Pammy Rajan

Drama Tragedy

5.0  

Pammy Rajan

Drama Tragedy

पराया सा मायका

पराया सा मायका

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पिछले दिनों से मैं ध्यान दे रही थी कि अपने स्वभाव के विपरीत दादी काफी शांत रह रही हैं। वो भी तब जब वो अपने मायके से आई हुई थीं। दादी हमेशा अपने मायके की संपन्नता और दुलार की बातें हमसे करतीं, और माँ और चाची के मायके वालों को छोटा दिखाती रहतीं। आज भी वो शांत और उदास सी दिखाई दे रहीं थीं और माँ उन्हें दिलासा दे रहीं थीं। मैं कुछ बोलना ही चाह रही थी की माँ ने मुझे अपने कमरे में जाने का इशारा किया। मुझे बड़ा अजीब लगा। थोड़ी देर बाद दादी अपने कमरे में चली गईं तो मैं किचन में जाकर माँ से पूछने लगी- क्या हुआ है माँ ? दादी आजकल इतनी चुप सी क्यों हैं ? और तुम्हें और चाची को कुछ बोल क्यों नहीं रही हैं ?

माँ ने मुझे बाद में बताने का बोल वापस मुझे अपने कमरे में जाने को बोल दिया। मैं वापस कमरे में आ गई और अपनी किताब लेकर बैठ गयी पर मेरा ध्यान पूरी तरह दादी के ऊपर ही चला गया था।

दादी अपने पिता की इकलौती और अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं। इधर दादा जी भी सबसे बड़े थे। मायके की लाडली तो थीं ही ससुराल में भी काफी मान आदर था। दादा जी घर से कमाऊ बेटे थे तो घर-बाहर में उनकी तूती बोलती थी। मायके की इकलौती बिटिया होने के कारण उनके पिता ने अपनी संपत्ति का वारिस बेटी-दामाद को ही बनाना चाहते थे पर दादा जी ने उनकी संपत्ति लेने से मना कर दिया तो दादी के पिता जी ने अपने भाई के बच्चे को गोद ले लिया ताकि उनकी बेटी का मायका भी आबाद रहे और मायके में पूछ बनी रहे पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।

दादी के बाबू जी और माँ के मरने के बाद भाई- भतीजे दादी से कन्नी काटने लगे। उन्हें डर लगने लगा कि वो अपने पिता की संपति में दावा कर सकती हैं। दादा जी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने उन लोगों को विश्वास दिलाने के लिए दादी से सम्पति कानूनन भतीजे को दे देने की बात कही।

दादी की इच्छा तो ना थी पर मायके में मान-सम्मान बना रहे इसलिए दादी ने चुपचाप कागज पर साइन कर दिए। कुछ दिनों तक तो दादी को काफी मान-सम्मान मिला पर दादा जी के मौत के बाद उनके भतीजे शम्भू ने साफ नजरें फेर लीं। दादी को कभी जरूरत नहीं पड़ी मायके की संपत्ति की तो उन्होंने भी इस बात को ज्यादा तूल ना दिया पर हमेशा हम बच्चों और माँ, चाची से अपनी मायके की संपन्नता का जिक्र करती रहती थीं। हम बच्चों के लिए तो ये सब परियों की कहानियों की तरह ही होता पर माँ और चाची खुद को काफी छोटा समझतीं अपनी सासु माँ के सामने।

दादी के मायके के गाँव में एक नया मंदिर बना था। दादी काफी दिनों से उस मंदिर में दर्शन के लिए जाना चाह रही थीं। दो दिन पहले ही पापा और माँ उन्हें लेकर दर्शन कराने गये थे पर जब से वो आई हैं काफी दुखी और खोई खोई-सी हैं।

थोड़ी देर में माँ जब मेरे कमरे में दूध का गिलास देने आई तो मैं माँ को झुंझलाते हुए बोली- क्या राज छुपा रही हो माँ, बताओ भी दादी इतनी दुखी क्यों हैं, क्या हुआ है आखिर ?

