STORYMIRROR

Neeraj Agarwal

Tragedy Inspirational

3  

Neeraj Agarwal

Tragedy Inspirational

पितृपक्ष..... कहानी

पितृपक्ष..... कहानी

3 mins
11

शीर्षक - जय पितर देव 

********************

पितृ पक्ष में हम सभी को पौराणिक कथा के अनुसार ---- पितृपक्ष में परिवार में कहानी कहनी व सुननी चाहिए । और सभी को कहानी सुनने और सुनाने के बाद मन से आरती भी बोलनीं चाहिए।


         मागे तथा भागे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। मागे धनी था और भागे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। मागे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भागे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी। पितृ पक्ष आने पर मागे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो मागे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।

 

अतः वह बोली- 'आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भागे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।' फिर उसने मागे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया। 

 

दूसरे दिन उसके बुलाने पर भागे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था।

 

इस अवसर पर न मागे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। मागे-भागे के पितर पहले मागे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भागे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे।

 

थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। मागे-भागे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भागे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भागे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भागे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे- 'भागे के घर धन हो जाए। भागे के घर धन हो जाए।'

 

सांझ होने को हुई। भागे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था। उन्होंने मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- 'जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बांटकर खा लेना।'

 

बच्चे वहां पहुंचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं। आंगन में आकर भागे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई।

 

इस प्रकार भागे भी धनी हो गया, मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृ पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं। ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया, दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया। इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए।

*************

पितर देव‌ की आरती 

****************

पितर देव पितृपक्ष में धरती पर आते 

आओ हम सब शीश झुकाते हैं। 

पितर देव धरती पर हमारे सुख दुःख देखने आते हैं अपने बच्चों को यह आशीर्वाद देने आते हैं। 

हम सभी को दिन पंद्रह पितर देव के मनाना चाहिए। आरती गावे हम पितर देव को याद करते हैं।

 हम सब पितर महाराज से कृपा चाहते हैं।

पितर देव विनती सुनो कृपा करें।

जय हो पितर महाराज की जय हो

*******************

लेखक - नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy