akshata alias shubhada Tirodkar

Classics

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akshata alias shubhada Tirodkar

Classics

पेस्ट्री

पेस्ट्री

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शाम का समय था रास्ते पर गाड़ियों की लाइन लगी थी लोगो की भीड़ भी खाफी थी पर वो अपने ही दुनिया में खो चुका था 

"अमु अमु चलो घर नहीं जाना "

"हां माँ थोड़ी देर रुको ना "

"क्यों"?

"माँ रुको ना "

"रात होने वाली है अब चलो घर '

माँ ने उसका हाथ पकड़कर चलने लगी वो दोनों घर पहुँच गए माँ ने दरवाजे पर आवाज दी अमु की बहन अविका ने दरवाजा खोला अविका ने दोनों के लिए चाय बनायीं 

"क्या हुआ अमु चुप क्यों है "?

अमु यानि की अमन उसे प्यार से अमु बुलाते है 

"अरे दीदी माँ को और देर रुकने को कहा था पर वो मुझे खिसट के ले आई "

"और कुछ देर क्यों "?

माँ के पास टाइम नहीं था वो उठकर पानी भर ने नल पर जाती हैं

"दीदी तुम्हे पता हैं माँ जहाँ काम को जाती हैं उसके सामने ना एक बेकरी हैं उसमे हर रंग के तरह तरह क्रीम वाले केक थे उसे देखने को बड़ा मज्जा आ रहा था में तो वही देखने में गुम हो गया पर माँ मुझे लेकर आ गयी "

"अच्छा पर अमु वहाँ देखकर क्या करते घर नहीं आना था क्या "?

"आना था पर और कुछ देर रुक जाते तो अच्छा लगता और दीदी एक ने तो पूरा बक्सा केक लेकर गया बहोतो अच्छी लगती होगी ना वो केक में तो माँ को कल लेने को कहुँगा "

"नहीं अमु तुम माँ से मत मांगना '

'क्यों में तो अब हमेशा माँ के साथ जाउगा "

"तुम जाओ पर माँ से मत मांगना "

"पर क्यों "?

"देखो अमु वो केक को पेस्ट्री कहते हैं वो इतनी अच्छी नहीं लगती और महंगी भी होती हैं इसलिए तुम माँ से मत मांगना माँ के पास कितने पैसे नहीं हैं समझे "

"अच्छी नहीं लगती तो महंगी क्यों हैं "?

"देखो वो में नहीं जानती पर तुम माँ से मत मांगना "

'पर मुझे वो खानी हैं "

"'देखो अमु हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं तुम जानते हो ना माँ हमारे लिए कितनी मेहनत करती हैं ताकि हम अच्छे पड़ लिख सके और बाबा का तू जानता हैं शाम को आते ही शराब पीकर शोर शराबा करते हैं '

अमु ये सुनकर चुप बैठ गया वो छोटा था पर अपने बाबा के कारनामो से वखिफ था उसका बाबा किसी दूकान पर काम करता हैं पर हर शाम पीकर आना घर में एक पैसे नहीं देना उप्पर से अमु की माँ को बुरा भला कहना यही चालू था 

अमु ने खाना खाया और सोने के लिए लेट गया पर वो रंगबेरंगी पेस्ट्री उसके नज़र से नहीं जा रही थी वो आंखे बंद करता तो उसे वो पेस्ट्री नज़र आने लगी उसने आंखे खोली तो सामने से हट गयी अमु ने 'आंखे बंद की 

आज अमु और माँ रास्ते से चल रहे थे माँ ने उसे उस बेकरी में लेकर गयी और अमु की पसदिता पेस्ट्री खिलाने को कहाँ पेस्ट्री देख अमु का चहेरा खुल गया 

"माँ ये सब मेरे लिए "?

"हां बेटा तेरे लिए तुम्हे बहोतो पसंद है ना "

"पर माँ दीदी तो कह रही थी ये महंगी है "

"बेटा तुम्हारे ख़ुशी से बढ़कर क्या महंगा "

बेकरी वाले ने प्लेट में पेस्ट्री दी वो रंगबिरगी पेस्ट्री को देख अमु के मुँह में पानी आया उसने खाने के लिए मुॅह खोला 

और उसकी आँखें खुल गयी वो एक सपना था बहार सुबह हो गयी थीं वो‌ जोर जोरसे रोने लगा मां और अविका दौंड कर आयी अमु के बाप को तो होश ही नहीं था 

"क्या हुआ अमु रो क्यो रहे हो"?

