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Tarusha Tak

Abstract Drama Classics

3  

Tarusha Tak

Abstract Drama Classics

पनिशमेंट या ट्रेजेडी

पनिशमेंट या ट्रेजेडी

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कुछ अधूरी कुछ पूरी सी है ये कहानी मेरे पहले पहले प्यार की, कहा से शुरू करु कुछ समझ नहीं आता। जब प्यार का मतलब भी नहींं पता था तब का प्यार, कच्ची उम्र में सचा सा प्यार हुआ था। मेरा पहला पहला प्यार Bluewale 

पहली मुलाकात शायद 4th में हुई थी, section A से दो लड़के हमारी क्लास sec D में आये थे। उम्हमे से था एक वो, आदित्य गुप्ता उर्फ़ अपनी माँ का लाडला सोन्ट। उम्र लगभग 10 से 12 के बीच, कद 4.5’ रंग शावला थोरा सा गोलूमोलु। पहली नज़र का प्यार नहींं था वो। पहली मुलाकात भी तो थोरी अज़ीब सी थी, इतेफाक कहलो या कोई सजा, टीचर ने ज्यादा बाते करने की सजा जो दी थी, उसके पास बैठा कर। पहली मुलाकात में ही लड़ने लगे थे, वो भी एक छोटे से रुब्बर को लेकर। कितना अज़ीब है ना ये। युही लड़ते-झगड़ते हम 6th में आगये। 

वो 6th क्लास ह ह ह …… मेरी जिंदगी का सबसे यादगार लम्हा, जिसे भूले भी भूल न सके मेरी जिंदगी न एक अज़ीब मोड़ जो आया था। वो लड़ने- झगडने वाला लड़का मेरा बेंच पाट्नेर जो बन गया था। बहुत परेशान करता था दिनभर बस बक-बक। दिमाग खा जाता था। रोज भगवान से दुआ करती थी कि जल्द से जल्द टीचर मेरी जगह बदल दे, इस पागल लड़के से दूर बैठा दे। पर पता नहींं था की वो रब तो कुछ ओर ही चाहता था, कुछ ओर ही लिखा था उसने मेरे नसीब में।

हरदम मुझसे लड़ता रहता था वो कभी चोटी खींचता कभी मेरे दोनों जूते की लेस बाँध देता गुस्सा होने पर बैग बीच में रख देता और मेरे गुस्सा होने पर मुझे मनात। मेरे उदास होने पर पता नहीं क्या करता ऐसा की हँसी आजाती कितना भी मुंड खराब क्यों न हों उसकी बकवास सुन कर होठों पर मुस्कान सी आजाती, कुछ जादू सा था उसकी बातों में। उसकी फालतू उल्टी फुल्टी बाते बीना सिर हाथ पैर की बाते अभी याद आती हैं। 

पता ही नहींं पड़ा कब उस उल्टी फुल्टी बाते करने वाले उस पागल सिर फिरे लड़का अब पसंद आने लगा। अब उसकी बक बक अच्छी लगने लगी थी। उसे पूरे दिन सुना अच्छा लगता था। उसका रूठने पर मनाना, उसका यू हँसी ठिठोली करना अब मन को भाने लगा। कैसा महसुस करती थी शब्दों में कैसे बयान करू। वो अंकहा एसास, वो अनजाना अनचुआ एसास। 

पर उसका साथ ज्यादा गवारा कहाँ था, टीचर ने हमारी जगह बदल जो दी थी। उपर वाले से माँगी हुई दुआ गलत समय पर जो कबूल कर दी थी। सही कहते है लोग उपर वाले के याहां देर है अंधेर नहींं ! फिर क्या होना था, जगह बदल गयी दोस्ती होते होते टूट गई। और फिर क्लास भी खत्म हो गई। हम 7th में आ गये !


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