पप्पू-पिंकू
पप्पू-पिंकू
अपनी सुहागरात को दुल्हन बनी, ग़म में डूबी, शर्म से सिमटी, मन ही मन सिसकती हुई सुहागसेज पर बैठी हुई गीता एक गठरी लग रही थी ! उसे दुख तो था ही पर गुस्सा भी था अपने माता-पिता पर जिन्होंने उसे एक बूढ़े के पले बांध दिया। उसके भीतर किसी प्रकार की कोई उमंग नहीं थी, बस थी तो वो केवल मायूस और परेशान, दुखी भी बहुत थी, सच कहूं तो उसके दुख का कोई पारावार न था। कितनी मजबूर थी कि विरोध भी न कर सकी। उसके माता-पिता सच में उसके माता-पिता थे ही नहीं, उन्होंने तो किसी से गोद लिया था वो भी दाम देकर। उनके कोई बच्चा नहीं था और रिश्तेदारी में तो कोई देने को तैयार भी नही था, इनकी काम वाली बाई ने कहा - मॅडम मैं आपको अपनी बेटी दे सकती हूं मेरे चार बेटियां हैं और कमाने वाला भी कोई नहीं है मेरे मरद ने दूसरी सादी बना ली, मेरे को और मेरे बच्चों को ऐसे ही भटकने को छोड़ दिया। मेरे को आप एक लाख रुपए दे दो, मैं अपने उन दूसरे बच्चों का पालन-पोषण कर लूंगी। अमीर तो थे ही एक लाख रुपए उनके लिए कुछ भी नहीं थे, पैसे देकर कानूनन गोद ले लिया। पता नहीं क्यों पर इस बच्ची से प्यार नहीं कर सके ऊपर से हर वक्त डांट-फटकार बेचारी पांच साल की थी फिर भी उससे घर का काम करवाते। इसे गोद लेने के दो साल बाद इनके खुद के एक लड़का हुआ और बाद में दो-दो साल के अंतराल में दो बच्चे और हुए एक लड़का, एक लड़की अब तो इस बच्ची के साथ और भी बुरा व्यवहार करते, घर का पूरा काम तो कराते ही, खाना भी बच्चों का झूठा बचा हुआ देते, वो बेचारी मासूम अपने बहन-भाइयों से बहुत प्यार करती उनका झूठा खाने में भी कोई उज्र नहीं था।
ऐसे माहौल में बड़ी हुई, सब समझने भी लगी थी और कुछ-कुछ याद भी था कि ये इसके सगे माता-पिता नहीं है, ना ही इन्होंने अपने बच्चों की तरह प्यार ही किया, बहन-भाइयों को पलते हुए देखा ही है तो फर्क भी समझ में आने लगा था बस ज़िन्दगी इसी तरह कटती रही, गुजरती रही। ऐसे में जवान हुई , खूबसूरत भी गजब की थी तो लोगों की नजरें भी उस पर गड़ने लगी थी, इस तरह की नजरों का सामना करते-करते अच्छी-खासी समझ तो आ ही गई थी, ये खा जाने वाली नजरें उसे चुभती थी, कोई - कोई नजर तो भीतर तक चीर कर रख देती।
एक बार उसने किसी अनजान अधेड़-बूढ़े को देखा जो उसे घूर रहा था लेकिन बड़ी अजीब बात थी कि उसके घूरने में वासना नहीं बल्कि प्यार झलक रहा था जिसमें वात्सल्य था, ममता थी। उसे वो अपने पिता जैसा लगता , सोचती - कहीं सच ही में मेरे पिता तो नहीं,, उस सज्जन का घूरना, देखना एक अलग सुख और खुशी देता, वह भी उन्हें बड़े प्यार से देखती जैसे उसके पिता ही हैं। पता नहीं क्यों उसे उस बंदे में अपना पिता नज़र आता जो अभी याद भी नहीं