"अमु को अपने दीदी की बात याद आयी "

"कुछ नहीं मां "

"तो तु रो क्यो रहा है "

"कुछ बुरा देखा"

"नहीं मां मैं ऐसे ही रो रहा था" 

"तुम भी ना अमु "

मां खाने बनाने जाती हैं

अविका उसके सामने आकर उसके आँखों में देखती हैं 

"क्या हुआ अमु "?

अमु उसको सपने के बारे में बताता हैं अविका को भी दिल से बुरा लगता हैं वो बिना कुछ कहे अंदर जाती हैं तो उसे दिखाई देता है की माँ सब खड़ी होकर सुन रही थी 

"माँ "

माँ के आँखों में आँसू भर गए थे 

"बेटा में ने सब सूना" 

"माँ तुम चिंता मत करो सपना था वो भूल जायेगा "

"मेरे बच्चे कितने समज़दार हैं और ये बाप होकर भी जिम्मेदारी से मुकर रहा हैं सच में मेरे पास पैसे होते तो में अमु को वो केक खिलाती तुम्हे भी लाती पर तुम्हारी माँ कितनी कमनसीब हैं "

"नहीं माँ तुम हमारे लिए जो कर रही हो वो बहोतो हैं "

अविका माँ को पकड़कर रोने लगती हैं अमु भी वहाँ बैठे बैठे सब सुन रहा था अविका ने अमु को तयार किया और वो स्कूल के लिए निकले 

अमु के सामने वो रंगबरंगी पेस्ट्री आ रही थी और एक तरफ माँ की तकलीफ स्कूल से वो दोनों वापस आये तब तक माँ भी लोगो गे यहाँ झाडू पोछा कर वापस आयी थी वो शाम को किसी दूकान पर काम करती थी ताकि वो कुछ पैसे कमा सके 

खाना हो गया थोड़ी देर माँ ने आराम किया और वो दुकान पे जाने के लिए तयार हुई छोटा अमु भी तयार हुआ 

"माँ में भी आ रहा हूँ "

"अरे नहीं अमु कल दीदी घर पर नहीं थी इसलिए में तुम्हे लेकर गयी थी आज वो घर पर हैं "

" नहीं माँ में आ रहा हु "

"अमु बेटा समझ जाओ "

माँ को डर था अगर अमु ने वो केक मांगी तो 

'नहीं माँ में आऊगा" 

अविका ने भी उसे समझाया पर वो नहीं माना और माँ उसे लेकर गयी माँ अपने काम में व्यस्त थी और ये उस कांच में से दिखने वाले के पेस्ट्री को उसकी नज़रे उस से हट ही नहीं रही थी माँ ने उसकी और एक नज़र मारी तो वो देख मन ही मन दुखी हो गयी और उसे सुबह की घटना याद आयी आज जिस घर में वो झाडू पोछा लगाने गयी थी उनके कचरे के डिब्बे में यैसी ही पेस्ट्री की बड़ी बॉक्स फेकि थी बड़े लोग उनसे क्या पूछना इसलिए वो चुप रही 

आज उसके पास पैसे नहीं इसलिए उसका अमु उस एक टुकड़े के लिए तरस रहा था और वहाँ पैसे होकर भी सारा बक्सा ही कचरे में डाला था उसने अपने आंखे पोछी और काम में जुड़ गयी तभी सामने बेकरी से जोर जोर से आवाज आने लगी सब लोग ताकझाक करने लगे तभी किसने अमु की माँ को आवाज दी 

"अरे तुम्हारा बेटा को केक चुराते समय पकड़ा गया हैं "

ये सुनकर वो दौड़ के बेकरी में जाती हैं 

"ये तुम्हरा बेटा है "?

"हां साब "

"इसने पेस्ट्री की चोरी की "

माँ ने गुस्से से अमु की और देखा 

"नहीं माँ में ने नहीं की "

तभी वहाँ खड़े वेटर ने कहा 

"सर इसने ही चोरी की कब से यहाँ आकर घूर रहा था "

"सूना तुम यहाँ काम करने आती हो और बेटे को चोरी करने भेजती हो "

"नहीं साब बच्चा हैं माफ़ कर दीजिये "

"माफ़ी मेरा नुकसान कौन देगा" 

"कैसा नुकसान /;

'उसने पेस्ट्री खाई उसका "

"नहीं माँ में ने नहीं खाई "

"तो गयी कहाँ "

"८० रुपया दे तो "

"पर साब '

'देखो में मेरा नुकसान नहीं कर सकता "

"पर साब मेरे पास अभी पैसे नहीं हैं "

"वो में नहीं जानता वो तुम्हारे बेटे को पता होना चाहिए था की महंगी चीजे आप जैसे लोगो के लिए नहीं हैं" 

