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Alka Gupta

Inspirational Others

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Alka Gupta

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पत्थर और पायल

पत्थर और पायल

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जब से विद्या नृत्य प्रतियोगिता से लौटकर आई , वह बहुत दुःखी दिख रही थी, और अपने आप को कमरे में बन्द कर लिया था । विद्या दरवाजा खोल , क्या हुआ , कुछ तों बता बेटा। माँ दरवाज़ा पीटे जा रही थी, साथ ही उसकी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी

तभी अचानक दरवाज़ा खुला और विद्या का आक्रोश सब्र का बाँध तोड़ते हुए वातावरण में फैल गया । 

 मना किया था न माँ..मैं अब किसी प्रतियोगिता- वृतियोगिता में भाग नहीं लुंगी, हर जगह, चाहे कोई इंटरव्यू हो या कॉम्पटीशन ... 

माँ..(विद्या अपने शब्दों के शोर दबाते हुए) जैसा दिखता है न ये हर जगह का सिस्टम ,असल में वैसा होता नहीं, एक आदमी पता नहीं कितने मुखौटे लगा कर बैठा है यहां.... 

(माँ ने बेटी को ऐसे बोलते हुए कभी नहीं देखा था) 

सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं..

अब जरूरी तो नहीं सभी बहुत इंटेलिजेंट हों....

अब इतने इंटेलिजेंट नहीं हैं तो इन लोगों से समझौता करो... 

विद्या अपने आँसू पोंछते हुए बोलती जा रही थी...

और हाँ ये बड़े रुतबे वाली सीट पर बैठे लोग...कहते हैं , आसान नहीं यहाँ तक पहुँचना, छोटे -2 कदम रख कर ही आगे बढ़ सकते हो.... विद्या की सिसकियां नहीं रुक रहीं थी।

चलो माँ...बात मानी...और सही भी है ये....

लेकिन ये सलाह देते समय , उनका 'वो' लहजा....कहते- कहते विद्या की आँखें व दांत दोनों भिच गए। 

हद् है... कहीं ईर्ष्या, कहीं स्वार्थ, कहीं ऐसी मौकापरस्ती गन्दी सोच वाले लोग। 

और माँ सौ बातों की एक बात.... 

ये संस्कारों के पत्थर आपने इन पैरो बाँध दिये है न...जो अब मुझे ये पायल जैसी प्यारे लगते हैं... 

अब आप ही बताओ...माँ कैसे कदम मिलाऊँ, इस जंगल में दोहरे चरित्र और चेहरे वाले जानवरों से.... । 



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