अलाव और वो काली रात
अलाव और वो काली रात
दिसम्बर की सर्द रात, जब मन चाहे ना चाहे काया यहीं चाहती है कि गरम - गरम रजाई में घोड़े बेचकर सोते रहे। ऐसे ही मैं भी सो गया था, एकदम जल्दी, तकरीबन आठ बजे। इतनी ठंड में सपनों की रंगीन दुनिया में सैर कर रहा था कि तभी फोन की घंटी बज उठी, सपनों में खलल तो पड़ा ही साथ ही मन में कंबल से बाहर ना निकलने की इच्छा जागृत हो गई। तभी ख्याल आया कि इतनी रात गए कोई अत्यंत आवश्यक कार्य के लिए ही फोन लगाएगा, यह सोच मैं उठा और फोन उठाया। नंबर सेव था तो शायद नाम भी लिखा रहा होगा, मगर मैं बेसुध था। मैंने कहा हैलो! सामने से एक सुबकती हुई आवाज आई... हैलो!..... आवाज जानी पहचानी थी। अरे हां! ये तो दीदी थी, बड़े पापा की बेटी। मन में एकाएक यह सवाल कौंधा कि आज ही तो यहां से गई थी, आखिर क्या हुआ होगा कि इतनी रात गए उसे फोन लगाना पड़ा। घड़ी की ओर निगाहें गई तो देखा घंटे की सुई और मिनट की सुई की दूरियां मिट गई थी, तथा घंटे की सुई मिनट की सुई को कंबल की तरह ओढ़े रखा था। रात के ठिक बारह बज रहे थे, चारों ओर सन्नाटा पसरा था कि तभी सन्नाटे को भेदते हुए एक करूणामई आवाज उठी, "तेरे जीजा मुझे बहुत मार रहे हैं, शराब पीकर आए हैं और बिल्कुल होश में नहीं है, बहुत बुरी तरह से मेरी पीटाई की है, और अगर जल्दी ना आए तो शायद ही मैं कल का सूरज देख पाऊंगी।" सिसकारियों भरी आवाज में एक साथ इतने सारे शब्द मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था। मम्मी ने दीदी से कहा कि आज रात भर जैसे भी कर के काट लो कल सुबह एकदम जल्दी लेने चले जाएंगे, और महिलाओं को अक्सर यह बातें झेलनी पड़ती है। मगर शराबी पति के मार से आंसुओं का वो सैलाब उमड़ रहा था कि उसने एक नारी के सहनशक्ति के बांध को चकनाचूर कर दिया था।
मैं फौरन गाड़ी निकाला, मम्मी और मैं बड़े पापा के घर की ओर रवाना हो गए, वहां जाकर दरवाजा पीटकर उन्हें उठाया, भैया ने गांव के ही गोंटिया को फोन करके कार ले आने को कहा, बड़ी मम्मी और बड़े पापा ने अलाव जलाया। धीरे - धीरे सभी के हृदय की भावनाएं अलाव की रौशनी में बाहर झलकने लगी। बातों ही बातों में शराबियों की इस पागलों की तरह हरकत पर बात छींड़ गई, आज ही तो दीदी, जीजा और भांजे घर आए थे, भैया की बेटी का छट्टी हो रहा था। दोपहर के भोजन के बाद दीदी यह कह कर ससुराल चली गई थी कि कल गुरुवार है, अगहन गुरुवार, तो लक्ष्मी की पूजा करनी है। फिर न जाने क्या हुआ कि शराबी शैतान अपनी बर्बरता पर उतर आया? क्या सचमुच शराब पीने से आदमी, आदमी न रहकर हैवान हो जाता है, और मर्यादा की सारी सीमाओं को लांघकर वह दरिंदगी पर उतर आता है। इसी बीच मां ने बताया कि कुछ समय पहले मामी का फोन आया था, वो बता रही थी कि मामा भी आज हमेशा कि तरह अपने शराबी अवतार में आए हैं, और मामी के साथ मारपीट करके अपने शराब का नशा दिखा रहे हैं।
इतने में कार आ गई, गांव के कोटवार काका, गोटिया, बड़े पापा, भैया, चाचा और मम्मी दीदी के गांव को चल दिए। मैं अलाव के पास बैठा रहा, सामने आग जल रही थी, और मन में गुस्से का भाव उबाल मार रहा था। मन तो यह कर रहा था कि सारे शराबियों को एक कमरे में बंद करके उनकी खूब सुताई करूं। आखिर उन्हें भी तो अहसास हो कि शराब के नशे की आड़ में बर्बरता किस तरह से नारी को छलनी करती है। मैं यूं ही उधेड़बुन में अलाव के साथ बैठा इस काली रात की कालिख को कम करने का प्रयास कर रहा था। मन में एक ही कामना थी कि भैया के जाते तक दीदी सुरक्षित रहे, और किसी तरह यह काली रात कट जाए जो धीरे धीरे मुझे अमावश की रात के करीब आने का अहसास दिला रही थी।............