STORYMIRROR

Sorabh Sharma

Classics Inspirational Others

4  

Sorabh Sharma

Classics Inspirational Others

प्रारब्ध – भाग्य (Destiny)

प्रारब्ध – भाग्य (Destiny)

3 mins
4

प्रारब्ध का अर्थ है – वह कर्मफल जो हमारे पिछले जन्मों के कर्मों से निर्मित होकर इस जन्म में हमें भोगना अनिवार्य होता है। इसे ही सामान्य भाषा में भाग्य (Destiny) कहा जाता है।

 

ईश्वर हमें कर्म करने की स्वतंत्रता तो देते हैं, परंतु जो फल पहले से संचित हो चुके हैं, उनका अनुभव (भोग) किए बिना उनसे मुक्ति नहीं मिलती। यही कारण है कि जीवन में सुख-दुःख, लाभ-हानि, मान-अपमान आदि परिस्थितियाँ हमारे सामने आती हैं।

 

एक व्यक्ति सदा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था। धीरे-धीरे वह काफी बुज़ुर्ग हो चला था, इस कारण अधिकतर समय एक ही कमरे में पड़ा रहता था।

 

जब भी उसे शौच, स्नान आदि के लिए जाना होता, तो वह अपने बेटों को आवाज़ लगाता और बेटे उसे ले जाते।

 

धीरे-धीरे कुछ समय बाद ऐसा होने लगा कि बेटों को कई बार आवाज़ लगाने पर भी वे कभी-कभी ही आते और कई बार देर रात तक नहीं आते। ऐसे में वह व्यक्ति गंदे बिस्तर पर ही रात बिताने को विवश हो जाता।

 

अब और अधिक वृद्धावस्था के कारण उसकी दृष्टि भी धुंधली होने लगी थी। एक रात निवृत्त होने के लिए जैसे ही उसने आवाज़ लगाई, तुरंत एक लड़का आया और बड़े ही कोमल स्पर्श से उसकी सेवा कर उसे बिस्तर पर लिटा गया। अब यह रोज़ का नियम हो गया।

 

एक रात उस व्यक्ति को संशय हुआ—“पहले तो बेटों को कितनी ही बार आवाज़ देने पर भी वे रात में नहीं आते थे, और यह तो आवाज़ देते ही अगले क्षण आ जाता है और बड़ी कोमलता से सेवा करता है।”

 

उस रात उसने उस लड़के का हाथ पकड़ लिया और पूछा—

“सच बता, तू कौन है? मेरे बेटे तो ऐसे नहीं हैं।”

 

तभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक प्रकाश प्रकट हुआ और उस लड़के के रूप में स्वयं ईश्वर ने अपना दिव्य स्वरूप दिखाया।

वह व्यक्ति आँसू बहाते हुए बोला—

 

“हे प्रभु! आप स्वयं मेरी इतनी छोटी-सी सेवा कर रहे हैं। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हैं तो मुझे मुक्ति ही प्रदान कर दीजिए।”

प्रभु ने उत्तर दिया—

 

“जो कुछ आप भोग रहे हैं, वह आपके प्रारब्ध (पूर्व जन्म के कर्मफल) हैं। आप मेरे सच्चे साधक हैं; हर समय मेरा नाम जपते हैं। इसी कारण मैं स्वयं आपके प्रारब्ध भी आपकी साधना के बल पर कम कर रहा हूँ।”

 

व्यक्ति ने कहा—“क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बड़े हैं? क्या आपकी कृपा मेरे प्रारब्ध को समाप्त नहीं कर सकती?”

 

प्रभु मुस्कराए और बोले—“मेरी कृपा सर्वोपरि है। यह अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है, परंतु यदि ऐसा कर दूँ तो आपको अगले जन्म में पुनः वही प्रारब्ध भोगने लौटना पड़ेगा। यही कर्म का अटल नियम है। इसलिए मैं स्वयं अपने हाथों से आपके प्रारब्ध कटवा कर आपको इस जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति देना चाहता हूँ।”

 

फिर प्रभु ने समझाया—“प्रारब्ध तीन प्रकार के होते हैं—

मन्दतीव्रतीव्रतम

 

👉 मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से ही कट जाते हैं।

👉 तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग लेकर, श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर समाप्त होते हैं।

👉 परंतु तीव्रतम प्रारब्ध का भोगना अनिवार्य होता है।

 

लेकिन जो साधक हर समय श्रद्धा और विश्वास के साथ मेरा नाम जपते हैं, उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर हल्के कर देता हूँ, ताकि उन्हें उसकी तीव्रता का अनुभव न हो।”

 

उपसंहार

 

प्रारब्ध पहिले रचा, पीछे रचा शरीर।

तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्रीरघुबीर।।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics