फटी जेब

फटी जेब

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आज की कहानी मैं अपने बेटे अनुराग के एक किससे पर लेकर लिखूँगी। अनुराग ग्यारह साल का अंशुमन सात का।

भाई आज 21मार्च है और मम्मी का जनमदिन है क्या दें मेरी गुल्लक मे शायद पचास रूपये है तू देख तेरी गुल्लक में कितने होंगे।

चल गुल्लक तोड देता हूँपचास रूपये है भाई गुल्लक तोडकर अंशुमन ने कहा।

सौ रुपये हो गये है अब मिलाकरदोनो बेटे खुश थे । पास की एक परचून की दुकान थी रेजगारी देकर सौ का एक नोट ले आये दोनों।

विचार बना क्या दे मम्मी को जन्मदिवस पर उपहार लिपिस्टिक दूं

नही बहुत सारी है मम्मी के पास।

बालों का क्लिप।

न भाई मम्मी जुडा बनाती है।

फिर सिंदूर की डिबिया।

हाँ भाई।

चल मैं दुकान पर देखता हूँ ! जो पसंद आयेगा ले लूंग। अनुराग ने मुझे कहा मम्मी स्कूल का कुछ सामान लाना है मैं जरा जाऊं।

हां जाओ संभलकर जाना और अनुराग बाजार चला गया जो घर से थोडा ही दूर था। घर के पास नेशनल हाईवेज चलता है तो भय था मन में कह दिया सम्भलकर जाना

थोडी देर बाद अनुराग आये और रोने लगे फूट फूट कर। मैं घबरा गई मेरा बच्चा क्यों रो रहा है क्या हुआ।

गोद में बैठाकर आँसू पोछे और पूछा क्या हुआ बेटा।

मम्मी आज आपका जन्मदिन है और हम दोनो ने अपनी गुल्लक तोड़कर आपके लिए एक गिफ्ट लाने की सोची। जब मैं घर से निकला रूपये हाथ में थे और पसीने से गीले हो रहे थे मैंने जेब में रख दिये। दुकान में आपके लिए एक सुंदर सी सिंदूर की डिबिया देखी थी ले भी ली और एक गुलाब भी लिया। जैसै जेब में हाथ डाला रूपये नहीं थे। जेब टटोल कर देखा मन घक्क रह गया कयों कि फटी जेब थी मैंने बोला आन्टी रूपये घर छूट गये सोरी मम्मी।

मैं भी रो गई उस समय उसका प्यार भोली सूरत और आंसुओं की धारा मुझे उस गिफ्ट से बढ़कर लगे। मैं बोली मेरा बच्चा तभी अंशुमन बोला मैं भी हूँ तुम्हारा बच्चा। गुल्लक मैंने भी तोड़ी, उसको भी लिपटा लिया अपनी ममता की छाँव में


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