पिछला जन्म
पिछला जन्म
एक बार की बात है जब चैतन्य महाप्रभु जो कि भगवान का अवतार माने जाते हैं, हरि नाम संकीर्तन कर रहे थे। वे अपने शिष्य श्रीवास पंडित के घर में भगवान के गीतों पर नृत्य कर रहे थे। चैतन्य महाप्रभु भगवान की भक्ति में इतने लीन हो जाते थे कि उन्हें अपनी सुध-बुध नहीं रहती थी और आनंद में उनके नेत्रों से पानी गिरता रहता था। यह उनका प्रतिदिन का कार्यक्रम था। उस दिन श्रीवास पंडित के घर सत्संग का आयोजन रखा गया था।
अचानक श्रीवास पंडित को अपने घर के अंदर से अपनी पत्नी के रोने की हल्की सी आवाज आई। श्रीवास पंडित चुपके से घर के अंदर गये और पत्नी से रोने का कारण पूछा तो पत्नी ने अपने पुत्र की ओर इशारा कर दिया। उनके बीमार पुत्र का निधन हो चुका था। इसे देखकर श्रीवास पंडित स्तब्ध रह गये। उन्होंने अपनी पत्नी को कहा "महाप्रभु अभी सत्संग कर रहे हैं और वे भगवान में लीन हैं। तुम्हारे रोने से उनकी भक्ति में व्यवधान होगा इसलिए तुम अपने होंठों को सिल लो"।
ऐसा आदेश देकर श्रीवास पंडित सत्संग में आ गये।
अचानक चैतन्य महाप्रभु की दृष्टि श्रीवास पंडित के मुख पर पड़ी तो उन्हें श्रीवास पंडित के चेहरे पर विषाद की छाया नजर आई। चैतन्य महाप्रभु ने तुरंत सत्संग रोक दिया और श्रीवास पंडित से पूछा
"क्या कोई शोक है" ?
श्रीवास पंडित चैतन्य महाप्रभु के सत्संग में व्यवधान नहीं डालने के उद्देश्य से बोले "महाप्रभु ! आप जब स्वयं यहां विराजमान हैं तब यहां शोक कैसे हो सकता है ? शोक आपके आसपास आ ही नहीं सकता है महाप्रभु"।
लेकिन चैतन्य महाप्रभु को आभास हो गया कि कुछ न कुछ तो ऐसा है जिसे उनसे छुपाया जा रहा है। उन्होंने श्रीवास पंडित से सही सही बात बताने का आग्रह किया तो श्रीवास पंडित ने सब कुछ बता दिया। चैतन्य महाप्रभु श्रीवास पंडित के पुत्र के पार्थिव शरीर के पास आ गये और उनकी पत्नी को सांत्वना देने लगे। उनकी पत्नी इससे जोर जोर से रोने लगी। तब उसे रोते देखकर चैतन्य महाप्रभु बोले
"मैं ऐसा कौन सा यत्न करूं जिससे आपका यह शोक दूर हो जाये" ?
तब उस अभागी मां ने कहा "आप तो सर्व समर्थ हैं महाप्रभु ! मैं अपने पुत्र से एक बार बात करना चाहती हूं। बस, यही मेरी इच्छा है"।
चैतन्य महाप्रभु ने उस पार्थिव देह पर अपना हाथ रखा और कहा "हे जीवात्मा ! एक बार लौटकर आओ। आपकी माता आपसे बात करना चाहती है" !
चैतन्य महाप्रभु तो स्वयं भगवान का अवतार थे इसलिए उस मृत शरीर में हलचल हो गई और वह शरीर बोल पड़ा "हे महाप्रभु ! मुझे यह बताने का श्रम करें कि मुझे मेरी कौन सी माता याद कर रही है ? मेरे अब तक न जाने कितने जन्म हो चुके हैं। यदि आप स्पष्ट कर पायें तो मैं उनसे बात कर सकता हूं"।
इस बात को सुनकर वहां सभी उपस्थित लोग स्तब्ध रह गये। श्रीवास पंडित की पत्नी जो उस बच्चे को अपना समझ रही थी, उसे सत्य का भान हो गया। सत्य यही है कि हम सब जीवात्मा हैं जो परमात्मा के ही अंश हैं। हम लोग शरीर या देह नहीं हैं अपितु शरीरी या देही हैं। शरीर जन्मता और मरता है न कि शरीरी। श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक संख्या 2.23 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
अर्थात यह शरीरी न तो किसी शस्त्र से काटी जा सकती है, न इसे अग्नि जला सकती है, न इसे जल गीला कर सकता है और न इसे वायु सुखा सकती है। अर्थात यह जीवात्मा अजर, अमर, अविनाशी है जो प्रत्येक जन्म में एक नये शरीर में प्रवेश कर जाती है। जिस तरह हम लोग वस्त्र बदलते हैं उसी तरह यह आत्मा शरीर बदलती है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि हे अर्जुन ! तेरे और मेरे अब तक हजारों जन्म हो चुके हैं पर वे तुझे याद नहीं हैं, मुझे तो याद हैं"।
इस प्रकार स्पष्ट है कि हमारे भी कितने हीज्ञजन्म हो चुके हैं, वे हमें याद नहीं हैं। 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ है। बड़ी मुश्किल से यह योनि हमें मिली है जो अपना कल्याण करने के लिए ही मिली है। अपना कल्याण इसी में है कि हम सब अपने अंशी यानी भगवान श्रीकृष्ण की सेवा करें, उनसे अनन्य भाव से प्रेम करें जैसा मीराबाई ने किया था। मीराबाई ने हम सबको एक अचूक मंत्र थमा दिया है
"मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई"।
हम भी इसी मंत्र से मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं और जन्म मरण के चक्र से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं।