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pashchaatap ki jwaala

pashchaatap ki jwaala

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"सुनो भाग्यवान बहू दूसरी बार ही तो यहाँ आई है अभी उस पर ज़्यादा काम का बोझ मत डालना थक जाती होगी बेचारी।" वेदप्रकाश ने अपनी पत्नी दयावती से खाना खाते हुए कहा।बहु रसोई में खाना बना रही थी और परोस भी रही थी ।

"क्यों आज बहू पर बड़ा प्यार आ रहा है और जब तुम्हारी अम्मा मुझसे काम करवाती थीं तब तो मुँह में दही जम जाता था।" दयावती ने पति को झिड़कते हुए कहा।

"तुम भी न!" ससुरजी ने हथियार डालते हुए कहा।

"अरे निधि बहू...जरा ध्यान रखा करो खाना परोसते हुए कि किसी पर कुछ है या नहीं। देखो इनकी प्लेट में सब्जी है ही नहीं।"

"जी मम्मी जी अभी लाती हूँ।"

"अरे बहु ज़रा गिलास में पानी तो दे दो।"

"जी।"

"अरे ठंडा क्यो ले आईं थोड़ा निबाया करके लाओ।"

"जी मम्मी जी।"

निधि का दिल भर आया जब सारा काम निपटा कर खाना खाने बैठी कैसे वह मम्मी के बताये छोटे-छोटे काम करने से भी इनकार कर देती थी। जब वह कवांरी थी सबसे पहले मम्मी नाज़ों से खाना खिलाती थीं। कभी किसी को खाना परोसकर भी नहीं दिया। ससुराल में खाना बनाओ भी और परोसो भी। पश्चाताप के आँसू बह गए निधि की आँख से।


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