है पर जन्मदाता कोई था तो जरूर, हर एक का होता है जाहिर है उसका भी होगा, वो तो उस सज्जन रणजीत सिंह में पिता को देखती ही थी उससे अबोला, अनकहा रिश्ता जुड़ गया था उनसे इसलिए कभी हंस बोल भी लेती थी,वह भी उसे बेटी की तरह ही चाहता था। लेकिन यह तो औरों से भी नीच निकला, इसके ये वाले माता-पिता भी इतने-इतने गये-गुजरे, ! बेच दिया, अपनी बेटी का सौदा करने में जरा भी नहीं हिचकिचाये, भले ही पेटजाई नहीं थी, भले ही बेटी की तरह प्यार नहीं दिया था, भले ही नौकरानी बनाकर रखा फिर भी लिया तो था बेटी मानकर ही ना ! और रणजीत सिंह को बेचा दस लाख में,, वो भी इस शर्त पर कि वो शादी करेगा, रणजीत सिंह मान गया, उसे तो कैसे भी गीता को हासिल करना था लेकिन गीता को अपनेआप पर गुस्सा आता, खुद से ही नफरत होती कि उसने ऐसे नीच इन्सान को पिता की तरह माना,चाहा, उसमें पिता की छबि देखी अब भला उसे पति कैसे मान लें,, और इसीने एक चीज की तरह खरीद लिया अपने मज़े के लिए, इस्तेमाल के लिए,,, लानत है, ! उसने मन ही मन निर्णय कर लिया कि इसे जान से ही मार देगी पर रिश्ते को कलंकित नहीं होने देगी,, अपने पास एक धारदार छुरा लेकर बैठ गई फिर खुद को किसी तरह मजबूत करने की कोशिश करने लगी और कामयाब भी हुई बस कैसे भी मन को कड़ा किया और इंतज़ार करने लगी।
रात को करीब बारह बजे दरवाजा खुला, दूल्हा बना रणजीत सिंह आया, वो और भी सिमट गई, छुरे को टटोला। रणजीत सिंह आकर पलंग पर उसके पास बैठ गया, वो थोड़ी दूर खसक गई,, अब तक चुप्पी छाई हुई थी, दोनों चुपचाप जो बैठे मगर वार करने की ताक में थी। अभी छुरा मारने ही जा रही थी कि उसके कानों में आशा के विपरीत एक शब्द पड़े - बेटी गीता ! वो आश्चर्यचकित, इसी आश्चर्य में खुद ही घूंघट उठा लिया और सकते में बोली - बेटी ! क्या ?
हां, बेटी ! तुम मेरी ही बेटी हो, अपनी मां का प्रतिरूप हो !
अच्छा, अगर तुम्हारी बेटी हूं तो तुमने मुझसे शादी क्यों की ? क्यों नहीं बेटी की तरह अपनाया ? क्यों इस तरह छोड़ दिया ? क्यों खरीदा ? भला बेटी बेची-खरीदी जाती है ? कहां थे इतने लंबे अर्से तक ? कहां है मेरी मां ? शादी करते हुए तुम्हारा दिल जरा भी नहीं कांटा ? क्यों ? क्यों ? क्योंयोंयोंयों,, ? तुम शर्म से मर नहीं गये ? ज़मीन में गड़ नहीं गये ? तुम्हें कुछ भी नहीं लगा ? हे ईश्वर !
मेरा बच्चा, तेरा गुस्सा, तेरी नफरत सब जायज है पर मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा था। अपनी बेटी को पाना भी कितना नामुमकिन था। तुम्हें पाने का कोई भी न तरीका था, न ही जरिया। जिनके पास तुम थी सब समझाने, मिन्नते करने, अपनी मजबूरी भरी सच्चाई बताने के बाद भी टस से मस नहीं हुए !
लेकिन मैं इनके पास कैसे पहुंची ?
