फैसला कुर्सी का
फैसला कुर्सी का
आस्था और नयन एक बहुत ही अमीर परिवार से संबंध रखते थे। उनका अपना कारोबार था। शहर में उनका अपना एक बहुत बड़ा घर था जहां पर नयन की माँ उन दोनों के साथ ही रहती थी। उन दोनों का एक प्यारा सा बारह साल का बेटा अनिकेत था। यह नाम उसको उसकी दादी ने दिया था। नयन की माँ की तबियत बहुत ज्यादा खराब रहती थी। नयन के पापा की मौत तो कई सालों पहले हो चुकी थी। उसकी माँ किसी सदमे से ग्रस्त थी जो आज तक आस्था और नयन समझ नहीं पाए थे। लेकिन वे दोनों अपनी माँ का बहुत ध्यान रखते थे। कुछ समय के बाद उसकी माँ की तबियत बिगड़ती चली गई और डॉक्टर ने जवाब दे दिया। देखते ही देखते एक दिन उनकी माँ भी उन्हें छोड़ कर चली गई। अपनी माँ के जाने के बाद नयन टूट सा गया था और आस्था का भी अब घर में अकेले मन नहीं लगता था। इसलिए नयन ने अपने कारोबार को दूसरे शहर में बढ़ाने की सोची और यहां से चले जाने का फैसला किया। क्योंकि अब शहर में उनका मन नहीं लगता था।
अपने कारोबार को पूरी तरह से दूसरे शहर में स्थापित करने के बाद वहां पर एक प्यारा सा घर ख़रीद लिया और फिर आस्था को सामान पैक करने के लिए बोल दिया। अनिकेत का भी दूसरे शहर में ही स्कूल में प्रवेश कराने का फैसला ले लिया। आस्था एक-एक करके सारा सामान पैक करने लगी। घर में बहुत सारा फर्नीचर भी था। लेकिन उस सारे फर्नीचर में अगर कुछ खास चीज थी तो वह दो कुर्सियाँ जो अब कबाड़ के कमरे में आस्था की सास के कहने पर रखवा दी गई थी जिसे उसकी सास ने उसके ससुर को तोहफे में दी थी। दोनों कुर्सियाँ बहुत खास थी। जिस पर बैठकर नयन के माता-पिता शाम की चाय के साथ घंटों बातें किया करते थे। लेकिन यह कुर्सियाँ अनिकेत को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। फिर भी उन्होंने उन कुर्सियों को संभाल कर अपने सामान के साथ रखवा दिया और चल पड़े दूसरे शहर की ओर।
दूसरे शहर में पहुंचने के बाद नयन ने अनिकेत का दाख़िला घर से थोड़ी दूर पर ही एक अच्छे स्कूल में करवा दिया और उन दोनों ने मिलकर अपने घर को व्यवस्थित कर लिया। नयन ने अपने कारोबार को भी संभाल लिया। अनिकेत भी अपने दूसरे स्कूल में जाकर बहुत खुश था। अनिकेत के बहुत सारे दोस्त बन गए थे जिनमें से कुछ बहुत शरारती थे और अक्सर अनिकेत को परेशान किया करते थे। एक दिन खेलते खेलते अपने स्कूल में अनिकेत एक कमरे में पहुंच गया जहां पर प्रायः ताला लगा रहता था। लेकिन आज उस कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था। जैसे ही वह वहाँ से चलने लगा उसको अपने एक दोस्त की आवाज़ सुनाई पड़ी। जैसे ही उसने कमरे का दरवाज़ा खोल कर देखा तो उसका दोस्त हँस पड़ा और बोला,
“डर गया ना डर गया ना" ऐसा कहकर वहां से चला गया।
इतने में स्कूल की छुट्टी हो गई और सब अपने अपने घर को चल दिए। अनिकेत को खाना खिलाने के बाद अपने काम निपटा कर जब आस्था कुछ देर के बाद कमरे में पहुंची तो उसने देखा कि अनिकेत उस कुर्सी पर बैठा था जो उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, लेकिन अब वह उस पर बैठकर बहुत जोर-जोर से हँस रहा था और खुश हो रहा था। आस्था यह देख कर चौक गई लेकिन अनिकेत को उस कुर्सी पर बैठा देखकर बहुत खुश भी थी।
दूसरे दिन अनिकेत जब सो कर उठा तो उसे बहुत तेज़ बुखार था और उसकी गर्दन के नीचे लाल निशान पड़ गए थे। आस्था ने नयन को इस बारे में बताया और उसे डॉक्टर के पास तुरंत ले गए। उसकी कई टेस्ट करवाए गए लेकिन सारी रिपोर्ट नॉर्मल आई थी । फिर भी अनिकेत का बुखार कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
एक दिन अचानक रात को जब आस्था नयन के लिए पानी लेने उठी तो अनिकेत को कमरे में नहीं पा कर चौंक गई। उसने अनिकेत को घर के सारे कमरों में देखा लेकिन अनिकेत नहीं मिला। इतने में उसकी निगाहें उस कुर्सी की तरफ गई जो उसकी दादी की थी। अनिकेत को वहां पर बैठा देखकर जैसे ही वह उसके करीब गई तो उसने पाया कि उनके बगीचे में कुछ दिन पहले बिल्ली ने जो बच्चे दिए थे वह अनिकेत के हाथ में थे और अनिकेत उनको जिंदा काटकर खा रहा था। उसका पूरा मुंह खून से सना था। यह देखकर आस्था की चीख निकल पड़ी और नयन की नींद खुल गई। उसने देखा कि आस्था बेहोश पड़ी है। वह आस्था की आंखों पर पानी छिड़क कर उसको होश में लाया और उससे पूछा
“ क्या हुआ आस्था! तुम यहां पर बेहोश कैसे हो गई? तुम क्यों चीखी थी?"
