Vinita Shukla

Comedy

4.5  

Vinita Shukla

Comedy

पड़ोसन का रिटर्न गिफ्ट

पड़ोसन का रिटर्न गिफ्ट

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अनोखेलाल असमंजस में थे. हर बार पड़ोसी बैकुन्ठनाथ और उनकी पत्नी लालिमा की वैवाहिक- वर्षगाँठ, धूमधाम से मनती रही और वे सपत्नीक, उस समारोह का, हिस्सा बने...परन्तु अब! इस बार तो यह तिथि, ठीक होली वाले दिन पड़ रही थी. विचित्र संयोग था. कोरोना की पहली लहर के बाद, पार्टी की गुंजाइश, कम जान पड़ती थी; किन्तु इतना अवश्य था कि कुछ धमाल तो होगा ही...आखिर बैकुन्ठ ठहरे शौक़ीन आदमी. अलबत्ता लालिमा को होली खेलना बिलकुल नहीं भाता. उन्हें ‘स्किन एलर्जी’ जो थी. इसके चलते, उनके सुंदर मुखड़े पर; रंग मलने का दुस्साहस,कोई न कर सका. किसी और को भले ना हो लेकिन अनोखे जी को, इस बात का मलाल, जरूर था.

 वे एक भले और ‘गऊ छाप’ इंसान के तौर पर, जाने जाते थे परन्तु पड़ोसन को देखते ही, उनकी शालीनता, ‘तेल लेने’ चली जाती. दिल बल्लियों उछलता. नैन- सुख पाने को, वे कनखियों से, लालिमा को निहारते. लालिमा भी उनकी हालत से अनजान न थीं. कई बार, अपने पति बैकुन्ठ से; इस बात की, शिकायत भी कर चुकीं... पर वे हमेशा अनसुना कर देते. उलटा सीख देते, ‘होश की दवा करो श्रीमतीजी...मुहल्ले की औरतों को, वह गाय सरीखा लगता है’ ‘गाय भी तो सींग और लात मारती है!’ लालिमा चिढ़कर कहती तो बैकुन्ठ मुस्कराकर टाल जाते. 

कोरोना का आतंक कुछ कम हुआ तो अनोखे को, लालिमा उर्फ़ लाली भाभी के, दीदार की आस हुई. उन्होंने बैकुन्ठ से फोन पर बोला कि वे सपरिवार; दोपहर के भोजन पर, उनके घर पधारें. वैकुण्ठ ठहरे भोले भंडारी. वे अनोखे की मंशा, समझ ना पाए. झट राजी हो गये. लाली को ये बात, जमी नहीं. संक्रमण के दौर में, खाने का निमन्त्रण ! फिर भी पति के आग्रह पर, उन्हें मानना पड़ा. इधर अनोखे, ‘भाबीजी घर पर हैं’ के मनमोहन की तरह, रोमांचित थे- ‘विशिष्ट अतिथि’ की प्रतीक्षा में ...पलक पाँवड़े बिछाए हुए. अपनी ‘बेटर हाफ’ को ताकीद भी कर दी कि वे अपना समूचा पाक- कौशल, पकवानों में उड़ेल दें.

 उनकी पत्नी चम्पा भी पूरे उत्साह से, भोज की तैयारी में जुट गईं. ढेरों व्यंजन बना डाले. बस एक चिंता रही कि कोरोना के कारण, यदा कदा ‘श्रीमुख’ दिखाने वाली महरी, कहीं नागा न कर बैठे. अलबत्ता उसने आने का इकरार जरूर किया था. जो भी हो, लालिमा और बैकुन्ठ दावत खाकर, तृप्त हुए. संक्रमण काल में सुस्वादु भोजन, दुर्लभ था. होटल बंद... कामवालियों का टोटा और उस पर मेहनत...सो अलग! देहाती चम्पा, खाना पकाने में माहिर थी. उसका यह गुण, लालिमा सरीखी आधुनिका को भी, मात दे देता. यह और बात कि लाली के शहरी रंग ढंग, कुछ ऐसे थे कि अनोखेलाल को, उसके सामने; अपनी सर्वगुणसम्पन्न अर्धांगिनी भी अनाकर्षक जान पड़ती.

  बढ़िया भोज के बाद, मेहमान खुशी खुशी विदा हुए तो आतिथेय का आनन्द आ गया. किन्तु यह आनन्द दीर्घजीवी न था. कुछ ही देर में, उनकी सेविका सिरीदेवी ने, व्हाट्सएप वीडियो- कॉल की तो वह तिरोहित हो गया. अपनी टेढ़ी -मेढ़ी दन्तावलि को, बाहर निकाल, खीसें निपोरते हुए; सिरी ने, अपने ना आ पाने पर, खेद प्रकट किया. यह पहली बार हुआ जब ‘श्रीमुख’ का दर्शन, शुभ नहीं था! मरता क्या न करता...पत्नी से किये वादे के अनुसार, अनोखेलाल जुट गये- बर्तन चमकाने में. इतने में ना जाने कहाँ से, लालिमा आ धमकी. उसका पर्स जो वहाँ छूट गया था. 

  पसीने से तरबतर, अनोखे के हाल देख; लाली ने किसी तरह, अपनी हंसी रोकी. कोढ़ में खाज वाली स्थिति तब हुई, जब लालिमा के पीछे; मुहल्ले के दो चार, बाल- गोपाल भी चले आये- जिज्ञासावश...चम्पा आंटी को ‘हेलो’ बोलने के बहाने. वे बच्चे, अपरान्ह की निद्रा में मग्न; अपनी- अपनी मम्मियों को गच्चा देकर, गली में कंचे खेल रहे थे. अंकल की दुर्दशा, उनके लिए ‘बर्निंग इशू’ ठहरी; जिसका खुलासा, वे रस लेकर, अपने परिवारवालों से करने वाले थे. झेंप मिटाने के लिए, अनोखे ने सिलेंडरनुमा ब्रश निकालकर, लालिमा को दिखाते हुए कहा, ‘भाभीजी! इस ब्रश से बर्तन मांजने का, मजा ही कुछ और है...जूठन में हाथ नहीं डालने पड़ते. लाली को चुपचाप जाते देख, अनोखेलाल ने लम्बी सांस भरी और गमछे से पसीना पोंछने लगे- अपनी अधीरता को विराम देते हुए.

 चंद दिनों के बाद ही होली थी और बैकुन्ठ की ‘मैरिज एनिवर्सरी’ भी. योजनानुसार जब अनोखे ने, बधाइयों के साथ ; लाली भाभी को, सुर्ख गुलाबों का गुच्छा, पेश किया तो उन्होंने बगैर किसी हील- हुज्जत के, मुस्कराते हुए, उसे ले लिया. साथ ही, एक रिटर्न गिफ्ट वाला पैक भी दिया. जिस पर लिखा था- ‘बुरा न मानों होली है. अनोखेलाल ने लपककर उसे खोला तो उसमें वैसा ही सिलेंडरनुमा ब्रश था- जिससे वे उस दिन, बर्तन साफ़ कर रहे थे. वह शरम से पानी पानी हो गये और चुपचाप, वहां से खिसक लिए! 

    


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