मेरा बच्चा, बहुत लंबी कहानी है, आज से बीस साल पहले जब तू चार साल की थी तब मेरी हीरल, तेरी मां का मर्डर हो गया था, उसका इल्जाम आया मुझ पर ! मिल गया आजीवन कारावास, मुझे अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका ही नहीं मिला। सच में बेटा मैने अपनी हीरल को नहीं मारा, मैं तो उसे बेहद प्यार करता था, करता हूं और करता रहूंगा। वो तो मेरी दुनिया थी, सबकुछ थी, अपनी हीरल और अपने जिगर के टुकड़े पिंकी को यानि कि तुमको प्यार करता था दिल का अमीर था मगर जेब का गरीब था। मैं जिस सेठ के यहां ड्राइवर था, उसकी बुरी नजर मेरी हीरल पर थी एक दिन कंपनी के काम से मुझे दिल्ली भेजा और पीछे हीरल के साथ जोर जबऱदस्ती करने की कोशिश की उसने अपने बचाव के लिए उसके सिर पर सोटी दे मारी वो तो बेहोश हो गया मगर इतने में उसके दो मित्र आ गये जो पहले से ही तय था इन तीनों की आंख थी हीरल पर ! उन दोनों ने तेरी मां के साथ जबरदस्ती की ऊपर से मार भी डाला, मैं आया, मुझ पर क्या बीती होगी ?तू मां के पेट पर लेटी हुई सिसकते-सिसकते दूध मांग रही थी। मैंने तुम्हें अभी गोद में लिया ही था, मेरे कपड़ों पर खून लगा था कि इतने में पुलिस आ गई और सेठ व उसके दोनों दोस्तों ने बयान दिया कि हमारे मैनेजर के साथ इसकी बीवी के नाजायज संबंध थे, ये सब देखकर सहन नहीं हुआ, सदमे में बेचारा आपा खो बैठा, मार दिया दोनों को। जबकि इन लोगों ने अपने बचाव के लिए बेचारे मैनेजर को भी मार डाला वो बेचारा भी गरीब जो था। और फिर कहते हैं हम होते तो हम भी यही करते, अच्छा हुआ पापियों को सजा दे दी।इस तरह सब मेरे अगेंस्ट में हो गया, मैं कुछ भी न कर सका तुम्हारी जिम्मेदारी भी इन लोगों ने ले ली, तुझे तेरी मौसी के पास छोड़ने वाला था मैं पर पुलिस ने आसवाशन दिया कि हम तुमको तुम्हारी मौसी को सौंप देंगे। मैं लाचार !
पूरे चौदह साल बाद आया मगर कुछ पता नही चला। तुम्हें ढूंढ़ना था, सेठ को सबक सिखाना था पर कैसे ? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, इसी दौरान मैनेजर के छोटे भाई राघव से मुलाकात हुई, वह भी अपने भाई का बदला लेना चाहता था, उसके भी बड़े बड़े लोगों से कोंटेक्ट थे, शेयर मार्केट में उसने बहुत कमाया था, मुझे भी सलाह दी बल्कि मेरी मदद भी की।
इन सबमें मेरा पहला मकसद था तुम्हें ढूंढ़ना। इन लोगों ने तुम्हें अपनी नौकरानी को दे दिया साथ में एक लाख रुपए भी दिए और कुछ समय के लिए भेज दिया गांव और कुछ दिनों बाद वापस बुला लिया बाद में लोगों में ऐसा शो किया कि अपनी नौकरानी से गोद लिया था और अपनी बेटी मानकर पाला-पोस, बड़ा किया लेकिन इन लोगों ने तेरे साथ कितना बुरा व्यवहार किया, यह सब तो तुझे पता है ही बेटा ! इन लोगों ने अपना ठिकाना और बिजनेस भी बदल लिया था ! बेटा पूरे पांच साल लगे तुम्हें तलाशने में वो भी तुम्हारी शक्ल हूबहू तुम्हारी मां से मिलने के कारण,, मुझे पूरा यकीन हो गया कि तू ही मेरी बच्ची है मगर ये लोग देने को तैयार नहीं थे, झूठ बोलने लगे, ऊपर से कहते हैं कि कितना खर्चा हुआ ऐसे कैसे दे दें अपनी बेटी को, ? और तुम्हें हासिल करने के लिए यह कुकर्म करना पड़ा। बीस लाख रुपए मांगे तेरे बदले मगर शर्त रखी शादी करने की नहीं तो किसी और को बेचने के लिए तैयार थे क्योंकि अब इनको तुम्हें घर से निकालना था, पैसे भी लेने थे, बदनाम भी नहीं होना था , दूसरा बंदा भी तैयार था वो शादी करने ही आया था मैंने अपनी बात बताई तो बेचारा भरे गले से बोला - भाईजी, अगर यह पुण्य का कार्य कर सका तो मुझे खुशी होगी ! उसके अलावा कोई सुनने-समझने को भी तैयार नहीं था, उसी ने कहा - भाईजी, आप अपनी बच्ची को बचा रहे हैं,,,, ये लोग तो बेचेंगे ही। फिर आपका मन पाक है तो असमंजस किस बात का ? मैं आपके साथ हूं। बस बेटा, अपने बच्चे को पाने के लिए किया, माफ कर दे आपने पापा को।
मैं कैसे मानूं, तुम मेरे पिता हो ?
