Madhavi Nibandhe

Tragedy

3  

Madhavi Nibandhe

Tragedy

फ़सल

फ़सल

3 mins
272


खेत से लौटते ही सुखीराम ने पूछा, "बुधली आज लालटेन क्यों नहीं जलाई अगर टीराच नहीं होता तो अंधेरे में झोपड़ा ढूंढ न पाते हम, लाओ जलाए देते हैं।"


बुधला ने हाथ से माचिस छीन ली और बोली, "बड़े राजा भोज बन रहे हो, मिट्टी का तेल अब थोड़ा ही बचा है, भोलू जब पढ़ने बैठेगा तो जलाए देंगे लालटेन।" खाना खाकर बुधला ने लालटेन जलाई और पढ़ते हुए भोलू के सामने रख दी, और खुद आंगन में चांद की रोशनी में बैठे सुखीराम के पास जाकर बैठ गई।


दोनों चुपचाप कभी अपने बंजर खेत देखते तो कभी आसमान में चांद को। बुधला बोली, "कल जब बिजली आवेगी तो टीराच में बिजली भर लेना और फून में भी। पंप चालू कर के खेत में पानी भी तनिक ज्यादा दे देना, देखना साल भर में जमीन लहलहा उठेगी।"


सुखीराम बोला, "बड़ी मूरख है तू, रात के अंधेरे में भी दिन के सपने देखना नहीं छोड़ती। इत्ता सा खेत बचा है, जो बंजर होने को है। जमीन के सीने में पानी ही नहीं है तो बीज पनपेगा कैसे? 24 घंटा में 4 घंटा बिजली आवे है, अब इत्ते से बखत में आदमी क्या-क्या करे? बारिश की राह देखना तो हमने बंद ही कर दिया है। बस इस साल की फसल अच्छी हो जाए, भोलू कॉलेज खत्म कर लें तो बैंक का कर्जा चुका देंगे। बड़े सपने हैं बुधली हमारे, अब यह टूटे घर से झांकती रोशनी और तुम्हारी फटी साड़ियां हमसे बर्दाश्त नहीं होती।"


बुधला बोली, "फिजूल में चिंता करते हो, भोलू शहर से नई नई चीजें लाकर फसल उगाएगा फिर सब वापस आ जाएगा।"


भोलू परीक्षा देने शहर चला गया। कर्जा लेकर सुखीराम ने नई उम्मीदों की फिर से बुवाई की। इस बार उम्मीद धरती का सीना चीरकर ऊपर आई, पूरे खेत में हरी कोंपले फूटी थी। बुधला तो किसी नवयौवना की भांति उछल कूद रही थी। पूरे 5 साल बाद भूरी धरती पर हरी छटा छाई थी। सपने जैसे आंखों से निकलकर जमीन पर बिखरते जा रहे थे।


एक दिन सुखीराम ने पूछा, "बुधली बिजली क्यों नहीं आई खेत में पानी छोड़ना था।" सिर्फ उसी दिन नहीं अगले 15 दिनों तक बिजली नहीं आई। कुएं से खेतों को सींचकर अब सुखीराम के हाथों ने भी जवाब दे दिया। फसल की प्यास अब घड़ों और बाल्टियों से बूझने वाली नहीं थी।


सुखीराम ने अपनी आखिरी उम्मीद भोलू को फोन लगाया भोलू बोला, "बापू मैं तो पहले ही कहता था खेतों में कुछ नहीं रखा, मैं आपकी तरह बंजर जमीन पर फसल के झूठे सपने नहीं उगाना चाहता, मुझे शहर में अच्छी नौकरी मिल रही है। मैं अब वापस नहीं आऊंगा। ऐसा किसान किस काम का जिसकी खुद की थाली खाली हो। चार-पांच साल में आपको भी यहां बुला लूंगा।" सुखीराम ने फोन रख दिया। 

     

आज भी कुटिया में लालटेन नहीं जली और शायद यह बंजर जमीनों का किसान अब कभी लालटेन जलाएगा भी नहीं।


Rate this content
Log in

More hindi story from Madhavi Nibandhe

Similar hindi story from Tragedy