पिज्जा ब्वॉय
पिज्जा ब्वॉय
ट्रिंगगगगगगग........ ट्रिरींगगगगग......... दरवाजे की घंटी बजी, नैन्सी दौड़कर दरवाजे के पास आई, वह मन ही मन फुसफुसा रही थी ( ये पिज्जा ब्वॉय भी न आजकल बहुत आलसी हो गए हैं, पहले तो दस मिनट में ही डिलिवरी मिल जाती थी। आजकल इनके नखरे भी बढ़ गए हैं। आज तो पक्का सबक सिखाऊंगी।) वह दरवाजा खोलने के साथ ही उसपर जैसे टूट ही पड़ती है। बड़े ही कड़क आवाज में बोलती है- देखो तो साहबजादे को अपनी जिम्मेदारी का थोड़ा सा भी एहसास नहीं है। निठल्ला कहीं का, आज तुम्हारी वजह से मैं पूरे एक घंटे से भूख से तड़प रही हूँ। सामने से इतने कटुक बात सुनकर अयान का पारा नौवटप्पा के सूरज की तरह हो गया, अपने चरम पर। वह मन ही मन सोच रहा था कि उसे बता दे कि उसे अपनी जिम्मेदारी का कितना एहसास है, और वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी बखूबी करता है। मगर हां अगर छोटे से कंधों पर अगर भार बढ़ जाए तो उसे संभाल पाना मुश्किल हो जाता है।
अयान के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, अच्छा खासा उनका घर चल रहा था कि एक दिन अचानक उसके मम्मी पापा का एक्सीडेंट हो गया। पापा तो चल बसे, लेकिन शायद मां की ममता ने उसकी मां को यमराज के दरवाज़े से लौट आने पर मजबूर कर दिया। मगर ईश्वर भी चालाक है, उसने घर के एक स्तंभ को तो तोड़ दिया दूसरे को छोड़ा भी तो बहुत ही दयनीय परिस्थिति में। अयान की मम्मी अब देख नहीं सकती थी। उसे घर पर होकर भी न होने का एहसास होता था, और ऐसी परिस्थितियों में सोलह साल के उस नन्हें से बालक पर घर की जिम्मेदारी आ गई। वह पढ़ाई में बहुत तेज था, हमेशा कक्षा में अव्वल रहता था, मगर इस बार दसवीं के परीक्षा के पूर्व ही उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उसे उसके पापा के दोस्त ने एक जगह पिज्जा ब्वॉय की नौकरी दिलवा दी थी। महिने के दस हजार मिल जाते थे मगर इससे घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता था। उसने अपनी तकदीर से समझौता कर लिया था और धीरे धीरे अपनी परिस्थितियों को सुधारने में लगा था।
लेकिन पिज्जा ब्वॉय की नौकरी ही ऐसी थी जनाब, रोज अलग अलग किस्म के लोग मिलते थे, कुछ तो सहानुभूति प्रकट करते थे मगर उनमें से अधिकांश नैन्सी की तरह होते थे। अक्सर किसी न किसी बात को लेकर उसे लताड़ते थे। और जहर के घूंट पीने की भांति वह हर बार उनके कटु वचन को सह लेता था। वह चाहता तो अपने एक्सीडेंट के बारे में नैन्सी को बताकर डिलीवरी लेट होने का कारण और अपनी सफाई पेश कर सकता था। मगर उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि उसे दो वर्ष के अपने कार्यकाल में इतना तो अनुभव हो गया था कि अगर वह अपने बचाव में कुछ भी कहेगा तो उसे और खरी-खोटी सुनने को मिल जाएगी। इससे बेहतर उसने अपने वेतन से निन्यानबे रूपये कम मिलने वाले रास्ते को चुनना ज्यादा उचित लगा। क्या करें साहब, वो तो बस एक मामूली सा पिज्जा ब्वॉय था, अगर कोई सरकारी मुलाजिम होता तो इंडियन टाईम में कार्य पूरा करने पर भी उतना ही वेतन मिलता। वह दुखी मन से नैन्सी को पिज्जा देकर होटल की ओर लौट चला, बड़े ही अनमने ढंग से। क्योंकि होटल में उसका मालिक भी तो होगा, उसके इंतेज़ार में पलकें बिछाए, उसे जी भर कर गाली देने के लिए, और इन सबसे भी दर्द भरी बात, उसके वेतन से पैसे काटने के लिए। लेकिन अगले दिन फिर से आएगा भूखा प्यासा, गली गली में घूमकर भूखों को पिज्जा खिलाते हुए। वो पिज्जा ब्वॉय........