क्या यह काफी नहीं तेरे विश्वास के लिए कि बीस लाख में खरीदने के बाद भी तुम्हें बेटी कह रहा हूं ?
तुम तो ड्रायवर थे, तुम्हारी माली हालत भी इतनी अच्छी नहीं रही होगी फिर भला इतने सारे रुपए कैसे कमा लिए ? शेयर मार्केट में इतना सारा रुपया वो भी इतने कम समय में ? क्यों, तुम्हारा क्या भरोसा यहां बीस में खरीदा कहीं और जगह तीस में बेच दोगे ! तुम मेरे पिता हो मुझे रत्तीभर भी भरोसा नहीं !
इसका समाधान भी है।
क्या ?
DNA जांच ।
सुनकर कुछ -कुछ भरोसा होने लगा।
आगे रणजीत सिंह कहता है - मैं जानता हूं बेटा, मैने बहुत घिनौना और नीच कर्म किया है लेकिन तुम्हें पाने के लिए और कोई रास्ता था ही नहीं,,,, तुम्हें खो देता, तू बिककर जाने कहां चली जाती।बच्चा, इन सबके लिए मैं शर्मिंदा हूं फिर भी तसली है कि मेरी बच्ची मेरे पास सुरक्षित और सही सलामत है। सबसे बड़ी बात तू मेरी बेटी है, बेटी थी और बेटी रहेगी ! पिंकू, DNA भी आज ही करवायेंगे। पिंकू सुनकर गीता को एकदम कुछ कौंध गया - सहसा बोल पड़ी - पापा !
इस एक शब्द को सुनने के लिए रणजीत सिंह के कान तरस रहे थे, आज पापा सुनकर उसके पूरे जिस्म में मानो सुरसरि लहराती हुई बहने लगी आंखों में पूरा सागर लहरा रहा था। भाव-विभोर होकर अपनी पिंकू को बाहों में भर लिया, आंखों का बांध टूट गया अपनी पिंकू का अभिषेक कर रहा था और पिंकू स्वयं गंगा-जमुना-सरस्वती बनी अपने पापा को नहला रही थी। कुछ देर बाद दोनों बाप - बेटी सयंत हुए तो पिता ने कहा - आज मेरे सारे पाप धुल गए, मेरी पिंकू ने धो दिए ! मुझे पहचानने के लिए, मुझपर भरोसा करने के लिए, मुझे माफ़ करने के लिए बेटा कोटि-कोटि नमन, मेरा बच्चा पिंकू,, अपने पापा के सीने से लग जा,,, आ जा मेरा बच्चा, आ जा ! गीता का तो रोना ही नहीं थम रहा था मानो सारे दुख- दर्द बह रहे थे ! कुछ देर यूं अपने पापा से लिपटी रही बाद में बोली - पापा, हम यहां इस शहर में नहीं रहेंगे।
हां पिंकू, यहां तो मैं भी रहना नहीं चाहता। हम मुम्बई चलेंगे दो-चार दिनों में सब समेटकर चले चलेंगे बेटा खुश मेरा पिंकू ?
यस सर !
अरे सर की बच्ची ठहर,अभी बताता हूं तुझे याद है पिंकू, तू छोटी थी तब क्या कहती थी ?
पप्पू !
