली से टीचर की बेटी से शादी की जिद्द की और हम बेबस हो तैयार हो गये, लेकिन अपनी बेइज्जती करवाने के लिए तैयार नहीं हुए थे मानस।” वह गुस्से से बोले उनका गुस्सा देख मानस का दिल डर से भर गया।

“आप गुस्सा मत करिये मैं बात करती हूँ।” प्रभाजी उन्हें चुप करने की कोशिश करती हुई बोली।

“नहीं आप बात नहीं करेंगी मुझे मानस से जवाब चाहिए।” उनकी बातों से मानस के होश उड़ने लगे वह चुप खड़ा उनकी बातें सुन रहा था।

“तुम अपनी पत्नी को समझा लोगे या नहीं ?” मानस उनकी बात समझ ही नहीं रहा था की वह क्या बोल रहे हैं, लेकिन अंशिका के जिक्र पर वह घबरा उठा था तभी मानसी वहाँ आई और बोली,

“पापा आप भाई से कुछ मत बोलिए आप भी सोचिये वे जो समझी वही की घर में मैं अकेली थी और वे दिवाकर भैया को कभी देखि नहीं थी और उन्हें मेरे पास देख घबरा गई। वे तो मुझसे प्यार करती हैं इसीलिये ऐसा की हैं।” मानसी अंशिका की साइड लेती हुई बोली और मानस को भी बात पता चली वह कुछ बोला नहीं, लेकिन दिल में मानसी को थैंक यू बोला अंशिका की साईड लेने के लिए। सुधीरजी मानसी की तरफ देखे और अपने कमरे में चले गये, लेकिन अब उनके घर में मुश्किले बढ़ने लगी थी। अब अंशिका ज्यादातर अपने कमरे में बंद रहने लगी थी इधर मानस लोगों की नज़रों में अपनी अलग पहचान बनाने लगा था तो इधर अंशिका में अजीब-अजीब बातें नजर आने लगी थी। अब कभी-कभी वह पागलों की तरह हरकत करने लगती जितना मानस आगे बढ़ रहा था उतना ही अंशिका सबसे दूर हो रही थी कभी-कभी चिल्लाने लगती सामान फेकने लगती। अब उसके कमरे में घर के नौकर भी नहीं जा रहे थे बस मानसी जाती और उसके सोने के बाद मानस जाता कुछ देर उसे देख अपने दिल को तस्सली देता की सबकुछ ठीक हो जायेगा। वह चाहता था की अंशिका के साथ कुछ पल बिताये, लेकिन उसके सामने आते ही वह पागलों की तरह करने लगती थी। जिस वजह से मानस चाह कर भी उसके सामने नहीं जा पा रहा था बस मानसी के जरिये उसकी हर जरूरत का ख्याल रख रहा था। उसे ख़ुशी देने की की कोशिश कर रहा था, और मानसी अपने भाई को इस तरह देख बहुत दुखी थी जो भाई हमेशा उसकी खुशियों का ख्याल रख रहा था आज वह अपने उस भाई की कोई मदद नहीं कर पा रही थी, लेकिन मानस यह ख्याल रख रहा था की उसके और अंशिका के बीच के रिश्ते के बारे में किसी को पता नहीं चले लेकिन धीरे-धीरे अंशिका की हालत बाहर के लोगों के कानो में जाने लगी और सुधीरजी अपना गुस्सा नहीं रोक पा रहे थे और जब मानस दो दिन की टूर से वापस आया और मानसी के पास आकर उसके सामने उसके गोआ का टिकट दिखाया तो मानसी ख़ुशी से चहकती हुई मानस के गले लग गई और अंशिका मानस को मानसी से दूर धकेल दी और अपनी जलती हुई नज़रों से उसे घूरी तो मानस बस उसे देखता रह गया।

“भाभी आप क्या कर रही हैं ये भाई हैं।” लेकिन अंशिका बिना कुछ बोले उसे मानस की नज़रों से दूर लेकर चली गई।

“मानस।” सुधीरजी गरज कर बोले तो मानस घबरा गया और उनकी तरफ पलटा।

“मानस आज तुम्हे फैसला करना होगा इस घर में चाहे अंशिका रहेगी या मैं।”

“पा...।” मानस को बोलने से रोकते हुए सुधीरजी फिर बोले,

“ये मेरा आखरी फैसला हैं अब तुम फैसला करो की ये पागल पत्नी तुम्हे चाहिए या ये फैमली।” बोल वह चले गये अब मानस को फैसला करना था की उसे किसके साथ रहना हैं।

.......

मानस ऊपर के कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गया उसके अन्दर तूफान इतनी जोर से चल रही थी की उसे अपने बाहर भी उसकी आवाज सुनाई दे रही थी। कुछ देर वह अपनी आखें बंद किये लेटा रहा फिर उठ कर बिस्तर पर बैठते हुए बोला,

“मैं किसी एक को कैसे चुन सकता हूँ? मैं किसी के बिना नहीं रह सकता हूँ न ही मम्मी-पापा और न ही मानसी, अंशिका के बिना इनमें से अगर कोई भी मेरी जिंदगी से गया तो मैं जिन्दा नहीं रह सकता हूँ।”

वह कुछ देर तक कमरे में चहल कदमी करता रहा उसका सर दर्द से फट सा रहा था, लेकिन उसे कोई फैसला तो आज करना था और कुछ फैसला करके सुधीरजी के कमरे में आया और दरवाजा खटखटाया सुधीरजी नाराजगी से उसे देखे। मानस अन्दर आ गया और उनके पैर के पास बैठते हुए बोला,

“पापा क्या आप बहुत नाराज हैं ?” वे कुछ नहीं बोले बस अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिए।

“पापा आपको पता हैं न मैं आप लोगों से कितना प्यार करता हूँ क्या आप लोगों के बिना कभी जी पाउँगा, नहीं न पापा तो फिर आपने ऐसी शर्त क्यों रखी मेरे सामने ?”

“फैसला तो तुम्हे करना पड़ेगा मानस और वह भी जल्दी सुबह होने से पहले।”

“पापा ऐसा न बोलिए इतनी कड़ी सजा मुझे मत दीजिये।” मानस तड़प कर बोला।

“ये तुम्हारे हाथों में हैं जिसके साथ तुम अपनी बाकि की जिंदगी बिताना चाहो बिताओ, लेकिन बस मेरी शर्त याद रखना।”

“नहीं पापा ऐसा मत कहिये मैं न ही आप लोगों के बिना रह सकता हूँ और न ही अंशिका के बिना। वह मेरी पत्नी हैं मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ कितनी मुश्किल से वह मुझे मिली हैं और मैं उन्हें नहीं छोड़ सकता हूँ।”

“तो ठीक हैं फैसला हो गया अब हमलोगों को यहाँ से जाना चाहिए।” सुधीरजी बीच में ही बोल उठे और मानस उनका जवाब सुन तड़प उठा।

“नहीं पापा ऐसा न बोलिए मैं आप लोगों के बिना जी नहीं सकता हूँ।”

“मानस ये हो नही सकता हैं अब क्योंकी जितनी बेइज्ज़ती सहनी थी मुझे वह तो सह चूका अब मुझमें सहने की शक्ति नहीं हैं।”

“लेकिन अचानक से ये फैसला।” मानस बोला। 

“अचानक से नहीं मानस कब से मैं ये फैसला कर चुका था, लेकिन तुमसे जो इतना प्यार करते हैं उसके खातिर चुप थे।”

“तो अब भी तो आप मुझसे प्यार करते हैं तो अब ऐसा फैसला क्यों ?”

“क्योंकी अब हम पागल के साथ नहीं रह सकते हैं आज तुम्हे धक्का दी कल मुझे।”

“नही पापा ऐसा कुछ नहीं होगा मेरा यकीन करिये अंशिका आप लोगों के साथ कुछ बुरा नहीं करेगी।” मानस उनकी बातों के बीच में बोला।

“नहीं अब हम नहीं रहेंगे उस पागल के साथ।” वे गुस्से से बोले।

“नहीं पापा वो पागल नहीं हैं।”

“अच्छा तुम बोल दोगे तो क्या मैं यकीन कर लूँगा।”

“अच्चा अगर वह ठीक हो जाए तो क्या आप उसे इस घर में मेरे साथ रहने देंगे ?” मानस बोला सुधीरजी मना करने वाले थे, लेकिन प्रभाजी ने उन्हें इशारे से रोक दिया तो वह चुप हो गये उन्हें चुप देख मानस घबरा कर बोला, 

“पापा कुछ तो बोलिए ऐसे चुप मत रहिये। क्या अंशिका ठीक हो जाएगी तो आप अपना ये फैसला बदल लेंगे और सब फिर से साथ रहने लगेंगे ?” कुछ देर तक सुधीरजी कुछ नहीं बोले बस पूरे कमरे में खामोशी छाई रही।

“पापा।” मानस की दर्द भरी आवाज उनका दिल दुखा गया और उनकी जुबान से हाँ निकल गया तो मानस अपने आँसू पोछते हुए बोला, 

“पापा मैं सुबह होते ही अंशिका को डॉक्टर के पास ले जाऊंगा और बहुत जल्द वह ठीक हो जाएगी।”

“नहीं मानस।” बीच में सुधीरजी बोले तो मानस हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा।

“अंशिका का जो भी इलाज करना हैं घर में करना पड़ेगा मैं नहीं चाहता हूँ की सी.एम् मानस की पत्नी पागल हैं ये न्यूज़ पेपरों में छपे।”

“लेकिन पापा घर पर कैसे?”

“मैं भारत की सबसे अच्छी डॉक्टर को बुला दूंगा जो घर पे ही काम करेंगी और बाहर तक बात नहीं जाएगी।” सुधीरजी की बात मानस मान गया और सुधीरजी डॉक्टर को मानस के सामने कॉल किये और वह दुसरे दिन आने का बोल दिए जिससे मानस खुश हो गया की अब अंशिका जल्दी ठीक हो जाएगी और सुधीरजी भी अपने बेटे के ख़ुशी के लिए इलाज तक रूकने को तैयार हो गये।

........

