कहानी: "भगवान करेगा"
कहानी: "भगवान करेगा"
पंजाब के लुधियाना ज़िले के पास एक छोटा-सा गाँव था — बिलासपुर।
वहीं रहता था गाँव का सबसे सम्मानित और प्रिय व्यक्ति — श्रीनिवास सिंह।
गाँव के लोग प्यार से उसे “पंचायत वाले भाऊजी” कहते थे।
श्रीनिवास, पढ़े-लिखे, बुद्धिमान और दिल के बेहद साफ़ इंसान थे। उन्होंने जालंधर के कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था और बचपन से ही दूसरों की मदद करने की आदत थी।उनकी पत्नी चंद्रबाला, बड़ी ही सरल और धार्मिक स्त्री थीं। तीन बेटियाँ — मेघा, शालिनी, मालती — और एक बेटा नरेश, यही उनकी दुनिया थी।
गाँव का हर शख्स उन्हें आदर से देखता था। चाहे कोई गरीब मज़दूर हो या बड़ा ज़मींदार, श्रीनिवास सबको एक नज़र से देखते थे।
गाँव में अगर किसी के घर झगड़ा होता, बिजली या नहर की कोई दिक्कत होती — लोग सीधा कहते, “भाऊजी को बुलाओ, वो संभाल लेंगे।”
उनका घर हमेशा खुला रहता था — “जिसे ज़रूरत हो, वो आए — दिन हो या आधी रात।”
श्रीनिवास अपने चारों भाइयों के साथ एक ही बड़े हवेलीनुमा घर में रहते थे —
दूसरे भाई श्यामलाल गाँव के स्कूल में मास्टर थे,तीसरे कांतिलाल डेयरी और तेल-घानी का काम देखते थे,चौथे मेथीलाल खेतों में छोटे-मोटे काम करते रहते थे।
उनकी माँ ने मरते वक्त कहा था —
“कांति, तू सबसे समझदार है, घर की आमदनी और खर्च तू ही संभालना।”
कांतिलाल और उसकी पत्नी दीपा ने यह ज़िम्मेदारी तो ली, पर धीरे-धीरे वो पैसे और संपत्ति अपने नाम करवाने लगे। घर की आमदनी, ज़मीन, मशीनें, सब कुछ धीरे-धीरे उनके कब्ज़े में चला गया।
श्रीनिवास को भरोसा था अपने भाई पर। वो कहते थे, “सब भगवान की माया है, हम सब एक ही परिवार हैं।”
पर एक दिन जब कांतिलाल ने उन्हें घर से अलग हिस्से में रहने को कहा — श्रीनिवास और चंद्रबाला का दिल टूट गया।
अंधेरा समय
वो लोग अब पुराने हिस्से में, छोटी सी कोठरी में रहने लगे। बच्चों की स्कूल फीस के लिए भी दीपा के दरवाज़े पर जाना पड़ता।
दीपा ताना मारती — “अरे, कांति भैया पे कितना बोझ डालोगे? अपने बच्चों के लिए खुद कुछ करो।”
चंद्रबाला रोज़ रोतीं, पर श्रीनिवास बस एक ही बात कहते — “जो होना है, भगवान करेगा।”
रात को मंदिर में बैठकर वो भगवान कृष्ण से बातें करते - “हे ठाकुर, मैं हमेशा सबका भला चाहता रहा, फिर ये अन्याय क्यों?”
मन के अंदर आवाज़ आती — “तेरा समय भी आएगा, बस श्रद्धा रख।”
ईश्वर की लीला शुरू हुई
एक दिन उनके पुराने दोस्त हरभजन सिंह मिलने आए।
वो बोले — “भाऊजी, मैं हरियाणा में मसालों का कारोबार शुरू कर रहा हूँ, तुम साथ चलो। तुम्हारा दिमाग और ईमानदारी चाहिए।”
श्रीनिवास ने भगवान के नाम पर हाँ कह दी। घर छोड़कर महीनों बाहर रहकर मेहनत की।धीरे-धीरे कारोबार चल निकला।
उनकी सच्चाई और कर्मठता ने व्यापार को ऊँचाइयाँ दीं।
तीन साल में ही उन्होंने इतना कमा लिया कि लुधियाना रोड पर एक नया बड़ा घर खरीद लिया —
वो भी अपने भाइयों के घर से दोगुना बड़ा और सुंदर।
उनके बच्चों ने पढ़ाई पूरी की — नरेश ने इंजीनियरिंग की और शहर में नौकरी लग गई। बेटियाँ भी अच्छे घरों में ब्याही गईं।
चंद्रबाला की आँखों में अब फिर से चमक लौट आई थी।
मंदिर में रोज़ दीपक जलता, भजन गूंजते —
“जो तू नहीं कर सका, वो भगवान करेगा…”
समय का पहिया घूम गया
उधर कांतिलाल का परिवार धीरे-धीरे बिखरने लगा। उनके बेटे जुए और शराब की लत में पड़ गए। मेथीलाल बीमार रहने लगा। दीपा को लकवा मार गया, और कांति खुद डिप्रेशन में चला गया। जो कभी सब पर हुकूमत करते थे, अब दूसरों की मदद के मोहताज बन गए।
एक दिन गाँव के लोग देखकर हैरान रह गए — कांतिलाल और दीपा, श्रीनिवास के दरवाज़े पर खड़े थे।
दीपा के हाथ काँप रहे थे, आँखों में आँसू थे —
“भैया… हमने बहुत गलती की… हमें माफ़ कर दो…”
श्रीनिवास चुपचाप आगे बढ़े। उनके चेहरे पर गुस्सा नहीं था, बस करुणा थी।
उन्होंने दोनों को गले लगा लिया।
“सब भगवान की लीला है कांति… जिसने हमें सिखाया कि जो बुरा करता है, वो खुद अपने कर्मों से सज़ा पाता है। हम सब उसके बच्चे हैं, और पिता कभी अपने बच्चों से बैर नहीं रखता।”
उस दिन गाँव के हर व्यक्ति ने देखा —
सच्चा इंसान वही है जो विश्वास नहीं खोता, चाहे दुनिया उसके खिलाफ क्यों न हो जाए।
अंतिम दृश्य
आज भी जब गाँव के मंदिर में आरती होती है, लोग कहते हैं — “अगर भगवान में सच्चा विश्वास रखना सीखना है, तो श्रीनिवास भाऊजी से सीखो।”
वो मुस्कुराते हैं, और बस इतना कहते हैं —
“जब तुझसे ना सुलझे तेरे उलझे हुए धंधे,
भगवान के इंसाफ़ पे सब छोड़ दे बंदे…”
कहानी का संदेश
जब जीवन में हर दरवाज़ा बंद लगे, तो एक बार विश्वास का दीपक जलाकर देखो —
जिसे तुम नहीं कर सकते, उसे भगवान जरूर करेगा।
बस सच्ची नीयत, कर्म और भरोसा रखो।