तो आज से मैं तेरा पप्पू तू मेरी पिंकू ! रणजीत सिंह ठठाकर हंस पड़ा और गीता भी हंसने लगी मगर ये क्या,, ? हंसते-हंसते फफक पड़ी, कस के अपने पापा को पकड़ के रोती रही तो रणजीत सिंह भी खुद को संभाल न सका दोनों बाप-बेटी के भीतर बीस सालों का दर्द भरा हुआ था सो दोनों ने बहने दिया। काफ़ी देर बाद अपने पापा के सीने से लगी हुई एकदम मासूमियत से बोली - पप्पू, भूख लगी है।
ओओओ मेरा बच्चा, अभी देता हूं कहते हुए जेब से पैकेट निकालकर खोला,देखा - जलेबी थी, पप्पू जलेबी, ! तुम्हें याद है ?
जिससे बीस साल दूर रहा, चौदह साल तक तो सूर्य भी देखने को तरस गया था और बीस साल तक आंखों में तुम्हारी सूरत लेकिन दिल के आईने में तेरी ही वो भोली सूरत और बोलता हुआ तेरा चेहरा था तो भला याद क्यों नहीं होगा ?
इतने सालों में मैंने कभी भी जलेबी नहीं खाई पप्पू जब खाना ही जूठन के रूप में मिलता तो भला,, सुबक पड़ी।
बस पिंकू बस, भूल जा सबकुछ अब हम बाप-बेटी नई जिंदगी शुरू करेंगे,,, जहां तू पढ़ लिख कर वकील बनेगी, अपनी मां को इंसाफ़ दिलायेगी।
हां,,,, और अपने पप्पू को भी।
ओ मेरा पिंकू बेटा !
ओ येयेयेस मेरा पप्पू पापा ! लेकिन शादी का पाप तो चढ़ गया !
नहीं पिंकू, मैं मंडप में जरूर था उन कमीनों के कारण लेकिन अग्नि के सामने फेरे लेते समय यही संकल्प था कि मैं तपस्या कर रहा हूं अपनी बेटी को पाने के लिए अग्नि परीक्षा दे रहा हूं अग्नि की साक्षी में ही मैंने कसम भी खाई थी इन राक्षसों को मिटाने के लिए !
फिर जेल जाएंगे मुझे मंझधार में छोड़ कर !
नहीं पिंकू , सुबह होने दे पता चल जाएगा !
ऊंहूंऊऊऊ, नहीं अभी का अभी बताओ पप्पू !
ओके मेरी मां,,,, सुन, जिसने मेरी मदद की थी उसके निर्दोष भाई को मारा था वो भी मेरे साथ है, सारे पैसे भी उसी ने दिए थे वो भी कल सुबह वापस मिल जाएंगे ! सारे सबूत भी इकट्ठे कर लिए हैं हम लोगों ने, तू मेरी बेटी है DNA टेस्ट भी हो गया है !
कब ?
चार दिन पहले याद है - सर्वे करने वाले आए थे, सबका खून लिया था जांच के लिए !
हां पर वो तो सरकारी थे !
हां,थे तो लेकिन पुलिस कमिश्नर उस बंदे की पहचान का था, हम दोनों उनसे मिले सारा वृत्तांत बताया तो सच्चाई जानकर हमारा पूरा साथ दिया, इस कमीने का पूरा कच्चा चिठ्ठा सामने था, कमिश्नर बहुत ही ईमानदार और भले इंसान हैं ! कल हमारा गुनहगार सलाखों के पीछे होगा ! कोर्ट में सुनवाई होने तक हम यहीं रहेंगे !
नहीं पप्पू, अब हम कहीं नहीं जाएंगे, यहीं रहेंगे, शान से सिर ऊंचा करके रहेंगे ! मैं भी देखूं तो सही मेरे प्रिय मां-बाप का हस्र,, कहते-कहते गुस्से में भी आंखें छलछला गई ! पिता का भी दिल भर आया और अपने जिगर के टुकड़े को बाहों में समेट कर सीने से लगा लिया भर्राई आवाज में इतना ही बोल पाया - पिंकू और फफक पड़ा,, पिता के सीने से लगे हुए पिता को जोर से कस लिया और सिसकते हुए पप्पू...पप्पू। पिंकू मेरा बच्चा !