आस्था अनिकेत अनिकेत करते हुए डरने लगी इतने में नयन बोला कि "अनिकेत को क्या हुआ? वह तो अपने कमरे में आराम से सो रहा है।" आस्था ने जब अनिकेत को कमरे में सोता हुआ पाया तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। वह बहुत डरी हुई थी नयन ने किसी तरह उसे समझा कर सुला दिया। नयन को लगा कि आस्था ने कोई बुरा सपना देख लिया है जिससे वह डर गई है। अनिकेत का बुखार कुछ कम हुआ था लेकिन उसके गर्दन पर पड़े निशान वैसे के वैसे ही थे।
एक दिन आस्था किसी काम से बाहर गई हुई थी और अनिकेत घर पर अकेला था। जैसे ही नयन अपने काम से वापस लौटा तो उसने पाया कि अनिकेत उसको घूर रहा है। उसने अनिकेत को जैसे ही पूछना चाहा, इतने में ही अनिकेत बोल पड़ा,
“आ गया तू! तू भी अपने बाप पर ही गया है।"
यह सुनकर नयन चौंक गया क्योंकि इस बार अनिकेत की आवाज़ किसी लड़के की नहीं बल्कि किसी औरत की थी। जैसे ही नयन अनिकेत को छूने के लिए आगे बढ़ा तो उसने हवा में उछलते हुए नयन को दरवाज़े के बाहर फेंक दिया। अब नयन को समझ में आ चुका था कि उस दिन आस्था क्यों घबरा गई थी और क्यों अनिकेत को लेकर बार-बार कुछ बोल रही थी।
आस्था के घर वापस आने के बाद नयन ने उसको अनिकेत के बारे में सब कुछ बताया। आस्था बहुत घबरा गई थी। उन दोनों ने यह बात अपने एक परिचित को बताई। उस परिचित ने उन दोनों को कहा कि" शायद अनिकेत पर किसी प्रेत का साया है इसलिए उनको अनिकेत को एक ऐसे इंसान के पास ले कर जाने को कहा जो यह सारी चीजों से छुटकारा दिलाता था।" शायद अनिकेत समझ चुका था कि उसे वहां लेकर क्यों जा रहे है? इससे पहले कि वह दोनों अनिकेत को लेकर उस जगह पर पहुंचते, वह इंसान मर चुका था। वह कैसे मर गया ,किसी को भी नहीं पता था।
अब उन दोनों को भगवान के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिख रहा था इसलिए उन्होंने अपने घर पर ही पूजा रखवाई और किसी बहाने से अनिकेत को लेकर वहां बैठे। यह सब देख कर अनिकेत जोर जोर से रोने लगा जिससे वह दोनों पूजा के बीच में से ही उठ पड़े। उन दोनों की पूजा बीच में ही भंग हो गई। इतने में अनिकेत बोला ,
“तुम लोग अपने बेटे को बचाना चाहते हो ना ! लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी"
“मैं भी बहुत तड़पी थी अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए लेकिन तेरे माँ-बाप की वजह से मेरे बेटे को न्याय नहीं मिल पाया और मुझे भी खुद को मारना पड़ा। अब तुम लोग भी तड़पोगे।"
“आस्था ने पूछा कि अनिकेत ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, तुम मेरे बच्चे को क्यों परेशान कर रही हो? "
अनिकेत बोला, “तेरे बच्चे ने नहीं, तेरे ससुर ने मेरा सब कुछ छीन लिया मेरी एक आख़िरी जो उम्मीद थी उसे भी खत्म कर दी। अब मैं तेरे बच्चे को नहीं छोडूंगी। यही मेरा अनिकेत है।"
यह सुनकर आस्था और नयन दोनों चौंक पड़े। वह क्या बोल रही थी कि उनका बेटा उसका अनिकेत है?