मानस सब काम छोड़ आज बस डॉक्टर का इंतजार कर रहा था सुधीरजी चुप होकर उसे देख रहे थे। मानसी और प्रभाजी को बाहर रिश्तेदार के यहाँ भेज दिया गया था। घर के नौकरों को आज छुट्टी दे दी गई थी और घर में मानस सुधीरजी और अंशिका ही थे और अंशिका अपने कमरे में बैठी थी। मानस बाहर में खड़ा इंतजार कर रहा था और तभी एक गाड़ी दरवाजे के पास आकर रूकी तो मानस आगे बढ़ गया और दरवाजा खोला तो उसमें से लगभग पचास साल की एक महिला निकली जिसे देख मानस थोड़ा हैरान होकर सुधीरजी की तरफ देखा तो वह आगे आकर बोले “आइये डॉक्टर।” उनसे ये बात सुन मानस समझ गया की यही डॉक्टर हैं जो अंशिका का इलाज करने वाली हैं। मानस भी उन्हें नमस्ते किया और तीनो अन्दर चले आये और फॉर्मेलिटी के लिए उन्हें चाय कॉफ़ी पूछी गई तो वह मना करती हुई बोली,

“अभी बस मुझे अंशिका से मिलना हैं वह कहाँ हैं आप बता दीजिये मैं जाकर मिल लेती हूँ।”

“मानस आपको वहाँ ले जायेगा।” सुधीरजी बोले।

“नहीं आज मैं उससे अकेले मिलूंगी तो बस वह कौन से कमरे में हैं मुझे बता दीजिये।” डॉक्टर की बात सुन मानस उन्हें अंशिका जहाँ थी उस कमरे के बारे में बता दिया तो वह उधर चली गई कमरे के दरवाजे पर आकर उन्होंने देखा अंशिका अपनी आँखें बंद की और दीवाल से अपना सर टिकाये हुए बैठी हुई हैं। कुछ मिनट वह जांचती नज़रों से पूरे कमरे और अंशिका को देखि और फिर कमरे में आती हुई बड़े प्यार से धीरे से बोली,

“अंशिका।” उनकी आवाज पर अंशिका अपनी आँखें धीरे से खोली और आवाज की तरफ देखि तो सामने किसी अनजाने को देख वह संभल कर बैठती हुई उनकी तरफ देखने लगी।

“अंशिका क्या आप मुझे बैठने को नहीं बोलेंगी ?” डॉक्टर बोली तो वह जल्दी से बेड से उठी उन्हें नमस्ते की और एक तरफ लगी कुर्सी की तरफ इशारा करके बैठने को बोली तो डॉक्टर आगे बढ़कर उन कुर्सी में से एक पर खुद बैठ गई और दूसरी पर उसे बैठने को बोली तो अंशिका बैठ गई तो डॉक्टर बोली,

“मेरा नाम राधिका हैं और मैं आपसे मिलने आई हूँ।” अंशिका बस हैरानी से उन्हें देखती रही कुछ देर डॉक्टर राधिका अंशिका से इधर-उधर की बातें करती रही और फिर उस कमरे से वापस चली आई। उन्हें वापस आये देख मानस जल्दी से उनसे बोला,

“डॉक्टर अंशिका ठिक तो हो जाएगी न ?”

“पहली बात आप अंशिका को ये पता नहीं चलने देंगे की मैं एक डॉक्टर हूँ और रही ठीक होने की बात तो वह आपसे और अंशिका से बात करने के बाद बताउंगी।” उनकी बात सुन मानस कुछ नहीं बोला चुप रहा और डॉक्टर चली गई। सुधीरजी उसे शांत रहने को बोले तो वह शांत हो गया और समय गुजरा राधिकाजी हर दिन कुछ देर के लिए आती और अंशिका से बातें करती फिर मानस से बातें करती और आज जब वह जाने लगी तो मानस से बोली की, 

“मानस कल आपसे और अंशिका से मैं साथ में बातें करूँगी और फिर बताउंगी की अंशिका कब तक ठीक होगी।” मानस हाँ बोल दिया लेकिन उसे अन्दर से घबराहट हो रही थी की कल क्या होने वाला हैं और वह सारी रात डर घबराहट से सो नहीं पाया। उसकी बेचैनी सुधीरजी समझ रहे थे, लेकिन कुछ बोल नहीं रहे थे। अंशिका अपने कमरे में ही थी जबसे मानसी घर से गई थी तबसे वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थी और कोई उसे निकलने को भी नहीं बोला था। रहा खाने का तो राधिकाजी के आने से ये आसान हो गया था वे उसे खिला देती थी, लेकिन राधिकाजी को उसकी आँखों में एक अजीब सा दर्द नजर आ रहा था। उसके चेहरे पर बेचैनी नजर आ रही थी, लेकिन जुबान बंद थी। इन चार दिनों में वह एक शब्द नहीं बोली थी बस राधिकाजी जो बोलती वह सुनती रहती थी।

..........

आज मानस को साथ ले राधिकाजी अंशिका के कमरे में आई जिस वजह से अंशिका थोड़ी परेशान हो उठी जो राधिकाजी महसूस की। आज वह अंशिका को उसके बेड पर ही रहने दी और मानस के साथ वह कुर्सी पर आकर बैठ गई वह ऐसे बैठी थी की अंशिका के चेहरे के हर बदलते इमोशन को वह आसानी से देख पाए। अंशिका अपनी आँखें बंद कर ली और अपना सर दीवाल से टिका दी।

“हाँ तो मानस आप मुझे अंशिका के बारे में जो भी जानते हैं वह बताये और जो भी अब तक बताये हैं वो नहीं जो अब तक नहीं बताये हैं वो बातें मुझे बताइए।”

“जी।” वह थोड़ा परेशान होकर बोलते-बोलते रुक गया।

“अगर आप चाहते हैं की वो पूरी तरह ठीक हो जाये तो आपको बताना होगा क्योंकी मुझे पता चला हैं की आप अंशिका को शादी से पहले से जानते हैं।” उनकी बात सुन मानस थोड़ा सा घबरा गया और उसकी घबराहट देख राधिकाजी बोली,

“देखिये मानस अब आपके हाथ में हैं की आप क्या चाहते हैं। अगर आप मुझे अंशिका के बीते समय के बारे में नहीं बताएँगे तो फिर मुझे दुख के साथ कहना पड़ेगा की मैं इन्हें ठीक नहीं कर पाऊँगी।”

“नहीं ऐसा मत बोलिये।” मानस दुखी होकर बोला।

“तो मुझे सारी बात बताइए और हाँ एक भी बात मत छुपाइयेगा।” राधिकाजी बोली तो मानस एक बार अंशिका के तरफ देखा और फिर राधिकाजी की तरफ देखते हुए बोलना शुरू किया।

“अंशिका के पापा एक सिंपल से स्कुल टीचर हैं। अंशिका से बड़ी एक बहन हैं जो अंशिका से चार साल बड़ी हैं और उनकी शादी हो चुकी हैं। अंशिका को पढ़कर कुछ बनने की चाहत थी तो उसके पापा उसे उसकी पसंद की पढाई के लिए शहर भेजे और अंशिका देहरादून के कॉलेज में पढ़ने आई। ये सीधी सी अपने काम से काम रखने वाली लड़की थी और इसकी यही बातें इनके साथ पढ़ रहे एक लड़के को पसंद आ गई और अंशिका उसके दिल में बस गई, लेकिन अंशिका को इन बातों का कुछ पता नहीं था न ही वह लड़का बताया था और न ही इन्हें कुछ महसूस हुआ था, लेकिन ये उसके दिलो दिमाग में इस तरह समा गई की वह अंशिका के सिवा कुछ सोच ही नहीं पा रहा था। यहाँ तक की वह अपनी पढाई भी नहीं कर पा रहा था और किसी तरह वह पास हो रहा था। अंशिका के सिवा ऐसा कोई नहीं था जिसे यह पता न हो की वह लड़का उससे प्यार करता हैं। उसके प्यार के चर्चे पूरे कॉलेज में फैली थी जिससे कुछ ना खुश भी थे क्योंकी कुछ अंशिका को चाहते थे और कुछ उस लड़के को, लेकिन उस लड़के की वजह से वे चुप थे और जब अंशिका के साथ किसी और को देखे तो उनके जलते दिल को ठंढक पहुंची और एक दिन, 

“अरे यार देखो आज तुम्हारी अंशिका किसी के साथ हैं।” उसकी बात सुन वह पीछे पलटा तो उसने देखा की अंशिका के साथ कोई लड़का हैं और ये बात उससे सहन नहीं हुई वह उसे परेशान नहीं करना चाहता था इस वजह से अपने दिल को समझाया की शायद कोई रिश्तेदार हैं, लेकिन जब हर दिन वह उस लड़के को अंशिका के साथ देखने लगा तो उससे रहा नहीं गया और वह सीधे उसके पास पहुँच गया और उसका रास्ता रोकते हुए बोला, 

“अंशिका ये लड़का तुम्हारे साथ क्यों हैं ?” उसकी बात सुन अंशिका हैरानी से उसकी तरफ देखि, लेकिन कुछ बोली नहीं।

“अंशिका मुझे तुमसे बात करनी हैं।”

“लेकिन मुझे नहीं करनी हैं।” अंशिका बोलती हुई चली गई वह उसे जाते हुए देख ही रहा था की उसके दोस्त उसके पास आ गये।

“अरे तुम्हारी अंशिका तो तुमसे बात भी नहीं की और चली गई।” उनकी बात सुन वह उनकी तरफ घूरते हुए देखा तो दूसरा बोला, 

“बस तुम यही कर सकते हो दूर से अंशिका को देखना और हमलोगों को घूरना।” उनकी बात सुन वह परेशान हो गया और वहाँ से चला गया, लेकिन अब उसे अंशिका से बात करनी थी और अंशिका थी की उससे बात ही नहीं कर रही थी। वह चाह रहा था की वह अंशिका को परेशान न करे, लेकिन उसे अब अंशिका को खोने का डर सताने लगा था और वह उसे खोकर जी नही सकता था। वह चाह रहा था की अंशिका एक बार उसके दिल की बात सुन ले और उसे बोल दे की वह उसी की रहेगी तो उसे थोड़ा सुकून मिलता, लेकिन अंशिका उससे बात करने को तैयार नहीं हो रही थी और वह पागल हो रहा था और अपनी बेचैनी को कम करने के लिए वह गलत काम करने लगा वह ड्रिंक करने लगा और उससे भी उसे सुकून नहीं मिला। एक दिन उसके एक फ्रेंड का बर्थडे था और सारे फ्रेंडो के जिद्द पर वह पार्टी में आया कुछ देर पार्टी ठीक चली और कुछ देर बाद वे लोग फिर से अंशिका की बात शुरू कर दिये और उस लड़के के दिल को चोट पहुँचने लगी।

