मोह से परे एक सैनिक
मोह से परे एक सैनिक
सार्थक एक सात साल का मासूम सा लेकिन बहुत समझदार बच्चा था। अपने मोहल्ले में रोजाना की तरह अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। अचानक उसने सेना के एक जवान को राह से जाते देखा। सेना की पोशाक में वह जवान बहुत अच्छा लग रहा था।
सार्थक टकटकी लगाए उसे ही देखे जा रहा था। तभी उसके एक दोस्त ने बताया कि यह सैनिक है। यह देश की सुरक्षा करते हैं। तभी उसके मन की कोपल फूटी और हर मासूम बच्चे की तरह उसने बचपन में ही निश्चय किया कि उसे सेना में जाना है।
वो दौड़ता हुआ अपनी माँ के पास गया और अपनी माँ से बोला कि माँ-माँ मुझे बड़ा होकर सैनिक बनना है। माँ हसते हुए बोली कि तू जानता भी है कि सैनिक कौन होते हैं ?
सार्थक ने जबाब दिया, हाँ माँ मैं जानता हूँ। ये हमारे देश की रक्षा करते हैं। दुश्मन से लड़ते हैं जिससे हम अपने घरों में सुकून से रह पाते हैं।
माँ ने मना कर दिया और उसे समझाते हुए बोली कि बेटा तू मेरा इकलौता बेटा है। मैं तेरे बिना एक पल भी रह नहीं सकती। मैं तुझे सैनिक नहीं बनने दूंगी। यह ख्याल भी अपने दिल से निकाल दे। सार्थक उदास होकर बोला, लेकिन माँ क्यों नहीं बन सकता मैं सैनिक ? सैनिक तो बहुत बहादुर होते हैं और आप चिंता नहीं करो, मैं भी बहुत बहादुर हूँ।
माँ ने उच्च स्वर में कहा, मना कर दिया न। अब इस बारे में बहस नहीं होगी। सार्थक का मासूम मन माँ की व्यथा को समझ नहीं पा रहा था। तब माँ ने उसे प्यार से अपने पास बिठाया और बोली कि बेटा एक सैनिक कब शहीद हो जाए, यह कोई नहीं जानता। वो कितने महीनों तक अपने घर नहीं जा पाते। क्या तू अपनी माँ को तड़पाना चाहता है ?
सार्थक बोला, बिल्कुल भी नहीं माँ, ऐसा कभी नहीं होगा। लेकिन माँ, मैं एक बात पूछना चाहता हूँ आपसे। जो सैनिक वहाँ सीमा पर खड़े हैं और देश की सुरक्षा कर रहे हैं वो भी तो किसी के बच्चे हैं। उनके अपने भी तो उनके लिए तडपते होगें और बच्चे एक हो या चार। क्या फर्क पड़ता है।
माँ आप ही तो कहती हैं कि धरती हमारी मां होती हैं और हमें हमेशा इसकी रक्षा करनी चाहिए तो आज आप स्वंय मुझे मना कर रहीं हैं और माँ मेंने पढ़ा है कि मरना तो हम सबको है, तो क्यों न कुछ अच्छा किया जाए जिससे सब हम पर गर्व करें।
अब माँ समझ चुकी थी कि एक बच्चे ने उन्हें जिंदगी की क्या सीख दी थी। बात छोटी सी थी लेकिन अर्थ बहुत बड़ा था।
