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Alka Gupta

Tragedy

4  

Alka Gupta

Tragedy

पगफेरा

पगफेरा

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राजेश्वरी को आवाज लगाती हुयी ; "सरोज अरे गौतम की माँ कहाँ हो" , गोद से पाते को उतारते हुये , थकान ही पोटली सी धम्म से आँगन में रखे मून्डे में धँस गयी । इतने में राजेश्वरी की दूसरी पड़ोसन भी वहाँ आ गयी , और फिर शुरू हो गया , .वहीं खबरों का आदान प्रदान...

अरे पता है , थकी सी दिख रही , सरोज चहकने लगी, प्रतीत होता, जैसे चुगली करना, इनकी ऊर्जा का टॉनिक हो....

"कल राहुल का जन्मदिन था । शादी के बाद का पहला जन्मदिन , इसलिए सब खर्चा उसके ससुरालियों ने ही किया तभी दूसरी पड़ोसन मुँह बनाते हुये , और पता है , चाँदी का चक्कू केक काटने के लिए , और तो और चांदी की प्लेट भी केक खाने के लिए बताओ .... राहुल और उसके घरवालों की तो तो मौज हो गयी "

तभी राजेश्वरी में मुँह सिकोड़ते हुमे बोली , "अरी देने की नीयत होनी चाहिए बस , देने वाले तो भर भर के देते हैं अपनी बेटियों को...।"

"करम तो हमारे ही फूटे थे हमने तो खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।"

 तभी तपाक से सरोज बोल उठी - "अरे कितना तो देते है हैं तेरी बहू निशा के पीहर वाले भी....

लेकिन राजेश्वरी की ऐठन कभी कम न होती।"

राजेश्वरी के तरकस से ऐसे जहरीले तीर अक्सर निकलते रहते और का निशा को असहनीय घाव दे जाते। फिर भी न जाने किस मिट्टी की बनी थी वो.... कभी पलट कर कुछ नहीं बोलती... उसे ये भी पता था, कि यदि उसके पिता को ये सब पता चल गया तो वो सहन नहीं कर पायेंगे... वैसे ही वो तो दिल के मरीज हैं एक बार हार्ट अटैक आ भी चुका है।

इसलिए भी निशा तो जैसे सहनशीलता को प्रति मूर्ति बन गई थी । और सब ठीक हो जायेगा सोचकर अपनी दिनचर्या में लगी रहती। पति से भी इस बारे में ...या किसी भी बारे में कुछ कहने का फायदा नहीं था। क्योंकि हर बात में उसे निशा की ही गलती नज़र आती।उसके लिए उसकी माँ एकदम गऊ जैसी थी । 


कुछ समय बाद राजेश्वरी ने अपनी इकलौती बेटी का विवाह बहुत ही धूमधाम से किया । विवाह में देन लेन एवं भव्यता की चर्चा सभी की जुबान पर थी लेकिन जब बिटिया शादी के बाद पहली बार पग फेरे के लिए आई..

उसने खुले शब्दों में अपना फ़ैसला सुना दिया...जिसको सुनकर सभी के पैरों तले जमी खिसक गई,उसने अपना फैसला सुनाया कि अब वो वापस उस घर में एक कदम भी नहीं रखेगी,जहाँ इतना सब देने के बाद भी घर में कदम रखते ही तरह तरह के ताने मिलने लगे , और विजय , उसके पति ने भी उन लोगों को कुछ नहीं बोला ...

घर में सन्नाटा पसर गया । निशा को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या प्रतिक्रिया दे , ये सब... जो उसकी ननद ने मात्र एक दिन झेला है,इस घर में तो वो वर्षों से झेल रही है...

अब शायद इन लोगों को मेरी पीड़ा का कुछ एहसास हो... सोचती हुई निशा आंखों की नमी को पी गई।



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