“अरे मैंने सुना हैं अंशिका का उस लड़के के साथ कोई चक्कर चल रहा हैं।” एक दोस्त ने बोला ये सुन उस लड़के का दिल दुखा तभी दूसरा बोला, 

“हाँ कहाँ हम सोचे थे की उसकी शादी इससे होगी लेकिन।” बोलते-बोलते वह रूक गया तो वह लड़का बोला, 

“क्या बोल रहे थे जो मुझे देख चुप हो गये ?” वह लड़का पूछा।

“कुछ भी तो नहीं।” दूसरा दोस्त बोला। 

“बोलो।”

“नहीं इन बातों को छोड़ो चलो पार्टी करते हैं।” वह दोस्त बोला तो वह जिद्द पर आ गया और उसकी जिद्द के आगे उसे झुकाना पड़ा और वह बोला, 

“मुझे पता चला हैं की।”

“हाँ बोलो।”

“अंशिका की शादी उस लड़के से हो रही हैं।” और ये बात उस लड़के के दिल में जल रही आग को और भरका दिया।

“क्या बोल रहे?” उससे तो बोला भी नहीं जा रहा था।

“हाँ, ये बात सच हैं उसकी शादी बहुत जल्दी होने वाली हैं शादी की तैयारी भी शुरू हो चुकी हैं।” उसकी ये बात सुन वह अपना सर पकड़ बैठ गया और” बोलते बोलते मानस रुक गया तो राधिकाजी बोली, 

“फिर क्या हुआ मानस बताओ।” मानस कुछ बोल नहीं पा रहा था एक बार राधिकाजी अंशिका के चेहरे की तरफ देखि वह अभी भी उसी तरह बैठी हुई थी बस अब उसके बंद आँखों के किनारे से आँसू बहने लगे थे उसके चेहरे के अन्दर का दर्द अब उसके चेहरे पर आ गया था। राधिकाजी मानस की तरफ देखि और बोली, 

“आगे क्या हुआ मानस बोलो अगर तुम अंशिका को ठीक देखना चाहते हो तो बोलो नहीं तो मैं क्या कोई भी उसे ठीक नहीं कर सकता हैं।” उनकी बात सुन मानस बेबसी से उनकी तरफ देखा तो राधिकाजी उसके हाथों पर अपना हाथ रख अपनी पलके झपका कर उसे बोलने के लिए बोली तो मानस एक बार अंशिका की तरफ देखा और फिर बताने लगा।

“वह लड़का उससे पागलों की तरह प्यार करता था और वह उससे हमेशा के लिए दूर जा रही थी इस बात ने उसे पागल कर दिया और इस बात को उसके सारे दोस्त जानते थे तो वे इस बात का फ़ायदा उठाकर उसे बहुत कुछ बोले।

“ये तो बड़ी धोखेबाज निकली तुम्हे छोड़ किसी और की हो गई।” एक दोस्त बोला।

“उसे पता भी नहीं था की मैं उसे चाहता हूँ।” वह लड़का दुखी होकर बोला।

“पूरे कॉलेज को पता हैं बस उसे ही नहीं पता था तुम भी बच्चों की तरह बातें करते हो।” उसका दोस्त बोला वह लड़का कुछ देर सोचता रहा फिर उठकर कही जाने लगा।

“अरे कहाँ जा रहे हो ?” उसे जाते देख उसका दोस्त बोला।

“कही नहीं कुछ काम हैं।” वह लड़का बोला तो उसके दोस्त बोलने लगे, 

“लो ये ड्रिंक पी लो फिर जाना।”

“नहीं मैं पहले से पी चूका हूँ और नहीं।” वह लड़का बोला।

“अरे अभी परेशान हो ये पी लोगे तो राहत मिलेगी।” उनकी बात सुन वह मान गया क्योंकि वह सच में बहुत बेचैन था। तो एक दोस्त ने उसे एक ड्रिंक से भरा ग्लास दिया, लेकिन वह लड़का इस बात से अंजान था की उसके दोस्तों ने जो ड्रिंक उसे दिया था उसमें वे कुछ मिला दिए थे और वह जल्दी से पीया और निकल पड़ा और वह सीधे अंशिका के घर आ गया जहाँ अंशिका रहती थी और दरवाजे पर दस्तक देने लगा। एक के बाद एक दस्तक देता रहा और कुछ देर बाद अंशिका दरवाजा खोली तो वह लड़का बस उसे देखता रह गया, लेकिन अंशिका उसे यहाँ देख गुस्सा हो गई और दरवाजा बंद करने लगी तो वह लड़का उसका हाथ पकड़ दरवाजा बंद नहीं करने दिया।

“अंशिका मुझे कुछ बात करनी हैं।” और अंशिका को पता चला की वह ड्रिंक करके आया हैं तो वह नॉर्मल से उससे पेश आई और बोली, 

“अभी नहीं अभी रात बहुत हो गई हैं बाद में बात करेंगे।” लेकिन उस लड़के की ड्रिंक में जो चीज मिली थी वह उसे पागल बना दिया था और वह जिद्द करने लगा और बार-बार ना सुन वह घर में घुस गया और अन्दर से दरवाजा बंद कर दिया। अंशिका गुस्से से उसे जाने को बोली, लेकिन वह तो अपने होश में ही नहीं था वह तो अब कोई और था और वह अंशिका की कोई बात सुन ही नहीं रहा था और।”

“और क्या मानस और क्या?” मानस के चुप होने पर राधिकाजी घबरा कर बोली मानस अपना चेहरा नीचे किये बैठा हुआ था।

“मानस तुम अब चुप नहीं रह सकते हो बताओ उस रात अंशिका के साथ क्या हुआ था ? उस लड़के ने क्या किया था अंशिका के साथ?” लेकिन मानस कुछ बोल नहीं पा रहा था उसकी जुबान उसका साथ नहीं दे रही थी मानस का हाल देख राधिकाजी थोड़ी घबराती हुई बोली, 

“मानस क्या उस रात उस लड़के ने अंशिका के साथ कुछ ऐसा किया जो नहीं करना।” राधिकाजी की बात सुन मानस अपना सर नीचे कर लिया राधिकाजी को जोरो का झटका लगा। उनकी नजर अंशिका पे गई जो अब अपना चेहरा अपने घुटने में छुपा कर फुट-फुट कर रो रही थी। राधिकाजी का दिल दर्द से तड़प उठा उन्हें महसूस हो रहा था की अंशिका किस दर्द से अब तक गुजर रही हैं। वह तड़प कर बोली, 

“वह दरिंदा कौन था?” राधिकाजी की बात सुन मानस चौक कर उनकी तरफ देखा तो राधिकाजी बोली, 

“मानस वह कौन दरिंदा था जिसने अंशिका।” मानस के कानो में बस एक शब्द गूंज रहा था और वह था “दरिंदा” राधिकाजी की नजर मानस पर पड़ी तो वह बोली, 

“मानस वो तुम?” इससे आगे वह कुछ बोल नहीं पाई और गुस्से से बोली, 

“अंशिका कभी ठीक नहीं हो सकती हैं कभी-भी नहीं।”

“मानस उनके कदमों में बैठ गया और रोते हुए बोला, 

“नहीं ऐसा मत बोलिए।”

“ये मैं नहीं बोल रही हूँ मानस ये तुम्हारे किये गुनाह बोल रहे हैं।” वे गुस्से से बोली।

“मैंने कुछ भी अपने होश में नहीं किया था वे सब उस दवा का असर।”

“और बहाने मत बनाओ और झूठ मत बोलो मानस। एक लड़की की जिंदगी के साथ इतना बुरा किया और खुद को निर्दोष बता रहे हो।” वह चाह कर भी अपने आपको कण्ट्रोल नहीं कर पा रही थी और गुस्से से बीच में बोली।

“नहीं-नहीं मुझे पता हैं मैंने अनजाने में ही बहुत बुरा किया हैं और उसी।” फिर मानस के बीच में राधिकाजी बोली, 

“और उसी के प्रायश्चित करने के लिए उसे इस घर में लाये और हर दिन हर रात उसे तिल-तिल कर मार रहे हो।”

“नहीं मैं अंशिका के साथ कुछ गलत नहीं कर सकता हूँ।” फिर राधिकाजी उसके बातों के बीच में बोली, 

“अब कुछ बाकि रहा हैं मानस तुमने पहले उसकी जिंदगी.. फिर जबरदस्ती उससे शादी कर इस घर में लाये वह जब भी तुम्हे देखती होगी तो उसके सामने वह सबकुछ आ जाता होगा वह चाह कर भी उन बुरी यादों से बाहर नहीं निकल पाइ तुम्हारी वजह से। मानस हर पापों की प्रायश्चित नहीं होता हर गुनाह की माफ़ी नहीं होती और तुमने जाने अनजाने में ही सही एक लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी। तुम बोलते हो तुम उससे हद से भी ज्यादा प्यार करते हो तो जब वह तुम्हारी उस हरकत से टूट रही थी तड़प रही थी अपने आँसू बहा रही थी तो तुम्हारा प्यार कहाँ था तब तो तुम एक।” मानस फुट-फुट कर रोने लगा और चिल्लाने लगा।

“मैं सच में दरिंदा हूँ दरिंदा, मैंने अपने हाथोंअपनी अंशिका की जिंदगी ख़त्म कर दी मैं उसके प्यार के लायक ही नहीं था मैं बुरा हूँ। बहुत बुरा दरिंदा दरिंदा दरिंदा।” और वह अपने सर को अपने हाथों से दर्द देने लगा ऐसा लग रहा था जैसे वह पागल हो गया हो। राधिकाजी कुर्सी से उठी पहले एक बार पागल हुए मानस की तरफ देखि फिर अंशिका की तरफ देखि अभी उन्हें अंशिका अलग लगी शायद अंशिका के जलते दिल को मानस के आँखों से गिरते आँसू ने शांत किया था शायद अंशिका के आँखों के दर्द को मानस के दर्द से राहत मिली थी और अंशिका की तड़प उसकी बेचैनी को मानस की तड़प उसकी बेचैनी से राहत मिली थी आज शायद मानस का ये हाल उसे सुकून दे रहा था। इतने सालों से अकेले सह रहे दर्द को आज जब मानस को उस दर्द से बेचैन देखि तो आज उसके दिल को सुकून मिला की मानस भी अब हर घड़ी इस अपने हाथों से लगाये आग में जलेगा। अब तक जिस तरह वह मानस को अपने सामने देख तड़पती आई थी अब मानस भी उसे देख तड़पता रहेगा। अंशिका को देख राधिकाजी को महसूस हुआ की अंशिका जो सजा मानस को देना चाहती थी शायद आज देकर खुश हैं। राधिकाजी उस कमरे से बाहर आई तो सुधीरजी पर नजर पड़ी।