माँ आकर मेरे कमरे में बैठ गयी। फिर बोलीं- आज दादी के दिलो-दिमाग से अपने मायके के होने का भी भ्रम मिट गया है। दुनिया की किसी भी बेटी के साथ कभी ऐसा ना हो। माँ भी दुखी हो गयीं। मैं बोली - लेकिन हुआ क्या माँ ?

माँ दुखी स्वर में बोलीं- उस दिन जब हम दादी के गाँव पहुँचे तो दस बज चुके थे। तो तेरे पापा बोले पहले मंदिर दर्शन कर लो फिर वापसी में नानी के घर (दादी का मायका) चलेंगे। मंदिर का रास्ता नानी के घर से होकर ही था। हम पैदल ही जा रहे थे। रास्ते में शम्भू (दादी का भतीजा) दिखा पर कुछ बोला नहीं। और घर का दरवाजा बंद कर लिया। ये देख दादी को गुस्सा तो आया पर कुछ बोली नहीं। सोचा अगल-बगल का कोई पड़ोसी दिखेगा तो बुलायेगा ही। पर सब दादी को देख कर मुँह फेरते गये। गली के मोड़ पर उनका एक भतीजा और दिखा। वो उससे कुछ बोलना चाह रही थीं तो वो तुनकते हुए बोला- जब सारी सम्पति का मालिक शम्भू है तो वही न आपको इज्जत देगा। हम क्या कर सकते हैं। तेरी दादी को काफी दुःख पहुँचा। जिस संपति को उन्होंने और दादा जी ने कभी अहमियत ही न दी। उसे ने ही उनका मायका वीरान कर दिया।

इन सब बातों को दिल से लगाये हम लोगों नें मंदिर में जाकर दर्शन किये। तब तक पौने बारह हो चुके थे। तेरे पापा को कुछ काम था तो वो दस मिनट में आने का बोल हमें मंदिर में छोड़ कर निकल गए थे। हम मंदिर के अंदर ही बैठे तेरे पापा का इंतजार करने लगे। पापा को कुछ देर हो गयी तब तक बारह बज चुके थे। मंदिर के पुजारी जी आकर हमें बाहर जाने को बोलने लगे क्योंकि मंदिर बंद होने का समय जो हो गया था। मैं जब दादी को मंदिर से बाहर चलने को बोली तो वो वहीं फूट-फूट कर रोने लगीं और बोलीं- आज मायका की हर चीज मुझे मेरे परायेपन का अहसास करा रही है। जिस मायके की सम्पनता की धौंस मैं तुम लोगों पर चलाती थी। आज वो मुझे बार-बार बेगाना बना रही है। आज मेरे मायके के भगवान भी अपने घर से मुझे भगा रहे हैं और रोने लगीं।

थोड़ी देर में पापा आ गए और फिर हम अगली बस से घर चले आए। इसी वजह से तेरी दादी इतनी दुखी हैं। मैं सारा किस्सा सुन सन्न रह गई। तभी बगल वाले घर से ढोलक की थाप पर ये गीत-

बाबा तूने कैसी रीत निभाई

ये गलियाँ भी हो गयीं पराई

पीहर मेरा हो जायेगा सपना

तेरे बिना कौन कहेगा मुझे अपना

मिले ना किसी को ऐसी जुदाई

काहे को कर दिए बाबा मेरी विदाई।

मैंने दादी के कमरे में जाकर देखा तो वो गाने के बोल सुन फूट-फूट कर रो रही थीं।

मैं उन्हें रोता देखकर ये सोच रही थी कि सरकार ने बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का हक़ देने का कानून बना दिया है पर बेटियाँ तो अपने अधिकार से ज्यादा मायके का प्यार ही चाहती हैं। क्या ये अधिकार उन्हें कोई कानून दिला सकता है ?


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