हार जीत...... एक सच
हार जीत...... एक सच
हार जीत जीवन में बहुत क्षण ऐसे आते हैं कि हमें कभी ना कभी जीवन में हर और जीत का सामना करना पड़ता है बस यही हार जीत या हार या जीत है। हार जीत कहानी के अंतर में बहुत सुंदर और मनभाव को जीतने वाली कहानी दो सहेलियों की कहानी सुनीता और अनीता की कहानी जो बहुत घनिष्ठ बहुत पक्की सहेली थी।
हार जीत की कहानी शुरू होती है सुनीता और अनीता दोनों ही एक ही कॉलेज की पढ़ने वाली सहेलियां है सुनीता और अनीता दोनों ही एक समान सुंदर और शारीरिक मांसल देह वाली अच्छी लंबी लड़कियां जो कि कॉलेज में हर खेल में हिस्सा लेती थी जब सुनीता और अनीता दोनों एक साथ एक ही जगह खेलती थी तो जीत इस तरफ होती थी जहां यह दोनों सहेलियां पक्ष में खेलती थी।
इस कॉलेज में एक खेल का कोच नीरज आता है वह भी बहुत सुंदर और गबरू जवान था परंतु उसकी उम्र 40 के ऊपर थी। परंतु नीरज की उम्र उसकी कद काठी से आधी लगती थी। नीरज का चेहरा तो ज्यादा खास नहीं था परंतु उसके बातचीत करने का तरीका और शारीरिक बनावट किसी भी दूसरे इंसान का मन मोह लेती थी।
सुनीता और अनीता के कॉलेज में खेल शुरू होने वाले थे और उनको भी प्रशिक्षण लेने के लिए नीरज के पास आना था परंतु सुनीता और अनीता की टीम में अब अलग-अलग हो चुकी थी और टीमों की अलग होने से सुनीता और अनीता का चयन भी अलग-अलग टीमों में हो चुका था। जिससे सुनीता और अनीता में भी अब प्रतिस्पर्धा हार जीत की शुरू हो चुकी थी।
सुनीता और अनीता और कॉलेज की अन्य विद्यार्थियों को नीरज भाला फेंक बैडमिंटन और लड़कियों का एक गेम खो-खो कालेज प्रतियोगिता में नामांकित हो चुके थे। नीरज जी खेल का कोच था और उसके लिए सभी विद्यार्थी कॉलेज के समान रूप से एक समान थे परंतु सुनीता और अनीता को आप यह सुंदरता और अपनी कद काठी पर घमंड था कि वह जिसे चाहे उसे झुका दें परंतु वह नीरज को नहीं पहचान पाई थी नीरज अपने काम के प्रति समर्पित था उसे सुंदरता और किसी भी तरह का कोई लोभ लालच ना था।
जब नीरज के पास सुनीता और अनीता अपने अपने समय अनुसार आई थी तब नीरज उनको समझाना था कि आप दोनों अपने खेल पर ध्यान दें ना कि अपनी सुंदरता और अपनी देह पर क्योंकि आप दोनों अपने-अपने टीम की मुख्य कप्तान है तो आपका फर्ज सीख कर अपनी टीम को समझाना और खिलाना है। जिससे आपकी टीम का हार जीत का फैसला हो सके।
सुनीता और अनीता दोनों ही मन ही मन नीरज को चाहने लगे परंतु नीरज का उसकी चाहत पर कोई असर न था क्योंकि वह तो सभी विद्यार्थियों की तरह सुनीता अनीता को सिखाता था। और वह दिन भी आ गया जब कॉलेज में प्रतियोगिता होनी थी और सुनीता अनीता अपनी अपनी टीमों के साथ आज कॉलेज की फील्ड में मौजूद थी।
नीरज को भी अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल था कि दोनों टीमों में से कौन जीत सकती है किसकी हार और जीत ही कॉलेज की हार जीत पर प्रतिष्ठा बनती है। बहुत सिटी में जो की सुनीता रानीता की टीमों से ज्यादा दबंग और सीखी हुई लग रही थी। नीरज को भी अपनी प्रतिष्ठा और कॉलेज के सम्मान की चिंता थी।
सुनीता की टीम दूसरे कॉलेज की टीम से बैडमिंटन प्रतियोगिता जीत लेती है नीरज को बहुत खुशी होती है और सुनीता की टीम को गोल्ड मेडल मिलता है उधर दूसरी ओर भला फेक और खो-खो में अनीता की टीम को भी सिल्वर और कांस्य से पदक मिलता है। कॉलेज की सुनीता अनीता की टीम की हार जीत से बहुत खुश था क्योंकि कहीं हार और कहीं जीत यह तो खेल का नियम है।
सुनीता अनीता दोनों नीरज के गले लग जाती है और नीरज भी सुनीता अनीता को गले लगाता है और उनकी हार जीत का मेडल खुशी से कॉलेज की बॉर्ड पर शान से लगाया जाता है। सुनीता और अनीता की वजह से कॉलेज की हार जीत में नीरज और सुनीता का योगदान रहता है।
नीरज कॉलेज के प्रांगण में एक छोटा सा भाषण देता है और कहता है हार जीत तो हमारे जीवन में हर जगह होती है परंतु हर जीत में ईमानदारी और हमारी होशियारी होनी चाहिए तभी वह हार जीत होती है। और खेल में हम सभी को हर और जीत से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि हार जीत तो खेल का नियम है और जब कोई जीतता है तभी तो दूसरा हारता है तब हारने वाला भी जीत गई हकदार है परंतु नियम के अनुसार हर जीत एक प्रतिस्पर्धा का नाम है ना की निराशा का काम है। आओ हार जीत को खेल के मैदान में छोड़ देते हैं।