“शायद अब आपको सबकुछ पता हैं और ये इन दोनों की तड़प कब ख़त्म होगी ये मुझे नहीं पता मुझसे जो हो सका मैंने किया, लेकिन शायद एक बेटी के बाप होने की वजह से आप अंशिका का दर्द भी समझ सकते हैं और बस जाने से पहले एक बात बोलूंगी कुछ कड़वी यादें समय के साथ भूले जाते हैं शायद मानस का प्रायश्चित और उसका प्यार एक दिन अंशिका को नजर आ जाये या वह उसे माफ़ कर दे, लेकिन एक औरत होने के नाते मैं कहती हूँ अंशिका उस रात को कभी नहीं भूल सकती हैं और अब मैं चलती हूँ।” बोल वह बाहर चली गई।

“जिसे मैं गलत समझ रहा था जिसकी हरकत को मैं माफ़ नहीं कर पा रहा था उसकी तो कोई गलती ही नहीं थी और जिसे अच्छा समझ रहा था वही मेरा बेटा ही गलत निकला।” सुधीरजी अपने ही नज़रों में अपने बेटे की गलती की वजह से गिर चुके थे बहुत देर तक वह वही सोचते रहे फिर वह अंशिका के कमरे की तरफ बढे दरवाजे पर जैसे ही आये तो उन्होंने देखा अंशिका चुप बैठी हैं और मानस अपने घुटने पर बैठ अंशिका से सजा मांग रहा हैं।

“अंशिका मुझे कभी माफ़ मत करना तुम जितनी सजा चाहो मुझे दे देना बस मुझे छोड़ कर मत जाना मैंने जान कर कुछ नहीं किया वे लोग कुछ डाल दिए ड्रिंक में, लेकिन गलत तो मैंने किया न तुम्हारे साथ मुझे कभी माफ़ मत करना।”

“मानस।” सुधीरजी की आवाज सुन मानस पलटा और जैसे ही उन्हें दरवाजे पर देखा पागलों की तरह नीचे से उठा और अंशिका को अपने बाहों में भरते हुए रोते हुए बोला, 

“नहीं पापा मुझे मेरी अंशिका से दूर मत करिये मैं इसके बिना नहीं जी सकता आप जो भी सजा देंगे मुझे दे दीजिए बस अंशिका को मुझसे दूर मत करिये।” सुधीरजी एक बार दोनों की तरफ देखे और वहाँ से चले गये मानस फुट-फुट कर रो रहा था, लेकिन आज अंशिका न ही उसे धक्का दी और न कुछ और की, शायद मानस को वह जो सजा देना चाहती थी दे चुकी थी। अब मानस अपनी गलती की वजह से जिंदगी भर तड़पता रहने वाला था अब वह किसी से भी पहले की तरह नज़र नहीं मिला सकता था। जितनी रातें और जितने दिन अंशिका तड़पी हैं उससे कही ज्यादा मानस तड़पने वाला हैं। हर तरह की अच्छाई होने के बावजूद एक गलती जो वह अपने दोस्तों की साज़िश की वजह से किया अंशिका के साथ-साथ अपनी जिंदगी अपनी खुशियाँ को भी दाऊ पर लगा बैठा था। अंशिका से वह इतना प्यार करता हैं की वह उसके लिए कुछ भी कर सकता हैं, लेकिन आज अपने दोस्तों के शाजिश की वजह से दुनिया का सबसे बड़ा दर्द उसने अपने प्यार को ही दे दिया। सुधीरजी अपने फोन से प्रभाजी और मानसी को वापस आने को बोल दिए और एक बार मानस के कमरे की तरफ देखे और दुखी हो अपने कमरे की तरफ चले गये।

अचानक से मानस को एहसास हुआ की उसने जल्दबाजी में फिर से क्या गलती की हैं और वह जल्दी से अंशिका को अपने बाहों से आजाद किया और अपना सर पकड़ पागलों की तरह कमरे में इधर-से-उधर घुमने लगा और, 

“सॉरी-सॉरी मैंने फिर से अनजाने में गलती कर दी।” और जल्दी से अंशिका के सामने आकर, 

“मैं अनजाने में ये कर बैठा अंशिका क्या बस मेरी इस भूल की वजह से आप अपने आप को दर्द नहीं देंगी क्या ? बस इस गलती की सजा मुझे मत दीजिये मैं आपसे वादा करता हूँ कभी भी आपके करीब नहीं आऊंगा कभी भी ये गलतियाँ नहीं करूंगा बस इस बार ऐसा कुछ मत करियेगा।” बोलता हुआ मानस अंशिका की तरफ देखा वह अपनी आँखें बंद की हुई दीवाल से अपना सर टिकाई हुई थी।

“अंशिका आप चाहे तो मुझे मेरी हर गलती की सजा दे दे आप जो सजा देंगी मुझे मंजूर हैं, लेकिन आप खुद को सजा मत दीजिये ये मुझे बर्दास्त नहीं होता हैं मेरा दिल दुखता हैं मेरी आत्मा छलनी होती हैं इस बात से की जिसको दुनिया की खुशियाँ देना चाहा उसे ही सबसे बड़ा दर्द दे दिया। मैं चाहकर भी अपने किये गलतियों को ठीक नहीं कर सकता हूँ और उनके लिए मैं कभी भी सजा पाने को तैयार हूँ, लेकिन आपको खुद से दूर नहीं कर सकता हूँ और जब आप मुझसे दूर होंगी तो मैं सच बोलता हूँ मैं जिन्दा नहीं रह सकता हूँ बस आप यहाँ रहिये जैसे रहना चाहती हैं वैसे मैं आपके सामने भी कभी नहीं आऊंगा बस आप मुझसे दूर मत जाइये।” मानस अंशिका से रिक्वेस्ट कर रहा था उसके आवाज में दर्द भरा हुआ था और उसकी बातों में अंशिका के लिए उसका प्यार था, लेकिन उसकी गलती इतनी बड़ी थी की उसे भी पता था की माफ़ी मिलना आसान नहीं था। ये कहना सही रहेगा की किसी भी लड़की के लिए इन बातों को भूलना इतना आसान नहीं हैं और उस आदमी को माफ़ करना तो नामुमकिन हैं, लेकिन आज राधिकाजी की वजह से उसे वे बातें भी पता चली थी जिनसे वह अनजान थी। अब तक वह तो बस यही जान रही थी की मानस उसके इग्नोर करने पर उसके साथ ये हरकत किया था, लेकिन राधिकाजी के सामने जब मानस ने सारी बातें कही तो अंशिका को भी ये बात पता चली की मानस भी किसी के साज़िश का शिकार हुआ था, लेकिन अभी अंशिका कुछ भी सोचने के हाल में नहीं थी। आज फिर से उसके सामने उस काली रात की यादें आई और वह फिर से तड़प उठी थी और मानस बस उससे एक ही रिक्वेस्ट कर रहा था की वह उसे न छोड़े क्योंकी उसे अब डर लग रहा था की ये बात सबको पता चल चुकी हैं तो अंशिका अब उसे छोड़ेगी तो कोई भी उसका साथ नहीं देंगे और उससे दूर होने की सोच ही वह पागल हो रहा था।

........

प्रभाजी और मानसी वापस आ गये तो नीचे से आवाज सुन मानस अपने ऊपर वाले कमरे से बाहर आया तो उन दोनों को देख थोड़ा घबरा गया यह सोचकर की उन्हें पता चल चुका होगा और वह उससे नाराज होंगी मानसी की नजर मानस पर पड़ी तो वह बोली,

“अरे भाई भाभी अभी गई नहीं और आपका चेहरा उतर गया।” मानसी की बात सुन मानस का दिल दर्द से भर उठा और वह घबराते हुए बोला,

“अंशिका जा रही हैं।”

“भाई ये भी क्या बात हुई आप तो कुछ अलग ही हैं।” तभी मानसी की नजर अपने कमरे से निकलती अंशिका पर पड़ी तो वह उधर चली गई। मानस एक बार सुधीरजी की तरफ देखा सुधीरजी भी अंशिका की तरफ देख रहे थे। मानस की आँखें छलक आई उसका दिल दर्द से भर उठा और वह बेचैनी से अंशिका की तरफ देखा जो मानसी को देख खुश थी मानसी अंशिका के गले लगती हुई बोली, 

“भाभी मैं आपको बहुत मिस करूंगी।” मानस बस अपने आँसू भरे हुए आँखों से अंशिका को देख रहा था। अंशिका सबसे मिल रही थी उसके हर एक कदम मानस को बेचैन कर रहे थे उसे अपनी सांसें रुकती हुई महसूस हो रही थी। अंशिका सुधीरजी के पास आई तो उनका दिल भर उठा और वह अपने दोनों हाथ उसके आगे जोर दिए। अंशिका उनका जुरा हाथ नीचे कर सर हिला कर ऐसा न करने को बोली तो वह अपने आँसू भरी नज़रों से उसे देखते हुए अपना हाथ उसके सर पर रख दिए जिसे देख प्रभाजी और मानसी बहुत खुश हुए यह सोचकर की अब वे अंशिका से नाराज नही हैं। अंशिका बाहर की तरफ अपने कदम बढाई तो मानसी बोली, 

“अरे भाभी क्या आप भाई से इजाजत नहीं ली थी क्या ?” उसकी बात पर अंशिका के कदम रूक गये और वह मानसी की तरफ देखि।

“भाई तो अभी से ही ऐसे बेचैन हो रहे हैं जैसे आप उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर जा रही हैं।” फिर मानसी अंशिका के पास आती हुई बोली, 

“दुल्हन अपने ससुराल आती हैं तो अपने आँसू बहाती हैं ये तो मुझे मालुम था, लेकिन किसी की दुल्हन अगर मायके जाती हैं तो दुल्हे अपने आँसू बहातें हैं ये मुझे आज पता चला हैं।” मानसी की बात सुन अंशिका की नजर मानस पर पड़ी वह अपने आँखों के गिरते आँसू को जल्दी-जल्दी साफ कर रहा था और अचानक से उसकी नजर अपनी तरफ देखती अंशिका पर पड़ी तो अंशिका अपनी नजर उससे हटाकर बाहर की तरफ जाने लगी। तभी अंशिका के कानो में सुधीरजी की बातें आई जो वह मानस से बोल रहे थे।