वे दोनों बोले , “ऐसा कैसे हो सकता है। अनिकेत सिर्फ उनका बेटा है और किसी का नहीं। " समझी! तुम कौन हो?
क्यों हमारे बेटे के पीछे पड़ी हो!
वो नयन से चिल्ला कर बोली ,
“मैं तेरी माँ की सबसे अच्छी सहेली थी। तेरी माँ मुझे अपनी बड़ी बहन की तरह समझती थी। मेरा पन्द्रह साल का बेटा अनिकेत जो तेरी माँ को मांसी कहता था एक दिन हमारे घर पर संदिग्ध परिस्थितियों में घायल अवस्था में मिला। मैं और मेरे पति घर पर नहीं थे। अनिकेत उस वक्त घर पर अकेला था । मैं नहीं जानती थी उस दिन क्या हुआ था ? जब मैं वापस घर आई तो देखा कि अनिकेत को किसी ने चाकुओं से गोद दिया था। अनिकेत को इस हालत में देखकर मैं घबरा गई और मैंने उसे बचाने के लिए उसका चाकू निकाला लेकिन इससे पहले मैं कुछ कर पाती, अनिकेत मर चुका था। हां मेरा बेटा जा चुका था। इतने में पता नहीं किसने पुलिस को खबर दे दी थी और पुलिस ने वहां पहुँचकर मुझे गिरफ्तार कर लिया। सारे सबूत मेरे खिलाफ थे। तेरे पिता जो उस वक्त उस अदालत में जज थे जहां मेरा केस चल रहा था और वो अदालत वहाँ थी जहाँ आज तुम्हारे बेटे का स्कूल है। कुछ समय बाद ही उस अदालत को वहाँ से बंद करके दूसरी जगह विस्थापित कर दिया गया था। कोई पुख्ता सबूत ना मिल पाने की वजह से मेरे को दोषी मान लिया गया और सबको यही लगता था कि मैंने अपने बेटे को मार दिया। मेरे बेगुनाह होते हुए भी मुझे उम्र कैद की सजा सुना दी गई। मेरे पति ने बेटे के ग़म में आत्महत्या कर ली और मेरे बेटे के हत्यारे को कभी सजा नहीं हुई। मेरा सब कुछ छीन लिया गया। "
उस दिन जेल में मुझसे तेरी माँ मिलने के लिए आई और बोली कि “ मुझे माफ़ कर देना मैं नहीं जानती थी कि जो कुर्सियाँ मैंने अपने पति को तोहफे में यह सोचकर दी थी यह उस पर बैठकर अच्छे फैसले लेंगे, वहीं बैठकर एक गलत फैसला ले लिया जाएगा । मुझे मेरे पति ने यह बात कल रात ही बता दी थी कि आपको उम्र कैद होगी।" उसकी यह बात सुनने के बाद अब मेरे पास जीने के लिए कोई वजह नहीं थी और मैंने जेल में फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली लेकिन मेरी रूह को कभी शांति नहीं मिल पाई।
नयन यह सारी बातें कभी नहीं जानता था क्योंकि उस वक्त वह सिर्फ दो साल का था। और इसके बाद वे लोग दूसरे शहर में आ गए थे।अब नयन शायद समझ गया था कि क्यों माँ ने उनके बेटे का नाम अनिकेत रखा था और क्यों वह हमेशा एक सदमें में रहती थी।
नयन और आस्था की आंखों में आँसू थे। वो पछता रहे थे। आस्था ने कहा, मैं आपकी तकलीफ़ समझ सकती हूँ लेकिन इसमें मेरे मासूम अनिकेत का क्या दोष? आस्था ने उसके आगे हाथ जोड़कर कहा, “मैं जानती हूँ कि तुम एक माँ के दर्द को समझोगी। कृपया मेरे अनिकेत को छोड़ दो और चली जाओ। इतने में अनिकेत बेहोश होकर गिर गया। शायद अनिकेत अब आज़ाद हो चुका था। अनिकेत अब पूरी तरह ठीक हो चुका था।
कुछ दिन में ही नयन ने उस घर को बेचकर दूसरे घर में जाने का फैसला किया। नयन ने उन कुर्सियों को वही छोड़ने का निश्चय किया लेकिन पता नहीं क्यों अनिकेत को उन कुर्सियों से अब भी लगाव था और वह उनको अपने साथ लेकर जाना चाहता था।
सही कहा है किसी ने, “जिंदगी में कुछ किस्से कभी नहीं भूलने वाले भी होते हैं। "