"साब ये ५० रुपया रखिये और बाकि में आपको अगले महीने दे दूगी "

'अच्छा दे दो '

माँ ने अमु को खिसट कर लेकर गयी माँ की आंखे भर गयी थी रास्ते में अमु सिर्फ

 "माँ में ने नहीं खाई "यही कह रहा था 

पर माँ ने एक ना सुनी 

माँ घर आयी उसका वो चहेरा देख अविका ने माँ से पूछा माँ ने सब उसे बताया और वो रोने लगी अमु भी रोने लगा 

"अमु तुमने कैसा क्यों किया चोरी करना बुरी बात हैं "

"पर दीदी में ने नहीं चुराई "

"तो तू वहाँ क्यों गया था "माँ ने गुस्से से उसे पूछा 

"माँ में बस उसे सामने से देखना चाहता था "

"देखना चाहते या चोरी करना सुना उस बेकरी के मालिक ने क्या कहा तुम यहाँ काम करने आती हो और बेटे को चोरी करने भेजती हो '

"माँ पर में ने नहीं चोरी की "

"बस अमु बस "

माँ हालात की मजबूर थी पर अमु का चोरी करना उसे पसंद नहीं आया उसने अमु से बात करना छोड़ा अविका ने अमु को समझाया पर अमु एक ही रट लेकर बैठा था की उसने चोरी नहीं की माँ का उसके तरफ बर्ताव देख अमु दुखी हो गया उसने उसी दिन से पेस्ट्री को अपने दिमाग में से निकाल दिया क्यूंकि उसकी माँ का अपमान और उस बेकरी वाले के शब्द उसके कान में गुज रहे थे "तुम्हारे बेटे को पता होना चाहिए था की महंगी चीजे आप जैसे लोगो के लिए नहीं हैं "

यैसे ही दिन चल रहे थे एक दिन शाम को अमु और अविका दोनों ही पढ़ाई कर रहे थे तभी माँ की दरवाजे पर आवाज आयी अविका ने दरवाजा खोला 

माँ की आंखे भर आयी उसने वो दौड़ के अमु को गले लगाया आज बहोतो दिनों बाद अमु को माँ ने यैसे गले लगाया था अमु भी माँ को पकड़कर रोने लगा 

"माफ़ करो मेरे बच्चे "

अविका ने दोनों को संभाला 

"क्या हुआ माँ "?

"अविका हमारे अमु ने उस दिन चोरी नहीं की उस वेटर ने ही चोरी की आज उसकी चोरी पकड़ी गयी "

"क्या "?

"देखा माँ में कह रहा था "

'हा मेरे बच्चे लो उस बेकरी वाले ने ये दिया हैं तुम्हारे लिए "

"नहीं चाहिए मुझे माँ "

"पर तुम्हे तो ये पसंद है ना '

"नहीं चहिये माँ मुझे उस बेकरी वाले को कह तो माँ की में इतने पैसे कमाऊंगा की वो महंगे चीजे खरीद सकू "

"मेरे बच्चे हां" 

माँ ने फिर से अमु को गले लगाया 

"अविका तुम खाओ '

"मुझे नहीं चाहिए माँ "

'तो क्या करे इसका "

"माँ पड़ोस वाले छवि को दे दू "

'हां अविका जाओ" 

उस दिन से अविका और अमु ने जमकर पढ़ाई की बहोतो साल बीत गए दोनों ही खुद के पैरो पर खड़े हुए माँ ने भी अब काम छोड़ा था अब उनके पास सबकुछ था अविका टीचर बन गयी थी वो अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी में खुश थी अमन अमेरिका में बड़े कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पे था वो भी शादी शुदा हो गया था माँ उन दोनों को सुख देखकर ही जी रही थी अमु के बाबा अपने कर्म ही वजह से चल बसें 

"अमन कैसी लगी पेस्ट्री ख़ास में ने सीखी हैं सो में ने टॉय की अरे तुमने तो टेस्ट नहीं की "

"सॉरी डिअर पर मुझे पेस्ट्री पसंद नहीं "

"क्या पेस्ट्री और किसको पसंद ना हो कम ऑन अमन "

"सॉरी रिया बट आय डोंट लाइक "

"बट व्हाई"

अमन की आँखे भर आयी एक वक़्त था वो उस एक टुकड़े के लिए उसने क्या क्या नहीं सुना आज उसके पास इतने पैसे थे पर उस दिन से ही उसे पेस्ट्री से नफरत हो गयी थी "

"कुछ राज़ राज़ ही रहने दो और वो वहाँ से चला जाता है।


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