“शादी के बाद से वह अपने माँ-पापा के पास नहीं गई है तो इसी वजह से वह जा रही है और अब जब अंशिका चाहेगी तब ही वह यहाँ आएगी न तुम्हारी वजह से और न ही किसी और की वजह से अब वह अपनी मर्जी से यहाँ आएगी।” अंशिका जल्दी से बाहर चली आई जहाँ उसे ले जाने के लिए गाड़ी खड़ी थी और जल्दी से गाड़ी में बैठ गई और ड्राईवर को गाड़ी स्टार्ट करने को बोली तो ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट किया अंशिका की नजर मानस पर पड़ी जो दूर खड़ा उसे देख रहा था। गाड़ी आगे बढ़ गई और मानस बेचैन सा वही खड़ा रह गया। सुधीरजी उसके पास आये और उसके कंधे पर हाथ रखे तो मानस उनकी तरफ देखा।

“मानस कोई भी रिश्ता जबरदस्ती से नहीं बनता हैं और जब उसे पाने के लिए कुछ गलत हो गया हो तो फिर आपको अपनी चाहत नहीं उसकी चाहत को देखना चाहिए क्योंकी उसे तो दुनिया का सबसे बड़ा दर्द मिला हैं और अगर मानस तुम सच में उससे प्यार करते हो तो अब तुम उसे फैसला करने दो तुम अपना कोई फैसला उस पर नहीं डालो क्योंकी तुम भी जानते हो की।” उनकी बात पूरी होने से पहले मानस उनके कदमों में बैठ अपने दोनों हाथों से उनका पैर पकड़ रोने लगा। सुधीरजी उसे नीचे से उठाते हुए बोले, 

“बेटा जब हम दुसरो की बातें सुनकर फैसला करने लगते हैं उनकी कही बातों को सच समझ कुछ करते हैं बिना सोचे तो फिर अंजाम भी वैसा ही मिलता हैं।”

“सॉरी सॉरी पापा, मैं बहुत-बहुत ही बुरा हूँ। मैंने अंशिका आपके मम्मी मानसी सबके दिल को दुखाया।” सुधीरजी उसे अपने गले से लगाते हुए बोले, 

“बेटा कभी-कभी वह हो जाता हैं जिसे ठीक करना हमारे हाथ में नहीं होता हैं, लेकिन तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी हैं और उसे मैं भी ठीक नहीं कर सकता हूँ क्योंकी मैं भी एक बेटी का बाप हूँ तो दूसरी बेटी से कैसे कहूँ की उसके साथ जो हुआ उसे भूल जाए।” सुधीरजी भी बहुत दुखी थे क्योंकी वे भी जानते थे मानस ने अनजाने में ही ऐसा काम किया हैं जिसकी माफी मिलनी नामुमकिन हैं बस वे इसी इंतज़ार में हैं की मानस का प्रायश्चित और उसका अंशिका के लिए प्यार उस हादसे को भुलने में अंशिका की मदद करे और ये तो वक्त ही बताने वाला था।

........ 

समय अपनी चाल से गुजर रही थी अंशिका अपने माँ पापा के साथ एक महीने से रह रही थी इस एक महीने में न ही मानस ने एक बार कॉल किया था और न ही आया था तो अंशिका उसे भूलने की कोशिश कर रही थी।

“बेटा दामादजी कब आयेंगे तुम्हे लेने ?” अंशिका के पापा बोले तो अंशिका चौक कर उनकी तरफ देखि वे उसके बगल में खड़े उसके जवाब का इंतज़ार कर रहे थे। उसके अन्दर अचानक से ये बात सुन बेचैनी सी उठी।

“बेटा बताया नहीं दामादजी कब आने वाले हैं ?”

“क्यों?” वह इतना ही बोल पाई।

“अरे तुम्हे यहाँ आये एक महीने हो गये हैं और तुम बोल रही हो क्यों।”

“हाँ, एक महीने हुए हैं तो क्या ?” उसकी ये बात सुन अंशिका के पापा उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे तो अंशिका जल्दी से कुर्सी से उठी और अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो वह फिर से उसे आवाज लगाते हुए बोले, 

“अंशिका बेटा रूको।” उनकी बात सुन वह रूक गई तो वह उसके पास आकर बोले, 

“जब उनसे बात करना तो मेरी तरफ से शुक्रिया जरूर कहना।”

“क्यों?” वह हैरानी से बोली। 

“अरे बेटा वह इतने दिन तुम्हे यहाँ रहने दिए।”

“पापा मुझे जरूरी काम हैं।” बोल अंशिका वहाँ से चली गई जल्दी में तो उसके पापा उसे जाते देखते रह गये।

“इसे क्या हुआ हैं कुछ परेशान लग रही हैं और जब से आई हैं बात भी नहीं करती हैं और करने की कोशिश करता हूँ तो बिना कोई जवाब दिए ही चली जाती हैं।” वे धीरे से बोलते हुए बाहर की तरफ चले गये, लेकिन अंशिका को उनकी बात सुनाई दी तो वह अपने कमरे में आकर अपने बेड पर लेट आँसू बहाती हुई बोली, 

“मैं क्या करू कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं।” आज फिर मानस के जिक्र ने उसे पुरानी सारी बातें याद दिला दी जिसे वह चाहकर भी नहीं भूल पा रही थी और एक पल भी सुकून से नहीं जी पा रही थी। मानस ने भले उससे कोई संपर्क नहीं किया था, लेकिन उसका नाम हर पल अपने घरवालो की जुबान से सुन-सुन वह परेशान हो रही रही थी।

“पता नहीं सबको क्यों वह इतना पसंद हैं उसकी अच्छाई ही सबको क्यों नजर आती हैं बुराई क्यों नहीं नजर आती हैं? क्या उसने मेरे साथ जो किया वह सही था? कितनी रातें सोई नहीं थी और अब तक जलती आई हूँ और अब जब उसे सजा दी तो कुछ पल सुकून चाहती हूँ तो कोई नहीं होने दे रहा। मैं क्या करू ये नाम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ रहा हैं।” बोलते हुए वह उठ कर बैठ गई और गहरी साँस लेती हुई एक बार अपनी आँखें बंद की और अपने कमरे से निकली और सीधे अपनी माँ के पास आई।

“अंशिका बेटा क्या हुआ कुछ चाहिए ?” उसकी माँ बोली तो वह बोली, 

“हाँ।”

“क्या चाहिए ?”

“आपसे और पापा से इजाज़त चाहिए।”

“इजाज़त?”

“हाँ मम्मी।”

“किस काम के लिए ?” उनकी बात सुन अंशिका एक बार उनकी तरफ देखि और बोलने के लिए शब्द ढूंढने लगी।

“अंशिका बेटा बोलो।”

“मम्मी मुझे तलाक।” इससे आगे वह बोल ही नहीं पाई और उसकी माँ बेहोश होकर गिर गई।

“मम्मी क्या हुआ बोलिए मम्मी। पापा देखिये मम्मी को क्या हुआ पापा, पापा।” अंशिका चिल्ला रही थी उसकी आवाज उसके पापा के कानो में गई जो बाहर से कुछ काम करके आ रहे थे और वह बड़ी जल्दी से उधर आये और वहाँ का हाल देख घबरा गये।

“क्या हुआ बेटा तुम्हारी माँ को ?”

“पता नहीं पापा ये गिर गई।” उसके पापा उन्हें उठाये और बाहर की तरफ जाते हुए बोले बेटा जल्दी से कोई टैक्सी बुलाओ।” अंशिका बड़ी ही तेजी से बाहर की तरफ भागी और जल्दी से टैक्सी रोकी और दोनों उन्हें लेकर हॉस्पिटल चले आये और उन्हें एडमिट किया गया और उनका इलाज शुरू हो गया। अंशिका अपने पापा के साथ बाहर परेशान सी थी।

“बेटा फ़िक्र नहीं करते तुम्हारी मम्मी ठीक हो जाएगी।” उसे परेशान देख उसके पापा उसे दिलासा दे रहे थे, लेकिन उसके अन्दर तो डर और घबराहट इतनी थी की उससे वहाँ खड़ा होना भी मुश्किल होने लगा था और वह अपने पापा को भी अभी कुछ बता नहीं सकती थी की उसकी माँ किस बात से बीमार हुई हैं उसे डर था की वो बात सुन अगर वह भी बीमार हो गये तो फिर क्या होगा। डॉक्टर बाहर आये तो अंशिका के पापा डॉक्टर के पास आये और बोले, 

“सर क्या मेरी पत्नी अब ठीक हैं ?”

“जी अब वह ठीक हैं।” डॉक्टर बोले। 

“सर उन्हें क्या हुआ था की अचानक से इस तरह गिर गई ?”

“जी उन्हें हार्ट अटैक आया था।”

“क्या?” ये बात सुन वे लड़खड़ा गये।

“पापा।” अंशिका उन्हें पकड़ती हुई बोली।

“बेटा ये कैसे?” अंशिका के आँखों से आँसू बेतहासा गिरते जा रहे थे और खुद पे गुस्सा आ रहा था की आज उसकी माँ की ये हालत उसकी वजह से हुई हैं।

“डॉक्टर! क्या वह ठीक हो जाएगी ?” वे घबराते हुए बोले। 

“हाँ माइनर अटैक था तो पाँच दिनों में आप उन्हें घर ले जा सकते हैं और बस उनका अच्छे से ख्याल रखियेगा तो वह बहुत जल्दी ठीक हो जायेंगी।” डॉक्टर की बात सुन उन्हें कुछ राहत हुई और वे उनसे इजाजत ले अंशिका के साथ उन्हें देखने के लिए चले गये।

.........

अंशिका की माँ अब घर आ गई थी उन्हें आये चार दिन हो गये थे अंशिका उनका बहुत ख्याल रख रही थी और ईश्र्वर से दुआ कर रही थी की उसकी माँ वो बात अभी भूल गई हो।

“मम्मी जब मैं बीमार होती थी तो आप मेरी एक नहीं सुनती थी और जबरदस्ती खिलाती थी तो आज मैं भी आपकी नहीं सुनने वाली हूँ तो चुप होकर मेरी बात मानकर ये सारा सूप आपको ख़त्म करना पड़ेगा।”

“अब नहीं बेटा।” वे मना करती हुई बोली।

“कुछ नहीं बस चलिए पहले ख़त्म करिये।” बोलती हुई वह सूप से भड़ी चम्मच उनके मुंह की तरफ बढाई।

“चलिए अपना मुंह खोलिए।” उसकी बात मान वह अपना मुंह खोली तो अंशिका उनके मुंह में सूप डाली इसी तरह वह उन्हें पूरा सूप पिला दी।

“गुड अब आप रुकिए मैं आपकी दवा लाती हूँ।”

“अब दवा भी लेनी होगी ?” वह मुंह बनती हुई बोली तो अंशिका खिलखिला कर हँसने लगी और बोली,

“पापा आज तो मम्मी खुद बच्चों की तरह दवा खाने में नखरे दिखा रही हैं।”

“अरे तुम्हे पता नहीं हमेशा से तुम्हारी मम्मी इसी तरह दवा खाने में नखरे दिखाती हैं।” उनकी बात सुन वे बोली,

“मैं कब ऐसा करती हूँ आप बच्ची के सामने झूठ क्यों बोल रहे हैं ?”

“अच्छा तो मैं झूठ बोल रहा हूँ। अरे बेटा जरा बताओ तो अभी कौन अपना चेहरा दवा के नाम पर बना रहा हैं।” उनदोनों में नोक-झोक शुरू हुई तो अंशिका मुस्कुराती हुई बोली

“तो अभी आप लोग अकेले लड़ाई करिये मैं कुछ देर में दवा लेकर आती हूँ तो फिर शामिल हो जाउंगी।” उसकी बात सुन दोनों उसकी तरफ देखे और एक साथ बोले,

“क्या?”

“अरे रूकने को नहीं बोली हूँ आपलोग शुरू हो जाइये मैं अभी आई।” बोल वह हंसती हुई दवा लाने चली आई और दवा लेकर वापस आती हुई बोली,

“क्या बात हैं आप दोनों की दोस्ती।” और वह कुछ नहीं बोल पाई सामने मानस खड़ा था। अंशिका को देखते ही मानस जल्दी से बोला,

“वो यहाँ कुछ काम से आया था और आंटीजी कए बारे में सुना तो उन्ही।”

“अरे बेटा पहले आइये बैठिये और बहुत अच्छा किया जो चले आये मैं इसलिए आपलोगों को खबर नहीं होने दिया था की आप परेशान हो जाएंगे और आपको कितना काम रहता हैं और उसपे ये खबर सही नहीं लगा।” अंशिका के पापा मानस को बैठाते हुए बोले मानस का तो घबराहट से बुरा हाल था, लेकिन इतने दिन बाद अंशिका को देख दिल को अच्छा लग रहा था। अंशिका अपनी माँ के पास आकर उन्हें दवा देने लगी। उसकी माँ उसके चेहरे की तरफ देखि जहाँ कुछ देर पहले फैली ख़ुशी गायब हो गई थी। अंशिका उन्हें दवा दे वहाँ से जाने लगी।

“अरे बेटा कहाँ जा रही हो ? दामादजी आये हैं जरा जल्दी से चाय बनाकर लाओ और मैं।” तभी बीच में मानस बोला, 

“नहीं अंकल मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए मैं तो आंटी के बारे में सुन चला आया उनसे मिलने अब मिल लिया हूँ तो अब जा ही रहा हूँ।” उसकी बात सुन अंशिका के पापा हैरान होते हुए बोले, 

“ऐसे कैसे हो सकता हैं आप शादी के बाद पहली बार, अरे नहीं आप तो आज पहली ही बार यहाँ आये हैं ऐसे कैसे जा सकते हैं कम-से-कम आज तो रूकना ही पड़ेगा।” उनकी बात सुन मानस घबरा उठा और जल्दी से बोला, 

“नहीं अंकल मैं नहीं रूक सकता हूँ।”

“अरे ठीक हैं रात में यहाँ नहीं रूक सकते हैं क्योंकी आप सी.एम् हैं और आपके पास इतना टाइम नहीं है की कही रुके लेकिन कुछ घन्टे तो हमारे साथ आप रूक ही सकते हैं।” वे आग्रह करते हुए बोले तो मानस की नजर अंशिका पर पड़ी जो न चाहते हुए वहाँ खड़ी थी अपने माँ पापा की वजह से जो उसके चेहरे से मानस को महसूस हो रहा था।

“अंकल आज थोड़ा काम हैं तो नहीं रूक सकता हूँ।” मानस बहाने बनाते हुए बोला जबकि आज उसे कोई काम नहीं था पूरी तरह फ्री था जिस वजह से यहाँ आया था की अंशिका की माँ को भी देख लेगा और एक बार अंशिका को भी देख पाए और अब उसके दोनों काम हो गये थे तो वह अंशिका को परेशान नहीं करना चाह रहा था और वह उठने लगा तो अंशिका के पापा उसे उठने से रोकते हुए बोले,

“बस एक कप चाय ही पी लिजिये फिर चले जाइयेगा।” और फिर मानस के कुछ बोलने से पहले वे अंशिका से बोले,

“बेटा जल्दी से चाय बनाकर ले आओ दामादजी के लिए।” अंशिका की नजर अचानक से अपनी माँ पर पड़ी जो उसकी तरफ देख रही थी तो वह जल्दी से अन्दर चली गई और किचन में आकर एक तरफ खड़ी हो गई।

“ये कैसी मज़बूरी हैं जो नहीं चाहती हूँ वही करना पर रहा हैं।”

“बेटा जल्दी करो दामादजी को देर हो रही हैं।” अचानक से अपने पापा की आवाज सुन वह चौकी और आवाज की तरफ देखि तो उन्हें किचन के दरवाजे पर खड़ा देखि।

“बेटा मैं पानी लेकर जा रहा हूँ तुम चाय के साथ कुछ खाने को भी ले आना पहली बार दामादजी आये हैं ऐसे एक कप चाय पिला कर कैसे जाने दूँ और हाँ बेटा जल्दी करो वे जाने के लिए कितनी बार उठ चुके हैं।” बोल वह पानी ले बाहर चले गये और अंशिका चाय बनाने लगी और कुछ देर में वह कुछ खाने को और चाय लेकर किचन से अपनी माँ के कमरे में आई और उसे देख मानस कुछ हरबरा गया जो अंशिका ने महसूस किया। अंशिका टेबल पर ट्रे रखने लगी।

“अरे बेटा आप बीमार थे क्या?” अंशिका के पापा बोले उनकी बात सुन अंशिका की नजर भी मानस पे गई तो उसने देखा की मानस बिलकुल पहले जैसा नहीं लग रहा था उसे देख लग रहा था की वह कई दिनों से बीमार और बिना सोये रहा हैं। मानस की नजर अचानक से अंशिका की तरफ उठी तो अंशिका अपनी नजर उससे हटा ली और वहाँ से साइड हो गई। अंशिका जो चाय बनाकर उसके लिए लाई थी तो वह मना नहीं कर सका और चाय का कप उठा कर चाय पीने लगा अंशिका की माँ बस उन दोनों को देख रही थी और कुछ समझने की कोशिश कर रही थी। अंशिका बहुत कोशिश कर रही थी की उसके माँ और पापा को कुछ ऐसा न लगे जिससे उन्हें परेशानी हो। वह अन्दर जाने लगी तो उसके पापा पीछे से बोले, 

“बेटा कहाँ जा रही हो ?” वह रूक गई और उनकी तरफ देखि।

“बेटा दामादजी को बाहर तक छोड़ आओ।” उनकी बात सुन तो उसके अन्दर ज्वालामुखी सी फटने लगी और वह ना बोलने ही जा रही थी की उसकी नजर अपनी माँ पर गई और वह जल्दी से आगे बढ़ गई। मानस तो जैसे कोई ख़्वाब देख रहा हो बस अंशिका की ही तरफ देख रहा था।

“बेटा फिर मिलने आइयेगा।” अंशिका के पापा के बोलने पर वह जैसे नींद से जगा हो वह जल्दी से उन दोनों से मिल बाहर निकल आया। उसके साथ अंशिका थी तो जब उन दोनों से दूर हुआ तो मानस जल्दी से बोला, 

“वो गलती हो गई अब नहीं आऊंगा आंटी का सुना तो।” अंशिका कुछ नहीं बोली।

“मैं चाहता हूँ कभी नाराज न करू, लेकिन वापस से कुछ ऐसा कर बैठता हूँ जिससे नाराज कर देता हूँ क्या इस गलती के लिए माफ़ कर दोगी अंशिका ?” अंशिका कुछ बोली नहीं बस एक बार उसकी तरफ देखि और उसकी गाड़ी की तरफ बढ़ गई मानस भी उसके साथ गाड़ी की तरफ आया और वह एक बार अंशिका की तरफ देखा और गाड़ी में बैठ गया और उसकी गाड़ी आगे बढ़ गई अंशिका वही कुछ सोचती हुई खड़ी रह गई।

.........

अंशिका अपने कमरे में बैठी सोच रही थी और उसके सामने बीते हुए वे पल याद आने लगे थे जब मानस नशे में उसके घर आया था और उसके बार-बार मना करने के बाद भी अपनी एक बात पर अड़ा हुआ था और अंशिका ने देखा जैसे-जैसे समय गुजर रहा था मानस में एक अजीब सी बेचैनी सी बढ़ रही थी और मानस उसके करीब आ गया।

“मानस क्या बदतमीजी हैं मुझसे दूर रहो।” वह गुस्से से बोली।

“अंशिका मैं कुछ भी कर सकता हूँ बस ये नहीं कर सकता हूँ तुमसे दूर नहीं रह सकता हूँ।” वह बेचैन सा बोला।

“तुम यहाँ से जाओ।” और तभी मानस उसके करीब आ गया और उसका हाथ पकड़ा।

“अंशिका आप मुझे छोड़ किसी और से शादी नहीं कर सकती हैं आप सिर्फ मेरी हैं।” और उस दवा के असर की वजह से वह यह नहीं समझ पा रहा था की वह कुछ आगे बढ़ रहा हैं वह अंशिका को अपने बाहों में भरते हुए बोला,

“आप सिर्फ मेरी हैं और किसी की नहीं।” उसकी ये हरकत ने अंशिका को डर से भर दिया उसके सामने एक भयानक डर ने अपना साया फैला दिया वह उसकी बाहों से निकलने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसकी पकड़ से अपने आप को नहीं छुरा पा रही थी। वह अपने आप को बेबस महसूस कर रही थी। उसने उसके साथ बदतमीजी की थी और वह खुद को बेबस महसूस की थी। उसे तो लगा था उसकी जिंदगी ख़त्म होने वाली हैं और वह अपनी पूरी ताकत लगा कर उसकी बाहों से निकलने की कोशिश की और उसने मानस को धक्का दिया। मानस नीचे गिरा तो वह उस कमरे में रखे पानी का जग उसके ऊपर गिरा दी थी उसे होश में लाने के लिए और अचानक से पानी की वजह से वह रुका बस अंशिका मौके का फ़ायदा उठाकर अपने घर के अन्दर से पानी की बोतलो को लाकर मानस के ऊपर डालती चली गई थी और उसकी वजह से कुछ देर में मानस को होश आ गया और खुद को अंशिका के घर में देख और अपनी हालत से परेशान हो उठा और वह उससे माफ़ी मांगने लगा था और अंशिका उसे अपनी नज़रों से दूर जाने को बोली थी तो वह वहाँ से चला गया था यहाँ तक अपनी पढाई भी छोड़ दिया था और तब से अब तक वह उससे माफी ही मांगता आ रहा था, लेकिन उस दिन का डर गुस्सा अंशिका के अन्दर इतना भर गया था की उसकी माफी दुनिया की सबसे बुरी चीज लगती, लेकिन अपने माँ-पापा की वजह से उसे उसका सामना करना पर रहा था। वह चाह कर भी उन्हें ये बातें नहीं बता सकती थी और मानस को माफ़ करना उसके लिए उतना ही मुश्किल था, लेकिन आज मानस को देखने के बाद उसके अन्दर एक पल के लिए ही लेकिन मानस के लिए गुस्सा नहीं आया था पहली बार मानस नफरत के आलावा उसके सोच में आया था उसको देख पहली बार उसकी हालत पर अंशिका के दिल में कुछ हलचल सी हुई थी और वह अपने आप से लड़ रही थी। उसका दिमाग मानस के बारे में सोचने से मना कर रहा था और माँ-पापा की बात न मानने को बोल रहा था तो दिल बोल रहा था की अगर उसके फैसले से उसके माँ-पापा ही नहीं रहे तो सजा किसे मिलेगी तब तो सजा उसे ही मिलेगी। अब वह अपने सोच से परेशान हो चुकी थी। उसका सर दर्द करने लगा था वह अपने कमरे से बाहर निकली तो उसके कानो में उसकी माँ की आवाज आई तो वह उनके कमरे की तरफ चली आई।

“क्या होगा कुछ समझ नहीं आता हैं।” उसकी माँ बोली।

“क्या समझ नहीं आ रहा हैं ?” उसके पापा बोले।

“यही की हमारी बेटियों के साथ क्या होने वाला हैं।” माँ बोली। 

“जो होगा अच्छा ही होगा मानस बेटे ने हमसे कहा हैं बड़े दामादजी की परेशानी बहुत जल्दी ठीक हो जाएगी उनकी जॉब उन्हें वापस मिल जाएगी और उन पर जो झूठा इलजाम लगा हैं बहुत जल्दी ठीक हो जाएगा।” उसके पापा बोले।

“और उन दोनों में तलाक जो होने वाला हैं।” माँ की ये बात सुन अंशिका घबरा गई की उसकी माँ उसके पापा से ये बात कर रही हैं और वे बीमार न हो जाये वह अन्दर जाने लगी तभी उसके पापा ने बोला, 

“नहीं होगा।”

“आप कैसे इतने यकीन से बोल सकते हैं की उनदोनों में तलाक नहीं होगा ?”

“आप ही बताओ क्या आप उनसे नाराज हैं ?”

“नहीं।”

“जरा आप मुझे ये बताइये जब कोई कुछ गलत करता हैं तो उससे अगर हम बोलेंगे की वह गलत किया हैं तो क्या वह मानेगा ?”

“नहीं।”

“तो सोचीये जो अपनी अनजानी गलती करने के दुसरे ही दिन आकर ये बोले की उसने हमारी बेटी के साथ बदतमीजी की हैं और अपने लिए सजा माँगे ओर उस गलती की सजा के लिए अपनी जिंदगी की सारी खुशियाँ छोड़ दे इतने साल तक एक माफी के लिए न जाने कितने प्रायश्चित करते आ रहा हो तो उससे ईश्र्वर भी नाराज नहीं रह सकते हैं तो हमारी बेटी कैसे उन्हें माफ़ नहीं कर सकती हैं।” अपने पापा की ये बात सुन अंशिका को झटका लगा वह अब तक यही समझ रही थी की ये बात उसके और मानस के आलावा किसी को पता नहीं हैं और आज उसे पता चला की उसके माँ पापा तो उसी वक्त से ये जान रहे थे और उसे कुछ समझने नहीं दिए थे जिससे उसे बुरा न लगे वह वापस अपने कमरे में चली आई और दरवाजा बंद कर ली।

..........

समय बीत रही थी अंशिका बस खोई हुई सी अब रहने लगी थी वह कोई फैसला नहीं कर पा रही थी। माँ-पापा की सुने या अपने दिल की उसके घरवाले भी उसका हाल समझ रहे थे और उससे कुछ नहीं बोल रहे थे। अंशिका कही बाहर गई हुई थी वापस आई तो उसके पापा बोले, 

“बेटा अपनी मम्मी को दवा दे दो मुझसे तो वे लेती नहीं हैं।”

“जी पापा।” बोल वह दवा लेकर आई और उसकी नजर न्यूज़ पर पड़ी।

“आज शाम सी.एम् मानस की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया उनकी हालत बहुत ख़राब हैं।” अंशिका अपनी आँखें बस उस न्यूज़ पर गड़ाई हुई थी उसके हाथों से दवा नीचे गिर गई।

“बेटा जाना हैं?” उसके पापा धीरे से बोले तो वह हाँ में अपनी गर्दन हिला दी तो वह जल्दी से बाहर चले गये अंशिका की माँ उसे गले से लगाती हुई बोली,

“सब ठीक हो जायेगा।”

“बेटा चलो।” उसके पापा की आवाज गूंजी तो अंशिका अपनी माँ के साथ बाहर की तरफ चली आई और वे लोग गाड़ी से वहाँ पहुंचें जहाँ मानस एडमिट था। अंशिका को देखते ही मानसी दौरकर उसके गले लग रोती हुई बोली, 

“भाभी देखिये न भाई को क्या हो गया।” अंशिका कुछ बोली नहीं बस उसे अपनी बाहों में भर ली। सुधीरजी और प्रभाजी भी अंशिका के पास आ गये उसके माँ पापा को नमस्ते किये।

“दामादजी के साथ ये कैसे हो गया ?”

“पता नहीं अचानक से खबर मिली की ये सब हो गया हैं तो हम भागे यहाँ चले आये हैं।”

“कैसे हैं दामादजी ?”

“अभी तक होश नहीं आया हैं उसे।”

“अब भाई ठीक हो जाएंगे और उन्हें होश भी आ जायेगा।” बीच में मानसी बोली तो सब हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे।

“अरे भाभी आ गई हैं अब भाई भी ठीक हो जाएंगे।” मानसी अंशिका की तरफ देखती हुई बोली अंशिका अपनी नज़रें नीचे कर ली सबकी नजर अंशिका की तरफ थी की वह यहाँ तो आ गई हैं क्या वह मानस से मिलेगी। मानसी के आलावा सारे यही सोच रहे थे तभी डॉक्टर आकर बोले की मानस को होश आ गया हैं कोई एक जाकर उससे मिले। सबकी नजर अंशिका पर थी क्योंकी सब जानते थे की अगर वह एक बार उससे मिल लेगी अभी तो वह जल्दी से ठीक हो जायेगा क्योंकी उसके पापा इतने दिनों से उसकी तड़प देखते आये थे तो उन्हें पता था की अभी मानस के पास किसे जाने की जरूरत हैं, लेकिन कोई बोल नहीं सकते थे तभी मानसी बोली,

“भाभी बहुत दिनों से भाई से नहीं मिली हैं तो पहले मिलने की बारी उनकी हैं।” अंशिका कुछ बोलती इससे पहले मानसी उसे मानस के वार्ड के पास ले आई और धीरे से दरवाजा खोल उसे जाने के लिए इशारा की। अंशिका परेशान सी दरवाजे पर खड़ी थी अचानक से इतना कुछ हो गया था की उसे समझने का मौका भी नहीं मिला था वह एक बार फिर उन लोगों की तरफ देखि तो मानसी उसे जाने का इशारा कर रही थी और उसके कदम अन्दर की तरफ चले गये जिसे देख मानस के परिवार वाले और अंशिका के परिवार वाले खुश हुए।

.......

मानस बेड पर अपनी आँखें बंद किये लेटा हुआ था। अंशिका की नजर उस पर पड़ी बहुत चोट आई थी उसे, कितनी ही पट्टियों ने उसे जकड़ा हुआ था। मानस कदमों की आहट पर अपनी आँखें खोला तो वहाँ अंशिका को देखा तो वह अपनी आँखें तुरंत बंद कर लिया कुछ देर तक वह अपनी आँखें बंद रखा फिर धीरे-धीरे खोलते हुए अंशिका की तरफ देखा अंशिका उसके बेड के पास आकर खड़ी थी।

“जहाँ देखता हूँ वही दिखती हैं।” मानस धीरे से बोला जो अंशिका को भी सुनाई दिया तभी अन्दर नर्स आई और मानस से बोली,

“कैसे हैं ठीक लग रहा हैं अब आपको ?” नर्स की बात सुन मानस जल्दी से अपनी नजर फिर से अंशिका की तरफ डाला तो उसे अपने बेड के पास खड़ा देखा वह फिर से नर्स की तरफ देखा तो नर्स दिखी मानस हैरानी से कभी अंशिका को देखता तो कभी नर्स को। उसे अभी भी यही लग रहा था की उसकी नज़रों का धोखा हैं और अंशिका चुप खड़ी मानस को देख रही थी। नर्स उसके पास आई तो अंशिका से कुछ बातें करने लगी मानस के बारे में और मानस को यकीन हुआ की अंशिका सच में उसके सामने हैं और वह अपनी पलकें झपकाए बिना उसे देखता रहा तभी कमरे में मानसी आ गई उससे मिलने तो अंशिका बाहर निकल गई क्योंकी एक बार में एक को ही मिलना था। फिर एक-एक कर बाकि के लोग भी उससे मिलने आये। मानस तो बस इसी बात को सोचने में लगा था की अंशिका उससे मिलने आई। उसका दिल कर रहा था की कोई उसे बताये की अंशिका यहाँ कैसे उसे नजर आई, लेकिन वह किसी से नहीं पूछा उस दिन के बाद उसे अंशिका नजर नहीं आई और वह बेड पर उदास लेटा सोच रहा था।

“शायद किसी के दबाव की वजह से अंशिका यहाँ आई थी। अंशिका मुझे कभी माफ़ नहीं कर सकती हैं और अब आज के बाद मैं भी अंशिका आपसे वादा करता हूँ की आपके सामने नहीं आऊंगा और आपको परेशान नहीं करूंगा, लेकिन अंशिका ये मेरे लिए बड़ी मुश्किल हैं मुझे भी मालूम नहीं हैं की आप मेरी कमजोरी कैसे बन गई और।” उसकी आँखें छलकने लगी तो वह रूका और फिर अपने दिल में बोला,

“कैसे मैं माफी की चाहत रखु जबकी मैंने इतना बुरा किया नहीं अब मुझे अंशिका से दूर जाना होगा हमेशा के लिए और इसके लिए चाहे मुझे।” सोच वह अपने बेड से उठा जिसकी वजह से उसे दर्द हो रहा था और उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था क्योंकी उसके पैर में बहुत चोट आई थी और उसने अपने कदम बड़ी मुश्किल से बढाई और वह लड़खड़ा गया और गिरा, लेकिन अचानक से किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया और वह गिरने से बच गया। मानस घबराये हुए पकरने वाले की तरफ देखा तो बस देखता रह गया क्योंकी उसे गिरने से अंशिका ने बचाया था। मानस हैरानी से बस उसे देखता जा रहा था उसे यकीन नहीं आ रहा था। अंशिका सहारा देकर उसे बेड तक लाई और उसे बैठाती हुई उसकी तरफ देखि तो वह अपनी नज़रें नीचे कर लिया। अंशिका बिना कुछ बोले बाहर चली गई। मानस का दिल अभी भी जोरो से धड़क रहा था और दिमाग कुछ सोच नहीं पा रहा था अभी क्या हुआ था उसे सबकुछ एक ख़्वाब सा लग रहा था वह बेड पर लेट अपनी आँखें बंद कर लिया। समय बीती और मानस आज डिस्चार्ज हो घर वापस आ गया उससे मिलने बहुत सारे लोग आये हुए थे। एक-एक कर सब मिल रहे थे रिश्तेदार, पड़ोसी, राजनीतिक लोग चाहकर भी सुधीरजी उन लोगों को मानस से मिलने से नहीं रोक पा रहे थे क्योंकी करीब पंद्रह दिन से वे सब मानस से मिलना चाह रहे थे। मानस सबसे मिल तो रहा था लेकिन उसकी नज़रें किसी और को ढूंढ रही थी और वह उसे नजर नहीं आ रही थी जब से आया था बस एक बार अंशिका को देखना चाह रहा था जिससे उसे यकीन हो की वह यहाँ हैं लेकिन सुबह से शाम हो गई अंशिका उसे नजर नहीं आई और उसकी जो थोड़ी सी उम्मीद जगी थी वह भी समय के साथ टूटती जा रही थी।

“भाई अब चलिए कुछ खा लिजिये और आराम करिये।” मानसी उसके पास आकर बोली।

“मुझे भूख नहीं हैं और थोड़ी देर बाद आराम करूंगा।” मानस बोला।

“भाई ये नहीं होगा चलिए पहले कुछ खा लिजिये।”

“नहीं मुझे कुछ खाना ही नहीं हैं।” वह बोला उसकी बात सुन मानसी बोली,

“भाई सोच लीजिये खाना हैं या नहीं ?”

“नहीं।” मानस उदास सा बोला तो मानसी बोली,

“भाभी भाई नहीं खाने वाले हैं।” उसकी बात सुन मानस चौक कर उसकी तरफ देखा।

“भाभी भेजी थी आपके लिए चलिए मैं चलती हूँ।” बोल मानसी उठने लगी और उधर मानसी के पुकारने पर अंशिका भी उधर आई तो मानस जल्दी से मानसी का हाथ पकड़ उसे उठने से रोकते हुए धीरे से बोला,

“मेरी प्यारी बहन बस अब कुछ मत बोल तुझे छुट्टियों पर।” तभी बीच में मानसी बोली,

“पेरिस ले जायेंगे।” उसकी बात सुन मानस बोला,

“कुछ ज्यादा नहीं हैं?”

“कोई बात नहीं मैं भाभी से पहले।”

“अरे पक्का पेरिस ले जाऊंगा अब खाना दे और अंशिका से कुछ मत बोलना।” मानस घबरा कर बोला और उसके हाथों से खाने की प्लेट वापस टेबल पर रख खाने लगा तो मानसी हँसने लगी। अंशिका वहाँ आ गई थी मानसी को हँसते देख उसकी तरफ हैरानी से देखि तो मानसी बोली,

“भाभी भाई हम लोगों को पेरिस लेकर जाने वाले हैं घुमने के लिए तो आपका पासपोर्ट तैयार हैं या नहीं अगर नहीं तो बता दीजिये भाई ठीक करवा देंगे।” 

“अरे कौन कहाँ जा रहा हैं ?” सुधीरजी वहाँ आते हुए बोले उनके साथ प्रभाजी भी थी।

“वो भाई भाभी के साथ पेरिस जा रहे हैं घुमने।” मानसी बड़ी ही चालाकी से अपना काम कर दी और अंशिका हैरानी से उसे देख रही थी और मानस भी मानसी की बात सुन उसकी तरफ देखा तो मानसी अपनी आँख दबा दी तो मानस उसकी इस चाल पर मुस्कुराये बिना न रह सका।

“अरे कही भी जाना, लेकिन पहले शादी की पार्टी तो हो जाने दो कबसे लोग बोल-बोल कर थक गये हैं तो सबसे पहले पार्टी फिर पेरिस ठीक हैं मैं अभी टिकट करवा देता हूँ।” उनकी बात सुन मानस हरबरा गया और जल्दी से उन्हें रोकने को हुआ तो बीच में प्रभाजी बोली,

“मानस जरा बैठ जाओ और मानसी तुम अंशिका और मानस की एक तस्वीर ले लो मुझे तुम्हारी नानी को भेजना हैं कब से मांग रही हैं बीमार होने की वजह से आ नहीं सकती तो कम से कम तस्वीर ही देख खुश हो जायेंगी।” आज सबकी बात सुन मानस परेशान हो रहा था।

“आज इन लोगों को क्या हो गया हैं ? अंशिका परेशान हो रही होंगी।” मानस परेशान सा दिल में सोच ही रहा था की मानसी अंशिका को पकड़ मानस के बगल में बैठा दी मानस घबरा कर उठ खड़ा हुआ तो मानसी उसे बैठाती हुई बोली,

“भाई तस्वीर ले रही हूँ बैठेंगे नहीं तो अच्छी नहीं आएगी दोनों को बैठना होगा।” बोल उसे जबरदस्ती अंशिका के बगल में बैठा दी और मानस के हाथों में अंशिका का हाथ रखती हुई बोली ऐसे ही बैठे रहीये।” मानस जल्दी से अपना हाथ घबरा कर हटा लिया और डर उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था जो अंशिका को भी नजर आया वह मानस का हाल समझ रही थी। मानसी ने देखा मानस अपना हाथ हटा लिया तो वह नाराज होती हुई बोली।

“भाई एक तस्वीर में इतना परेशान करेंगे जल्दी से वापस से भाभी का हाथ पकड़िये।” लेकिन मानस नहीं पकड़ा मानसी नाराजगी से उसकी तरफ देख रही थी और मानस वहाँ से भागने के लिए बेचैन हो रहा था। तभी अंशिका अपना हाथ बढ़ाकर मानस का हाथ पकड़ ली जिसे देख मानसी तो खुश हो गई, लेकिन मानस अपनी हैरान आँखों से बस अंशिका को देखता ही जा रहा था।

“भाई बस एक तस्वीर लेने दे फिर जी भर कर भाभी को देखियेगा। उसकी बात सुन दोनों उसकी तरफ देखे तभी मानसी तस्वीर ली और बोली,

“मम्मी लीजिये मेरा काम हो गया।” सबके चेहरे पर ख़ुशी थी क्योंकी आज अंशिका ने मानस को पूरी तरह माफ़ कर दिया था उसके प्यार और प्रायश्चित ने उसे उसकी अंशिका दे दी थी लेकिन उसके और अंशिका के दिल में कही न कही वह कसक तो रहनी ही थी। मानस को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था वह बस अंशिका को देखता ही जा रहा था क्योंकी वह जिस उम्मीद को कब का भुला दिया था आज वो ख़ुशी उसे मिली थी। अचानक से उसकी आँखें बहने लगी, लेकिन आज पहली बार इतने सालों बाद उसकी आँखों से ख़ुशी की आँसू बहने लगे थे। वह तो उस दिन के बाद सीधे अंशिका के घर वालो के सामने अपनी सजा के लिए आया था, लेकिन उन्होंने उससे बोला था।

“हम क्या सजा देंगे तुमने जिसके साथ गलत किया हैं उससे सजा मांगो और उससे ही माफी।” उसे सजा नहीं दीये थे क्योंकी वह सच्चा था उसकी बातों में सच्चाई थी। वह तो अपने ही दोस्तों के चाल का शिकार बना था और अंशिका भी बड़ी ही साहस से उस रात अपने आप को बचाई थी और मानस को भी उस गलती को करने से रोकी थी नहीं तो आज दोनों एक नहीं होते क्योंकी वह गलती माफ़ करना किसी भी लड़की से नहीं होता, लेकिन फिर भी अंशिका उसे माफ़ नहीं करती लेकिन जब मानस अपनी एक-एक बात राधिकाजी को बताया जिसमे वह अपने बारे में कुछ नहीं छुपाया था तब उसे थोड़ी सी राहत मिली थी की मानस खुद को अच्छा बोलने के लिए कुछ नहीं बोला था यहाँ तक की बस अपनी बुराई ही किया था और उसे दिन रात हॉस्पिटल के बेड पर आँसू बहाते हुए अंशिका देखि थी तो उसके दिल में मानस के लिए जगह बन गई और आज मानस का प्रायश्चित पूरा हुआ जो वह उस दिन से शुरू किया था अपनी पसंद की सारी चीजे छोड़ कर। उसने अपनी पढाई छोड़ी जिस फील्ड में आना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था वहाँ आया और न जाने कितने ही अपने आप को दर्द दिए थे जो मानस और उसके ईश्र्वर ही जानते थे और धीरे-धीरे बाकी के लोग भी जानने लगे थे और आज उसका प्रायश्चित पूरा हो गया और उसे उसका प्यार मिल गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance